शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट ने पूरे प्रदेश में विकासात्मक और भवन निर्माण जैसी गतिविधियों के लिए पहाड़ियों के कटान पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने प्लानिंग एरिया और स्पैशल एरिया से बाहर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी टीसीपी के प्रावधानों को अंतरिम तौर पर लागू करते हुए भवनों के निर्माण की अधिकतम सीमा भी तय की है। कोर्ट ने गांवों में रिहायशी भवनों के निर्माण की अधिकतम सीमा पार्किंग के अलावा 3 मंजिल तक प्रतिबंधित करने के आदेश जारी किए हैं। 3 मंजिल में एटिक और बेसमैंट को भी मंजिल के तौर पर गिना जाएगा। व्यावसायिक भवनों की अधिकतम सीमा 2 मंजिल और सेवाओं से जुड़े औद्योगिक भवनों की अधिकतम सीमा एक मंजिल तक होगी।
कोर्ट के आदेशानुसार भवनों का निर्माण गांव की सड़क से 3 मीटर की दूरी पर किया जा सकेगा। पड़ोसियों की संपत्ति से डेढ़ से 2 मीटर का सैट बैक छोड़ते हुए भवन निर्माण की अनुमति दी जाएगी। अब गांवों में भी राष्ट्रीय राज मार्ग, राज्य मार्ग, जिला मार्ग और अन्य अधिसूचित मार्गों से 3 मीटर की दूरी पर ही (कंट्रोल्ड विड्थ) भवन का निर्माण किया जा सकेगा। इसी तरह वनभूमि से नए भवनों की दूरी 5 मीटर होना जरूरी होगा। इसके अलावा वर्षा के पानी के भंडारण के लिए टैंक और सैप्टिक टैंक का निर्माण भी अनिवार्य होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 1977 के बाद भूमि खरीद कर बने भू-मालिकों को निर्माण करने की अनुमति संबंधित पंचायतों से लेनी होगी और पुश्तैनी मालिकों को निर्माण करने की जानकारी संबंधित पंचायत को देनी होगी।
कोर्ट ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया है कि विकासात्मक गतिविधियों के लिए आवश्यकता पड़ने पर पहाड़ियों की कटिंग के लिए टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के निदेशक की अनुमति लेना जरूरी होगा। टीसीपी डायरैक्टर को निर्देश दिए गए हैं कि वह पहाड़ियों की कटिंग के लिए अनुमति देने से पहले रिपोर्ट तलब करें। निर्माण की अनुमति देने से पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाणपत्र भी जरूरी होगा। कोर्ट ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति को कोर्ट के इन अंतरिम आदेशों से दिक्कत हो तो वह हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर टीसीपी निदेशक को उसके आवेदन पर निर्णय लेने के निर्देशों की मांग कर सकता है।
कोर्ट ने पहाड़ों पर अवैध निर्माणों के मुद्दे को अति महत्वपूर्ण और गंभीर बताया। कोर्ट ने सरकार को फटकारते हुए कहा कि प्रदेश में हुए बेतरतीब निर्माणों के लिए सरकार और इसके संबंधित अधिकारियों का लापरवाहीपूर्ण रवैया रहा है। कोर्ट ने टीसीपी निदेशक को एक साल के भीतर प्रदेश के सभी क्षेत्रों के लिए ड्राफ्ट क्षेत्रीय योजना तैयार करने और उसे प्रकाशित करने के निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने प्रत्येक क्षेत्रीय प्लानिंग एरिया में प्राकृतिक सौंदर्य और विशेषतौर पर भू कटाव को रोकने के लिए 'नो डिवैल्पमैंट जोन' घोषित करने के आदेश भी दिए। कोर्ट ने पंचायती राज संस्थाओं को बेतरतीब निर्माण को रोकने और उन पर नजर रखने के लिए मॉडल योजना और विकास योजना 3 माह के भीतर तैयार करने के आदेश भी दिए।
काेर्ट ने चेतावनी दी है कि इन आदेशों की अवहेलना कर किए गए निर्माणों को तोड़ दिया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने इन अंतरिम आदेशों को पारित करते हुए कहा कि उन्हें प्रदेश के विकास के विरुद्ध न समझा जाए। उनका प्रयास है कि प्रदेश में विकास के नाम पर हो रही किसी भी तरह की निर्माण गतिविधि को सुनियोजित किया जा सके। भवन निर्माणों में भू-मालिकों की मनमर्जी पर अंकुश लगाना जरूरी है क्योंकि बेतरतीब निर्माण से पहाड़ियों के दरकने और प्राकृतिक सौंदर्य को कभी भी भरपाई न कर पाने वाला नुक्सान पहुंचता है।