सम्मू गांव में नहीं मनाई जाती दिवाली, वजह है श्राप
आइए जानें पूरी स्टोरी।
हमीरपुर. देश भर में दिवाली (Diwali 2021) का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है. हालांकि हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर (Hamirpur News) में सम्मू एक ऐसा गांव है, जो वर्षों से दिवाली को लेकर कोई तैयारी नहीं करता और ना ही दिवाली मनाता है, क्योंकि जब भी ग्रामीण दिवाली का त्यौहार मनाते हैं तो गांव में कोई अनहोनी हो जाती है.
माना जाता है कि कई साल पहले गांव की एक महिला ने इस गांव को श्राप दिया था कि कोई भी ग्रामीण सात पीढ़ियों तक दिवाली (Diwali 2021) ना मनाए और अब इसके चलते आज दिन तक इस गांव में दिवाली का त्यौहार नहीं मनाया जाता और ग्रामीण इस परंपरा को निभा रहे हैं. गांव में दिवाली के बाद सती हुई महिला और उसके परिवार की प्रतिमा की सम्मान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है.
हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के भोरंज में सम्मू गांव में हर साल दिवाली फीकी रहती है. कहा जाता है कि सम्मू गांव की महिला ने सती होने से पहले इस गांव को शापित कर दिया था. सम्मू गांव के 75 वर्षीय जगदीश चन्द रंगड़ा ने बताया कि सतयुग के समय में राजाओं की फौजें हुआ करतीं थी. सम्मू गांव की एक महिला का पति भी फ़ौज में सैनिक था. दिवाली के महिला अपने बेटे सहित अपने मायके जा रही थी, तभी आचानक कुछ सैनिक सामान लेकर आ रहे थे. तब सैनिकों ने महिला से फौज में शहीद हुए सैनिक का पता पूछा और इस पर महिला ने कहा कि यह मेरे पति हैं. महिला पति के सामान और बेटे के सहित वहीं सती हो गई थी. महिला ने सती होने से पहले सम्मू गांव के बाशिंदों को शापित कर दिया कि आने वाली सात पीढ़ियों तक कोई भी ग्रामीण दिवाली न मनाए, तब से लेकर आज दिन तक कोई भी सम्मू गांव का ग्रामीण दिवाली का त्यौहार नहीं मनाता है.
सम्मू गांव के 71 वर्षीय रमेल सिंह और ग्राम पंचायत भोरंज की प्रधान पूजा कुमारी और सोमा देवी ने बताया कि कुछ ग्रामीणों ने बीच मे दिवाली पर्व मनाना शुरू किया, पर इस दौरान उनकी गौशाला में आग लग गई. यही नहीं, अगर कोई ग्रामीण दिवाली मनाने प्रयास करता तो किसी न किसी बीमारी ग्रस्त हो जाता है और अब इसी भय के चलते कोई भी ग्रामीण दिवाली का पर्व नहीं मनाता है. सम्मू गांव के रत्न सिंह ने बताया कि सती महिला के और उसके परिवार की प्रतिमा की सभी ग्रामीण पूजा-अर्चना करते हैं. सभी ग्रामीण अपनी फसल का एक हिस्सा इन्हें चढ़ाते हैं.
जगदीश चन्द रंगड़ा ने बताया कि सती हुई महिला की सभी ग्रामीणों के पास प्रतिमा है, जिसकी पूजा अर्चना दिवाली के बाद की जाती है. जब पूजन किया जाता है, तब आचानक कोई मेहमान घर आ जाये तो वह पूजन सफल नहीं होता है और दोबारा से पूजन किया जाता है. अब भी इस परंपरा को सब ग्रामीण निभा रहे हैं. आधुनिक युग में युवा भी पुराने बजुर्गों की परंपरा को निभा रहे हैं, लेकिन उनके मन में दिवाली न मनाने का मलाल है. युवा आर्यन ठाकुर और पूजा ने बताया कि इसमें अंधविश्वास नहीं है. यह सच्ची घटना है, जो उनके बजुर्गों ने उन्हें बताई है.