हरियाणा | अपने स्वभाव में रहना ही धर्म है। जैसे हम अपनी वस्तु या व्यक्ति को खुद से दूर नही जाने देते। उसी तरह क्षमा अपनी है, उसे कहीं से लाया नहीं जाता। यह हमेशा से अपने पास ही है, पराया तो क्रोध है और क्रोध से ज्यादा हानिकारक कुछ और नहीं है।
उपरोक्त कथन परम पूज्य तपस्वी जैन संत आचार्य सुबल सागर महाराज ने व्यक्त किए। मंगलवार को शुरू हुए पर्व में महिला वर्ग द्वारा कलश यात्रा निकाली गई। दोपहर में तत्व चर्चा का विशेष आयोजन किया गया और शाम को गुरु भक्ति आरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न किए गए।