मंडी: देश की राजधानी दिल्ली से चंडीगढ़ होकर मंडी कुल्लू मनाली और लेह तक जाने वालों को सतलुज, ब्यास, चंद्रभागा व उनकी सहायक नदियों के मुहाने से होकर जाना पड़ता है। यह इस पहाड़ी प्रदेश हिमाचल का मध्य भाग है और इसे प्रदेश की जीवनरेखा भी कहा जाता है। 8,9 और 10 जुलाई को 75 साल पुराना कीर्तिमान टूटा। हजार गुना ज्यादा बारिश हुई।
यह जीवनरेखा बुरी तरह से टूट गई। इसे दरूस्त करने में कई दिन व अरबों रुपए लगेंगे। ब्यास नदी में आया तूफान इससे पहले शायद उन्हीं लोगों ने देखा होगा जो अब 80 साल से ज्यादा की उम्र के हैं। मनाली से लेकर मंडी, हमीरपुर तक 12 पुल ब्यास के रौद्र रूप में देखते देखते तिनकों की तरह बह गए। कई मंजिला घर माचिस की डिब्बियों की तरह नदी में समा गए। सैंकड़ों वाहन खिलौनों की तरह पानी में बह गए। हजारों घरों में कई फुट पानी भर गया। पेयजल व सीवरेज योजनाएं ध्वस्त हो ग्इं। पाइप बह गए।
कई जगह सड़क का नामोनिशान मिट गया। लोग कैद हो गए। पुल टूटने से संपर्क कट गया। बिजली-पानी सब बंद हो गया। नेटवर्क भी कट गया। 60 घंटे तक चलती रही बारिश के डर ने दो दिन लोगों को चैन से बैठने नहीं दिया। दो रातें हिमाचल के लोगों ने डर के साए में काटीं।मनाली से लेकर कुल्लू मंडी होते हुए पंजाब की सीमा पर प्रवेश करने से पहले हमीरपुर, कांगड़ा समेत कई जिलों में दो दिन तक लगातार कहर बरपाती ब्यास नदी ने दो ही दिन में चार हजार करोड़ से ज्यादा की संपति को लील लिया। अभी आकलन जारी है।
प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में एक कमेटी नुकसान के आकलन करने के लिए बनाई गई है।11 जुलाई को वे स्वयं मंडी कुल्लू व लाहौल पहुंचे। उपमुख्यमंत्री भी मंडी आकर पेयजल योजनाओं की तबाही का मुआयना कर गए। मुख्यमंत्री ने हिमाचल में आई इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग भी केंद्र से कर दी है। स्वयं प्रधानमंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने मुख्यमंत्री से बात करके भरसक मदद का भरोसा दिलाया है।प्रधानमंत्री व नड्डा का मुख्यमंत्री से बात करना ही यह साबित कर देता है कि प्रदेश की इन नदियों ने कितना कहर बरपाया है। यूं इस कहर के पीछे अनियोजित विकास माना जाता है।
एनएचएआइ, जो इस समय हिमाचल के पहाड़ों को अंधाधुंध तरीके से छलनी करने में लगा है, कोई उसे रोक नहीं रहा है या फिर यह भी कह सकते हैं कि एनएचएआइ वाले तो किसी की मानते ही नहीं है।खनन व सुरंगों के निर्माण से निकला मलबा सीधे नदी नालों में फेंका जा रहा है। बेतहाशा विस्फोट किए जा रहे हैं। इसके बावजूद भी उनकी बनाई सड़क से होकर ब्यास नदी का पानी गुजरा है, जो उनकी ही बनाई डीपीआर पर तमाचे जैसा है। यह बर्बादी आलीशान कार्यालयों में बैठकर बनाई योजनाओं की गवाह है, जो हिमाचल की प्रकृति के खिलाफ तैयार की गई हैं।मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के अनुसार अभी तक चार हजार करोड़ के अनुमानित नुकसान का आकलन है यह बढ़ भी सकता है।
कुछ भी हो इस आफत से यह तो साबित हो गया कि ब्यास नदी ने हिमाचल के विकास को नाकाम करार दिया है। नदी ने अपनी निशानदेही कर दी है। अब सोचने की बारी उनकी है जो बिना सोचे समझे डीपीआर बनाकर अनियोजित विकास करके अपनी पीठ का थपथपा रहे हैं। एक बहुत बड़ी चेतावनी ब्यास नदी ने अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे विकास को लेकर दे दी है।
एनएचएआइ के उन सब गलत कामों को जो प्रशासन, सरकार व वह सब महकमे, जिनके उपर इसकी जिम्मेदारी थी, नहीं रोक सके वह काम ब्यास नदी ने कर दिया है। उसने लक्ष्मण रेखा खींच दी है। अब नहीं संभले तो फिर शायद ही कोई बचा सके। इस त्रास्दी से सबक लेने की जरूरत है। देखना होगा कि हिमाचल सरकार अब इस त्रास्दी के बाद विकास के मापदंडों को लेकर कोई चिंतन मनन करती है या फिर इससे भी किसी बड़ी त्रासदी का इंतजार करती है।