निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण मामले में जल्द सुनवाई से पंजाब-हरियाणा HC का इनकार
हरियाणा में निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय निवासियों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है।
हरियाणा में निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय निवासियों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट के इस आदेश से उद्योगपतियों को बड़ा झटका लगा है क्योंकि 15 जनवरी से इस आदेश को प्रभावी होना है।
फरीदाबाद इंडस्ट्रियल एसोसिएशन एसोसिएशन व अन्य ने हाईकोर्ट को बताया था कि निजी क्षेत्र में योग्यता और कौशल के अनुसार लोगों का चयन किया जाता है। यदि नियोक्ताओं से कर्मचारी को चुनने का अधिकार ले लिया जाएगा तो उद्योग कैसे आगे बढ़ सकेंगे। हरियाणा सरकार का 75 प्रतिशत आरक्षण का फैसला योग्य लोगों के साथ अन्याय है। यह कानून उन युवाओं के सांविधानिक अधिकारों का हनन है जो अपनी शिक्षा और योग्यता के आधार पर भारत के किसी भी हिस्से में नौकरी करने को स्वतंत्र हैं।
निजी क्षेत्र में विकास को बाधित करेगा कानून
याची ने कहा कि यह कानून योग्यता के बदले रिहायश के आधार पर निजी क्षेत्र में नौकरी पाने की पद्धति को शुरू करने का प्रयास है। ऐसा हुआ तो हरियाणा में निजी क्षेत्र में रोजगार को लेकर अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी। यह कानून निजी क्षेत्र के विकास को भी बाधित करेगा और इसके कारण राज्य से उद्योग पलायन भी आरंभ कर सकते हैं।
हरियाणा सरकार से मांगा था जवाब
याची ने कहा कि यह कानून वास्तविक तौर पर कौशलयुक्त युवाओं के अधिकारों का हनन है। 75 फीसदी नौकरियां आरक्षित करने के लिए 2 मार्च, 2021 को लागू अधिनियम और 6 नवंबर, 2021 की अधिसूचना संविधान, संप्रभुता के प्रावधानों के खिलाफ है। रोजगार अधिनियम 2020 को सिरे से खारिज करने की याचिका में मांग की गई है। याची पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ ने याचिका पर हरियाणा सरकार से जवाब तलब कर लिया था। अब अर्जी दाखिल कर एसोसिएशन ने जल्द सुनवाई की मांग की थी जिसे खारिज कर दिया गया।