रिटायर्ड कर्नल पृथीपाल सिंह गिल ने रविवार को ली अंतिम सांस
दूसरे विश्व युद्ध में अपनी सेवाएं दे चुके कर्नल पृथीपाल सिंह गिल का 100 साल की उम्र में निधन हो (Colonel Prithipal Singh Gill Passes Away)गया.
जनता से रिश्ता। दूसरे विश्व युद्ध में अपनी सेवाएं दे चुके कर्नल पृथीपाल सिंह गिल का 100 साल की उम्र में निधन हो (Colonel Prithipal Singh Gill Passes Away)गया. कर्नल पृथीपाल सिंह इसी महीने 11 दिसंबर को 101 साल के होने वाले थे. परिजनों ने बताया कि वह पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. रविवार दोपहर करीब 2:00 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.
रविवार को ही उनका अंतिम संस्कार चंडीगढ़ के सेक्टर 25 श्मशान घाट में किया गया. इस दौरान उनके दोस्त, रिश्तेदार और अधिकारी शामिल थे. गिल के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, तीन पोते और तीन परपोते हैं. पृथीपाल सिंह के जानकारों ने बताया कि रविवार सुबह से ही वह थोड़ा अस्वस्थ थे. दोपहर में उनकी जांच की गई तो पता चला कि वह हमें छोड़ कर चले गए हैं.
रिश्तेदारों ने याद करते हुए कहा उनका जीवन अच्छा था. वह जैसा चाहते था वैसे ही रहते थे. वहीं उनके एक करीबी पारिवारिक मित्र न्यायमूर्ति एचएस बेदी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वे एक प्रतिष्ठित सैनिक होने के अलावा वह एक अद्भुत इंसान थे. यह हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है.
कर्नल पृथीपाल सिंह का जन्म साल 1920 में पटियाला में हुआ था. उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ाई की. 1950 में उन्होंने प्रेमिंदर कौर से शादी की. कर्नल पृथीपाल सिंह एकमात्र ऐसे अधिकारी थे जिन्होंने भारतीय नौसेना, वायुसेना और थलसेना में अपनी सेवाएं दी हैं. कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल परिवार की सहमति के बिना ही अंग्रेजों के राज में रॉयल इंडियन एयरफोर्स में शामिल हो गए (Colonel Prithipal Singh Gill Royal Indian Force) थे. जहां उन्हें कराची में पायलट अधिकारी के तौर पर तैनात किया गया.
कर्नल पृथीपाल सिंह गिल का बाद में भारतीय नौसेना (Indian navy) में ट्रांसफर किया गया. जहां उन्होंने स्वीपिंग शिप और आईएनएस तीर पर अपनी सेवाएं दीं. वह दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मालवाहक पोतों की निगरानी करते थे. नौसेना अधिकारी के तौर पर उप लेफ्टिनेंट गिल ने स्कूल ऑफ आर्टिलरी, देवलाली में लॉन्ग गनरी स्टाफ का कोर्स क्वालिफाई किया. इसके बाद गिल का सेना में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां ग्वालियर माउंटेन बैटरी में उनकी तैनाती हुई. इसके अलावा इन्होंने मणिपुर में असम राइफल्स में भी अपनी सेवा दी.
पिता के डर से छोड़ी एयरफोर्स
पिता को डर ना होता तो शायद एयरफोर्स में ही रहते. मगर किस्मत को तो उनके नाम कुछ खास करना था. एयरफोर्स से नेवी में गए और फिर वहां से आर्मी में. जब रिटायर हुए तो देश के इकलौते ऐसे अधिकारी बन चुके थे जिन्होंने सेना के तीनों अंगों- थल सेना, नौसेना और वायु सेना में अपनी सेवाएं दी हों. 1965 का भारत-पाक युद्ध हो या जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बॉर्डर, कर्नल (रिटा.) पृथीपाल ने सब देखा है. पूर्वोत्तर के पहाड़ी जंगलों में भी उनके कई साल गुजरे हैं. कर्नल पृथीपाल 1965 की जंग में 71 मीडियम रेजिमेंट का नेतृत्व कर रहे थे. तब जंग के समय पाकिस्तानियों ने उनकी एक गन की बैटरियां चुरा ली थीं, लेकिन वो उनके पीछे गए और उन्हें वापस लेकर आए.