राज्यपाल ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। पुलिस ने दिया गार्ड ऑफ ऑनर दिया। पाठ्य पुस्तकों में शहीदों का जिक्र होना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को याद रहे।
हरियाणा के पानीपत में सनौली रोड स्थित काला अंब को विकसित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के साथ पुरातत्व विभाग योजना पर काम कर रहा है। यह एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे संजोकर रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। ये बातें रविवार को प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने जिले के ऐतिहासिक स्थत काला अंब परिसर का दौरा करते हुए कही। इस दौरान राज्यपाल ने काला अंब स्थित स्मारक पर पुष्प अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी। काला अंब पहुंचने पर राज्यपाल को पुलिस के जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।
इस दौरान राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि भारत का इतिहास संघर्षों से भरा हुआ है। काला अंब भी एक ऐतिहासिक स्थान है। जिन्होंने हमारे देश की आजादी और संस्कृति को बचाने और इसकी रक्षा करने के लिए अपनी कुर्बानियां दी हैं। इसे हमें उनको याद रखना चाहिए। इन बातों का पाठ्य पुस्तकों में भी जिक्र होना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी को ये बातें याद रहे और ऐसी गुलामी दोबारा न आए।
इस दौरान शहर के प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश पुहाल और योद्धा स्मारक समिति के सचिव राजेश गोयल ने राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को इस ऐतिहासिक स्थल की पूरी जानकारी उपलब्ध कराई। रमेश पुहाल ने राज्यपाल को पुस्तकें भी भेंट की। डीसी सुशील सारवान ने महामहिम राज्यपाल के काला अंब आगमन पर उनका जिला प्रशासन की ओर से स्वागत किया।
इस मौके पर विधायक महिपाल ढांडा, एसपी शशांक कुमार सावन, एडीसी वीना हूड्डा, एसडीएम वीरेंद्र ढुल, बीडीपीओ पूनम चंदा, भाजपा के जिला सचिव कृष्ण आर्य, राजेश कुमार, पुरातत्व विभाग से जितेंन शर्मा, अनुराग और हितेश इत्यादि भी उपस्थित रहे।
इस वजह से पड़ा था नाम काला अंब
पानीपत की तीसरी ऐतिहासिक लड़ाई 14 जनवरी, 1761 को मराठों और अफगानों के बीच हुई थी। मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगानी सेनानायक अहमद शाह अब्दाली के बीच कई दिनों तक जंग चली। जिसमें करीब 75000 मराठा सैनिक शहीद हुए थे। इस लड़ाई को मराठा साम्राज्य के अंत के रूप में भी देखा जाता रहा है। इसमें मराठों की हार और अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई थी।
ऐसी कहानियां प्रचलित हैं कि इस जगह पर जब युद्ध हुआ तो इतना रक्त बहा था कि यहां की धरती भी रक्त से लाल हो गई थी। इस जगह पर एक आम का पेड़ होता था जिसका रंग इस जमीन पर अत्याधिक रक्त बहने की वजह से काला पड़ गया। इस पेड़ से लगने वाले आम तक काले बताए गए तो किसी ने इनके रस को काला बताया।
बता दें इस पेड़ को काटकर इसके दरवाजे और चौखट बनवाई गई। इनमें से एक चौखट अंग्रेजी हुकूमत के समय में बनाई गई थी जो आज भी पानीपत के संग्रहालय में सुरक्षित रखी है। वहीं, काला अंब की जगह पर मराठों की याद में स्मारक बनाया गया है। यहां देश भर से मराठों के वंशज आते हैं