बेशक आपदा के बाद मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों और जिला प्रशासन को साथ लेकर घटनास्थल पर पहुंचे थे और पीड़ित लोगों को हरसंभव मदद का भरोसा दिया था, लेकिन अभी तक आपदा प्रभावितों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई है।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की बोह घाटी में बीते साल 12 जुलाई को हुए भूस्खलन के प्रभावितों के जख्म एक साल बाद भी हरे हैं। हालात ऐसे हैं कि बेघर हुए परिवारों को आपदा के एक साल बाद भी आशियाना तक नहीं मिल पाया है। बेशक आपदा के बाद मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों और जिला प्रशासन को साथ लेकर घटनास्थल पर पहुंचे थे और पीड़ित लोगों को हरसंभव मदद का भरोसा दिया था, लेकिन अभी तक आपदा प्रभावितों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई है।
उस समय फौरी राहत के साथ मृतकों के परिजनों को डेथ क्लेम जरूर मिला था। अपने मकान नहीं होने के कारण पीड़ित परिवार अभी भी लोगों के घर में रह रहे हैं। सरकार उनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था करेगी, इसी आस में एक साल भी बीत गया है। आपदा के कारण प्रकाश चंद, विधि चंद, रिहाडू राम, कमलनाथ, गगन सिंह, करतार सिंह, शीला देवी और संजय आदि आठ परिवारों के लोग बेघर हुए थे। इसके साथ ही विजय कुमार, मनोहर टेलर और विपुल आदि किरायेदार भी प्रभावित हुए थे।
10 लोगों की गई थी जान, दर्जनों हुए थे घायल
इस हादसे में 10 लोगों की जान चली गई थी और दर्जनों लोग घायल भी हुए थे। शवों को मलबे से निकालने के लिए पांच दिन रेस्क्यू अभियान चला। मुख्यमंत्री हादसे के बाद मंत्री सहित हेलिकॉप्टर में आए थे। एक साल में पुनर्वास के नाम पर धरातल कोई काम नहीं हुआ है। सरकार की फाइलों में पुनर्वास के नाम पर जरूर योजनाएं बनी होंगी, लेकिन बोह आपदा पीड़ितों का उसका लाभ अभी तक नहीं मिला है।
क्या कहते हैं प्रभावित
आज भी लोगों के घरों में रह रहा परिवार
मलबे में दबने से उनकी माता की मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री ने विस्थापित परिवारों को पुनर्वास का भरोसा दिया था, लेकिन एक साल बाद भी न तो घर बनाने में मदद मिली है और न ही घर के लिए कहीं जमीन मुहैया करवाई गई है। उनका परिवार आज भी लोगों के घर में रह रहा है। -करतार चंद, आपदा पीड़ित
अपने गांव के पुराने घर में बिता रहे समय
उनके भाई-भाभी सहित परिवार के पांच लोगों की जान चली गई थी। उन्हें पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं करवाई गई है। वह अभी अपने गांव के पुराने घर में समय व्यतीत कर रहे हैं। अभी तक सरकार और प्रशासन ने घर बनाने में कोई मदद नहीं की है। जो घर मलबे की चपेट में आया है, वह उन्होंने नया ही बनाया था। -संजय कुमार, आपदा प्रभावित
एक साल से रह रहे हैं किराये के मकान में
मलबे में उनका पूरा घर आ गया था। अब वह एक साल से किराये के मकान में रह रहे हैं। उस समय सरकार ने फौरी राहत के रूप में मदद की थी। इसके साथ कुछ दानी सज्जनों ने भी मदद की है। घर नहीं होने के कारण वह किराये के मकान में रह रहे हैं।