मंडी। सुकेत रियासत की पुण्य भूमि पांगणा में प्राचीन काल से ही अविच्छिन्न रूप में गाय को माता का रूप देकर वर्ष भर के अनेक पावन अवसरों पर पूजा जाता है। पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणि कश्यप पुरातत्व चेतना सम्मान से सुशोभित डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि गौ माता हमारी पूज्य माता है धर्म परायण भारत में अमृत के तुल्य दूध देने वाली गाय माता की रक्षा अवश्य होनी चाहिए। आज चारों ओर से गौ धर्म,गौ सभ्यता व गौ संस्कृति पर प्रहार हो रहा है।गौ माता की यह उपेक्षा कदाचित भी उचित नहीं। जिसके फलस्वरूप गाय माता का व गोवंश का बड़ा ह्रास होता जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में हमें गौधन को बचाने का भरसक प्रयास करना चाहिए।
सुकेत रियासत की ऐतिहासिक नगरी पांगणा में गाय को समर्पित बहुला चतुर्दशी के अवसर पर गौ पूजन किया गया। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से उपवास रखती हैं। महिलाएं भैंस के गोबर से घर आगन व गौशाला के आँगन की लीपाई करती है। बांस के एक सूप में गोबर से लिपाई कर उसमें जौ के आटे से एक ग्वाला, गाय बछड़ा,एक बाघ, एक राजा, एक सीड़ी बनाकर स्थापित करती हैं।सूप मे रखे प्रतीकों की पूजा धूप-दीप आदि जलाकर उस गाय का पूजन करती हैं जिनका बच्छड़ा भी रहता हो। एक ही घर में यह गाय बच्छडे के पूजन का आयोजन किया जाता है, तथा आस पड़ोस की महिलाएं भी उसी घर में जमा होकर वहां गाय व बछड़े की पूजा अर्चना और उसके गले में मरुवा नामक जंगली फूल,दुर्वा,विभिन्न प्रकार के फूलों की माला बनाकर पहनाती है।पूजा के बाद गाय और बछड़े को जौ के आटे की पींदडिय़ां आदि बड़े चाव से खिलाती हैं। गाय और बछड़े के शरीर पर जौ के आटे से बने घोल से सने हाथों से गाय के शरीर पर छाप लगाती हैं। गाय को विभिन्न प्रकार के अन्न से बनी चोकर खिलाती हैं। गाय और बच्छड़े की परिक्रमा के बाद सभी महिलाएं गाय के खूर चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। फिर इसी घर के आंगन-बरामदे या पूजा स्थल पर बैठ जाती हैं, और एक महिला उन्हें बहुला की कथा सुनाती हैं।
संस्कृति मर्मज्ञ डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि यह कथा द्वापर युग में मथुरा में द्विज नामक ब्राह्मण की बहुला नामक गाय के बारे में है। जिसे जंगल में घास चरते समय एक बाघ मिलता है जो गाय को अपना भोजन बनाना चाहता है, पर गाय बाघ से विनती करती है कि मेरा घर पर छोटा बछड़ा है। उसे मैं दूध पिला कर वापिस आती हूं। उसके बाद तुम मुझे खा लेना। बहुला नामक गाय की सत्य निष्ठा और प्रतिज्ञा को देख कर कहते हैं कि बाघ अपना रूप त्याग कर भगवान का साक्षात रूप धारण कर लेता है और गाय से कहता है कि जा तेरा यश गौ माता के रूप में होगा और आज के दिन तेरा बहुला पूजन किया जाएगा। बहुला की मार्मिक कथा को सुनने के बाद महिलाएं जौ के आटे से बनी रोटी व हलवे का सेवन भैंस के दूध के साथ करती हैं। इस त्यौहार को सुख शांति व पुत्र दाता माना गया है।
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा व पांगणा की नवोदित लेखिका नीता भारद्वाज नीतु व व्यापार मण्डल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता, गौ सेवक संजीव महाजन और बेसहारा गौवंश से कृषकों के खेती की रक्षा करने वाले पांगणा पंचायत के समाजसेवी प्रधान बसंत लाल चौहान का कहना है कि पूज्या गौ माता की रक्षा से जहां भारत का कल्याण है वहीं समस्त विश्व का भी कल्याण है। गौ माता की रक्षा होने से उसके दिए हुए दूध, दही, मक्खन, घी, छाछ, गोमुत्र, गोबर से सभी को लाभ पहुंचेगा। ऐसी पूज्या और उपयोगी गाय की क्यों न रक्षा की जाए। समस्त भारत मे गौपालन कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, तथा गौधन को बेसहारा छोडऩे वालों को दंडित किया जाना चाहिए।