विधानसभा चुनाव की दहलीज पर ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के अपने ही हो गए बेगाने

Update: 2022-09-14 11:47 GMT

पांवटा साहिब: एक वक्त था, जब पांवटा विधानसभा क्षेत्र में सुखराम चौधरी की पार्टी में खिलाफत का साहस नहीं जुटाया जाता था। धीरे-धीरे समय बदल रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव की दहलीज पर ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के अपने ही बेगाने हो गए हैं। बाहती समुदाय से सुनील चौधरी व रोशन लाल शास्त्री भी भाजपा के टिकट के तलबगार बन गए हैं। कुछ सप्ताह पहले रोशन लाल शास़्त्री ने भाजपा के गढ़ बायंकुआ में शक्ति प्रदर्शन कर अपने मंसूबों को साफ कर दिया था। आपको बता दें कि पांवटा विधानसभा क्षेत्र में बाहती समुदाय का दबदबा रहा है। यदि 25 साल के इतिहास की बात की जाए तो इस समुदाय से बाहर केवल सरदार रतन सिंह व किरनेश जंग चौधरी ही विधायक बन पाए। अन्यथा इस सीट पर बाहती कम्युनिटी का ही प्रभाव रहा है। उधर, आंजभोंज से ताल्लुक रखने वाले मनीष तोमर तो खुलकर ही मैदान में उतर चुके हैं। जहां भाजपा द्वारा आधिकारिक तौर पर पार्टी के टिकट की घोषणा होनी बाकी है, वहीं तोमर तो चुनाव प्रचार में ही डट गए हैं। एक समय था, जब तोमर को सुखराम चौधरी का राइट हैंड माना जाता था।

दरअसल, कुछ समय पहले पार्टी की खिलाफत करने पर पूर्व बीडीसी सदस्य सुधीर गुप्ता व पूर्व प्रधान अशोक चौधरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, लेकिन पार्टी से बर्खास्तगी केवल मनीष तोमर की ही की गई। इस कारण आंजभोंज के इलाके में ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के खिलाफ बगावती तेवर हैं। गौरतलब है कि पांवटा विधानसभा में आंजभोंज की 11 पंचायतें हैं। इसके अलावा गिरिपार की 6 अन्य पंचायतें भी इस हलके का हिस्सा हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के करीबी माने जाने वाले पूर्व भाजपा मंडल अध्यक्ष मदन मोहन शर्मा ने भी पार्टी के टिकट का आवेदन किया है। हालांकि, ये जरूर माना जा रहा है कि टिकट न मिलने की सूरत में वो बगावत नहीं करेंगे। लेकिन चुनाव भूमिका को लेकर संशय जरूर पैदा हो सकता है। हाल ही में मदन शर्मा ने दिल्ली में भी जेपी नड्डा से मुलाकात की थी।

कुल मिलाकर ये साफ है कि उत्तराखंड की सीमा पर स्थित पांवटा विधानसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी दंगल जबरदस्त होने वाला है। देखना ये होगा कि क्या भाजपा सुखराम चौधरी पर ही दांव खेलती है या फिर नया चेहरा मैदान में उतारा जाएगा। इस हलके में बाहती समुदाय एक अहम भूमिका में है, जबकि मुस्लिम बिरादरी निर्णायक भूमिका में होती है। सिख समुदाय का वोट बैंक भी हार जीत का फैसला कर सकता है।

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