चित्रकूट में एनजीओ पर मेहरबानी अफसरों को भारी पड़ी

गबन में चित्रकूट के पूर्व डीएम-सीडीओ पर रिपोर्ट

Update: 2024-04-23 09:29 GMT

लखनऊ: चित्रकूट में एनजीओ पर मेहरबानी अफसरों को भारी पड़ गई. एनजीओ ने काम भी नहीं और उसे लाख 97 हजार 400 रुपये की राशि जारी कर दी गई. 20 साल पुराने इस गोलमाल में विजिलेंस की झांसी इकाई ने चित्रकूट के तत्कालीन डीएम, सीडीओ, डीआरडीए के परियोजना निदेशक समेत नौ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. सभी पर धोखाधड़ी कर सरकारी धन के गबन का आरोप है.

विजिलेंस द्वारा की गई जांच में खुलासा हुआ कि फैजाबाद के एनजीओ पर्यावरण एवं ग्राम्य विकास अभियंत्रण सेवा संस्थान का फैजाबाद मंडल के डिप्टी रजिस्ट्रार सोसाइटीज एवं चिट्स ने अक्तूबर 2001 को पंजीकरण निरस्त कर दिया था. इसके बावजूद संस्था को जनवरी 2003 से 20 मार्च 2004 के बीच चित्रकूट में सांसद निधि, संपूर्ण रोजगार योजना व आईआरडीपी अवस्थापना मद से विभिन्न कार्यों के लिए भारी-भरकम रकम जारी कर दी गई. जब विजिलेंस ने जांच की तो पता चला कि आवंटित धनराशि से कोई काम ही नहीं कराया गया था.

दर्ज हुआ था गबन का केस: चित्रकूट के तत्कालीन परियोजना निदेशक जिला ग्राम्य विकास अभिकरण लल्लन प्रसाद वर्मा ने सांसद निधि व सरकारी धन के गबन का मामला पकड़ा था. उन्होंने उच्चाधिकारियों के संज्ञान में पूरा मामला लाते हुए अफसर के आदेश पर थाना कर्बी में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया था. प्रकरण की जांच के विजिलेंस को निर्देश दिए गए थे. विजिलेंस झांसी इकाई ने प्रकरण की जांच कर रिपोर्ट तैयार कर भेजी थी. विजिलेंस इंस्पेक्टर अतुल कुमार ने गबन के आरोप में तत्कालीन डीएम ओम सिंह देशवाल, तत्कालीन सीडीओ भूपेंद्र त्रिपाठी, तत्कालीन परियोजना निदेशक प्रेमचंद द्विवेदी और सोनपाल, तत्कालीन अवर अभियन्ता ग्रामीण अभियन्त्रण सेवा बुद्धिराम चौधरी , एनजीओ के अध्यक्ष देवनारायण तिवारी व तीन पटल सहायक प्रदीप माथुर, मुन्नालाल तिवारी, राम स्वरूप श्रीवास्तव के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

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