चेक बाउंस मामले में साबित करने के लिए कानूनी प्रवर्तनीय दायित्व आवश्यक

आरोपी का उसके प्रति कोई कानूनी दायित्व है।

Update: 2023-04-11 09:49 GMT
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत एक शिकायत को साबित करने के लिए एक अभियुक्त के खिलाफ कानूनी प्रवर्तनीय दायित्व साबित होना बहुत आवश्यक है। इस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) प्रतिमा सिंगला ने चेक बाउंस मामले में सेक्टर 32-सी के अश्विनी कुमार को बरी कर दिया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता यह साबित करने में विफल रहा है कि आरोपी का उसके प्रति कोई कानूनी दायित्व है।
चंडीगढ़ के सेक्टर 35-ए निवासी अरविंदर सिंह बिंद्रा ने आरोपी के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने कहा कि उन्होंने आंशिक भुगतान के रूप में 7 लाख रुपये में एक घर की बिक्री के लिए एक समझौता किया। कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण, उक्त सौदे को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका और इस तरह उन्होंने राशि वापस करने की मांग की। लेकिन आरोपी कोई न कोई बहाना बनाकर बात को टालते रहे। बाद में आरोपी ने शिकायतकर्ता के साथ 10 मार्च 2017 को सेटलमेंट डीड की और डीड के अनुसार आरोपी को 12 लाख रुपये का भुगतान करना है। उन्होंने 50,000 रुपये नकद भुगतान किया और शेष राशि के लिए 31 जुलाई, 2017 को रोपड़ सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक पर चेक जारी किया। जब उन्होंने चेक प्रस्तुत किया, तो यह 5 अगस्त, 2017 को एक ज्ञापन के माध्यम से "फंड अपर्याप्त" टिप्पणी के साथ वापस कर दिया गया।
आरोपी के वकील अनिल शर्मा ने कहा कि शिकायतकर्ता ने चेक का दुरुपयोग कर आरोपी के खिलाफ दायित्व स्थापित करने के लिए बेचने के समझौते के निष्पादन और रद्द करने की कहानी गढ़ी।
दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता अपने प्रति आरोपी की देनदारी साबित करने के लिए एक भी दस्तावेज रिकॉर्ड पर रखने में विफल रहा है। यह कानून की स्थापित पूर्वधारणा है कि शिकायतकर्ता को रिकॉर्ड पर अभियुक्त के अपराध को साबित करना होगा कि चेक की राशि उसके प्रति देय थी। शिकायतकर्ता के मामले में इतने विरोधाभास हैं कि शिकायतकर्ता के बयान में संदेह पैदा हुआ। सभी तथ्यों और परिस्थितियों से यह स्पष्ट है कि परिवादी ने अभियुक्त को कोई राशि अग्रिम नहीं दी है। अत: परिवाद निरस्‍त किया जाता है।
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