मिल्क चिलिंग प्लांट मरयोग अव्यवस्था के चलते बंद होने की कागार पर पंहुचा

Update: 2022-09-21 11:54 GMT

राजगढ़ न्यूज़: यशवंतनगऱ के समीप मरयोग में स्थापित दुग्ध चिलिंग प्लांट अव्यवस्था के चलते बंद होने की कगार पर है। इस प्लांट के भवन व मशीनरी की हालत बहुत खस्ता हो गई है। प्लांट में औसतन 250 लीटर दूध का एकत्रीकरण होता है। हालांकि आजकल बरसात के दिनों में दुग्ध की मात्रा बढ़कर करीब 350 से 400 लीटर हो गई है, जोकि एक माह बाद घटकर पुरानी स्थिति में आ जाएगी। बता दें कि अतीत में इस दुग्ध चिलिंग प्लांट में सिरमौर के अलावा सीमा पर लगते शिमला व सोलन जिला के गांव से करीब चार से पांच हजार लीटर दूध एकत्रित किया जाता था, जिसकी सोलन व शिमला शहर के लिए आपूर्ति की जाती थी। किसानों को घर द्वार पर अच्छी आय हो रही थी।

गौर रहे कि किसानों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने के उददेश्य से हिमाचल निर्माता डाॅ. वाईएस परमार द्वारा 30 दिसंबर 1974 में इस चिलिंग प्लांट की स्थापना की गई थी, ताकि किसानों की दूध से अतिरिक्त आय हो सके। उस दौरान प्लांट से गाड़ियां किसानों से दूध एकत्रित करने के लिए प्रातः 5 बजे रवाना हुआ करती थी। इस दुग्ध प्लांट का लाभ सिरमौर ही नहीं, अपितु सीमा पर लगते जिला सोलन और शिमला के किसानों को भी मिल रहा था। यही नहीं, स्व. डाॅ. परमार द्वारा सिरमौर में दुग्ध उत्पादन की अपार क्षमता को देखते हुए जिला के विभिन्न भागों जिनमें राजगढ़, मरयोग, बागथन, नाहन इत्यादि स्थानों पर मिल्क चिलिंग प्लांट स्थापित किए गए थे, ताकि किसान आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो सके। परन्तु मिल्क फैड की अव्यवस्था के कारण सारे चिलिंग प्लांट बंद होने की कगार पर आ चुके हैं।

मिल्क चिलिंग प्लांट मरयोग के प्रभारी दुनीचंद ने बताया कि इस प्लांट में बरसात के दौरान दूध की मात्रा अढाई सौ से बढ़कर चार सौ लीटर दूध समितियों के माध्यम से एकत्रित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस चिलिंग प्लांट के माध्यम से नईनेटी, चंबीधार, धंधड़ेल, चाखल इत्यादि से दूध एकत्रित किया जा रहा है। दुग्ध समितियों द्वारा फैट के आधार पर दूध की दरें निर्धारित की जाती है। इसके बावजूद भी करीब 28 रुपये प्रति ग्राम किसानों से दूध खरीदा जाता है। उन्होंने बताया कि इस प्लांट में दूध कम होने से इसमें कार्य करने वाले तीन कर्मचारियों का वेतन भी नहीं निकल पाता है। सबसे अहम बात यह है कि सिरमौर में किसानों द्वारा दुधारू पशुओं को पालना कम कर दिया है, जिन किसानों के पास दूध है उनके द्वारा स्वयं मार्केट में बेचा जा रहा है।

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