अनुच्छेद 370 निर्बाध सत्ता का भंडार नहीं था

Update: 2023-08-10 03:51 GMT

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के पक्ष में दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि राज्य को स्वायत्तता देने वाले कानून में कोई निर्बाध शक्ति का भंडार नहीं था। बल्कि यह राज्य पर संविधान को लागू करने का एक माध्यम था। प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ को बुधवार को याचिकाकर्ता मुज्जफर इकबाल खान के वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने बताया कि जम्मू-कश्मीर की निर्वाचक विधानसभा नहीं चाहती कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाए। खान ने केंद्र के 5 अगस्त, 2019 और 6 अगस्त, 2019 के दो संवैधानिक आदेशों को चुनौती दी है।

सुब्रह्मण्यम ने बताया कि भले ही संविधान में अनुच्छेद 370 अस्थाई बताया गया था, लेकिन इस प्रस्ताव को जम्मू और कश्मीर की निर्वाचक विधानसभा ने पारित किया था। इसके अनुसार भारत के संविधान को इन संशोधनों के साथ इसका अनुपालन करना जरूरी था। जम्मू और कश्मीर का संविधान और भारतीय संविधान एक-दूसरे से अनुच्छेद 370 के जरिये ही संपर्क में रहते थे।

अनुच्छेद 370 को मनमानी करने का जरिया ना समझा जाए

सुब्रह्मण्यम ने संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत को अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को चुनौते देते हुए सुनवाई के चौथे दिन कहा कि वह आदरपूर्वक यह जाहिर कर चुके हैं कि अनुच्छेद 370 को राजनीतिक शक्ति या मनमानी करने का जरिया ना समझा या पढ़ा जाए। इसे सिद्धांतत: भारतीय लोगों और जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच सघन रिश्ता मानें। उन्होंने कहा कि संवैधानिक आग्रह में वह संविधान के तहत निर्वाचन विधानसभा को मान्यता दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि अगर यह फैसला जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने लिया होता तो क्या इस फैसले को एकतरफा लागू किया जा सकता था? अनुच्छेद 370 भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच संघवाद का उदाहरण था।

Similar News

-->