हरियाणा : नेता बीरेंद्र सिंह क्या छोड़ेंगे भाजपा? कल की रैली पर सभी की निगाहें
पूर्व केंद्रीय मंत्री व कद्दावर नेता बीरेंद्र सिंह का राजनीतिक कॅरिअर एक बार फिर दोराहे पर खड़ा हो गया है। भाजपा के साथ जजपा का गठबंधन होने के कारण बीरेंद्र सिंह के सारे राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए हैं। अब समर्थकों का उन पर भाजपा छोड़ने का दबाव बढ़ गया है। दो अक्तूबर को एकलव्य स्टेडियम में होने वाली उनकी 'मेरी आवाज सुनो' रैली तय करेगी कि वह किस तरफ मुड़ेंगे। उनके समर्थकों ने शनिवार को पत्रकार वार्ता में साफ कहा है कि बीरेंद्र सिंह अब भाजपा छोड़ सकते हैं। समर्थकों ने तो फैसला कर लिया है, अब फैसला बीरेंद्र सिंह को करना है।
बीरेंद्र सिंह 1977 में कांग्रेस के टिकट पर उचाना कलां से चुनाव लड़े थे और बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। इसके बाद वह 1982 में फिर विधायक बने और प्रदेश में सहकारिता और डेयरी विकास मंत्री बने। 1984 में उन्होंने हिसार लोकसभा सीट से ओमप्रकाश चौटाला को हराया। 1991 में वह फिर से विधायक बने और राजस्व व योजना मंत्री बने। अपने पांचवें कार्यकाल में वह 2005 में विधायक बने। उन्होंने वित्त, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय संभाला।
2010 में उनको राज्यसभा सदस्य चुना गया। 2013 में बीरेंद्र सिंह केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री बने। 28 अगस्त 2014 को उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह 29 अगस्त 2014 को भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने 2016 में बीरेंद्र सिंह को राज्यसभा सदस्य बनाया। इस दौरान वह केंद्रीय इस्पात मंत्री बने। 2019 में उनके बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद बने। इसके बाद बीरेंद्र सिंह ने राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया।
भाजपा में शामिल होने से पहले भी थे दोराहे पर
बीरेंद्र सिंह 42 साल कांग्रेस में रहे। 29 अगस्त 2014 को वह भाजपा में शामिल हुए थे। इससे पहले कांग्रेस ने उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। इसी कारण उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहा था। एक बार फिर से बीरेंद्र सिंह का राजनीतिक जीवन ऐसे ही दौर से गुजर रहा है। उनके समर्थक सोमबीर पहलवान, शिवनारायण शर्मा और एडवोकेट जसबीर कुंडू ने शनिवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अब भाजपा छोड़ने का समय आ गया है, लेकिन आखिरी फैसला बीरेंद्र सिंह करेंगे। इसके अलावा रैली में आने वाली भीड़ पर भी यह फैसला छोड़ा जा सकता है।
भाजपा-जजपा गठबंधन ने बिगाड़े समीकरण
बीरेंद्र सिंह का मुख्य गढ़ उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र है। यहां से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला विधायक हैं। भाजपा-जजपा का इस समय प्रदेश में गठबंधन हैं। बीरेंद्र सिंह, उनके बेटे सांसद बृजेंद्र सिंह और उनकी पत्नी पूर्व विधायक प्रेमलता बार-बार भाजपा-जजपा गठबंधन तोड़ने पर जोर दे चुके हैं, क्योंकि यदि गठबंधन में विधानसभा चुनाव हुए तो उचाना कलां से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ही चुनाव लड़ेंगे और प्रेमलता को भाजपा का टिकट नहीं मिल सकता। अपनी पत्नी को भाजपा का टिकट दिलाने के लिए बीरेंद्र सिंह भाजपा पर दबाव बना रहे हैं। अगर भाजपा से अपने परिवार के लोगों को टिकट का पक्का आश्वासन नहीं मिला तो बीरेंद्र सिंह भाजपा को अलविदा कह सकते हैं।