भूस्खलन अध्ययन में लगे संस्थान दो-तीन महीनों में रिपोर्ट सौंपेंगे: मुख्य सचिव
हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश और बाहर के कई शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थान भूस्खलन पर एक रिपोर्ट तैयार करेंगे तथा खतरे को कम करने के लिए वैज्ञानिक शमन उपाय अपनाने में राज्य सरकार की सहायता करेंगे। यह जानकारी मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने शनिवार को दी। सक्सेना ने कहा कि दो या तीन महीने में सौंपी जाने वाली रिपोर्ट में भूस्खलन के उचित वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए भूवैज्ञानिक, भू-तकनीकी और भूभौतिकीय मापदंडों को ध्यान में रखते हुए आगे की विस्तृत जांच के लिए कुछ प्रमुख और संवेदनशील स्थानों का सुझाव भी दिया जाएगा।
मुख्य सचिव ने शनिवार को यहां जारी एक बयान में कहा कि भौगोलिक स्थानों, संवेदनशील पर्यावरण और कमजोर पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए, प्रत्येक जिले में 10-15 सबसे जोखिम वाले स्थलों पर प्रारंभिक भूवैज्ञानिक जांच करने और शमन उपाय सुझाने के लिए विशेषज्ञों को काम में लगाया गया है। उन्होंने कहा कि हर साल, राज्य विभिन्न तरह के प्रकृति प्रकोप का सामनाकरता है, जैसे बादल फटना, अचानक बाढ़, भूकंप, हिमस्खलन, सूखा और विभिन्न जिलों में भूस्खलन। उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए सरकार ने एक अध्ययन करने के लिए अनुसंधान संस्थानों को शामिल किया है।
राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के अनुसार, चालू मॉनसून मौसम में 24 जून से 15 सितंबर तक भूस्खलन की 166 घटनाओं में 112 लोगों की मौत हो गई। इसके अनुसार राज्य में 17,120 भूस्खलन के खतरे वाले स्थल हैं, जिनमें से 675 महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और बस्तियों के पास हैं। बयान में कहा गया है कि शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) शहर को छोड़कर शिमला और किन्नौर जिलों में, हमीरपुर स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) ऊना, बिलासपुर और हमीरपुर में, चंबा स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालयकांगड़ा में और मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कुल्लू, मंडी और लाहौल और स्पीति जिलों में अध्ययन करेगा।
चंडीगढ़ स्थित भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीआईएस) शिमला शहर के अलावा शिमला-कालका, मंडी-कुल्लू और ज्योरी-सैंडो राष्ट्रीय राजमार्गों पर अध्ययन करेगा, जबकि देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान और रूड़की में केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान को क्रमशः सोलन और सिरमौर जिले आवंटित किये गए हैं। वर्तमान मॉनसून के मौसम के दौरान, विशेष रूप से जुलाई और अगस्त में राज्य भर में होने वाली व्यापक क्षति को देखते हुए, राज्य सरकार ने राजधानी शहर में व्यापक क्षति के कारण भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाओं का कारणात्मक विश्लेषण करने के लिए एक समिति का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मिट्टी में जल संतृप्ति, नालों पर निर्माण आदि के चलते इमारतें धराशायी हो गईं।