अदालत ने सरकार को 26 मार्च 2021 को अपना पक्ष रखने के लिए दिया मौका
जानिए पूरा मामला
जनता से रिस्ता वेबडेसक | जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत करने की मांग से जुड़ी जनहित याचिका पर अपना पक्ष रखने के लिए सरकार को और चार सप्ताह का समय दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक और जम्मू-कश्मीर बैंक पहले ही जनहित याचिका पर जवाब दाखिल कर चुके हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक का जवाबी हलफनामा उनकी (विभाग) के मंतव्य को समझने के लिए पर्याप्त है। इस मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
न्यायमूर्ति अली मोहम्मद माग्रे संजय धर की खंडपीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता एमए चाशू की मांग के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार को और चार सप्ताह का समय दिया। अदालत ने सरकार को 26 मार्च 2021 को अपना पक्ष रखने के लिए मौका दिया परंतु सरकार ऐसा करने में असफल रही। इस साल अगस्त के अंतिम सप्ताह में अदालत ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक महीने का अंतिम मौका दिया एक बार फिर सरकार ने जवाबी हलफनामा नहीं दाखिल किया।
याचिकाकर्ता ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को दीपक मोहंती समिति की सिफारिश के साथ-साथ आरबीआई के अंतर-विभागीय समूह की एक रिपोर्ट के आलोक में शरिया अनुपालन विंडो (इस्लामिक बैंकिंग) की शुरुआत के लिए आवश्यक अधिसूचना जारी करने के लिए निर्देश देने की मांग की।
एक गैर सरकारी संगठन जम्मू-कश्मीर पब्लिक फोरम ने जम्मू-कश्मीर बैंक सहित घटक बैंकों में तत्काल कदम उठाने के लिए आरबीआई को निर्देश देने की भी मांग की ताकि इस्लामकि बैंक की शुरुआत की जा सके। फोरम चाहता है कि जेएंडके बैंक लिमिटेड गैर-निष्पादित खातों (एनपीए) के पूरे विवरण और एनपीए में बकाया राशि की वसूली के लिए उठाए गए कदमों के पूरे विवरण को अदालत के सामने रखे। क्योंकि यह सार्वजनिक धन है जिसके लिए बैंक प्रबंधन को इन खातों में जमा धन के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
प्रदेश के अधिकांश नागरिक मुसलमान और उन्हें संवैधानिक अधिकार
याचिकाकर्ता का कहना है कि जम्मू -कश्मीर में अधिकांश नागरिक मुसलमान हैं और इस प्रकार उन्हें इस्लामिक बैंक का संवैधानिक अधिकार है। याचिकाकर्ता ने पवित्र कुरान के साथ-साथ पैगंबर मुहम्मद का उदाहरण पेश किया जो ब्याज पर रोक लगाते हैं। फोरम ने कहा, यह सामान्य ज्ञान है कि मुसलमानों के लिए ब्याज प्राप्त करना देना दोनों निषिद्ध हैं।
हिंदू धर्म में यह कहा जाता है कि ब्राह्मण और क्षत्रिय ब्याज पर कुछ भी उधार नहीं देंगे। फोरम का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र ने भी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के समर्थन में जकात की भूमिका को स्वीकार किया है।