90 फीसदी गांवों में दलितों और सवर्णों के अलग-अलग श्मशान घाट, दलित अधिकार कार्यकर्ता का दावा

90 फीसदी गांवों में दलितों और सवर्णों के अलग-अलग श्मशान घाट, दलित अधिकार कार्यकर्ता का दावा

Update: 2022-06-20 16:54 GMT

देश में जातिवाद और छुआछूत का अंत होता नहीं दिख रहा है। दलित अधिकार कार्यकर्ता और वकील रजत कल्सन के अनुसार, हरियाणा के 90 फीसदी गांवों में दलितों और सवर्णों के श्मशान घाट अलग-अलग हैं।

नेशनल अलायंस फॉर दलित हुमन राइट्स के संयोजक रजत कल्सन ने हिसार में जारी बयान में कहा कि संविधान के अनुच्छेद-17 के मुताबिक, देश में जाति के आधार पर अस्पृश्यता यानी छुआछूत का अंत कर दिया गया है तथा इसे अपराध घोषित कर दिया गया है, इसके बावजूद आज भी हरियाणा के 90 फीसदी गांवों में जब किसी ग्रामीण की मृत्यु होती है तो उसकी जाति तय करती है कि उस व्यक्ति को अग्नि किस जगह पर नसीब होगी क्योंकि 90 फीसदी गांवों में श्मशान घाट जाति के आधार पर बने हुए हैं।

कलसन ने बताया कि उन्होंने फेसबुक पर एक सर्वे किया था जिसमें प्रदेश भर से लोगों ने कमेंट कर बताया कि उनके गांव में भी जाति के आधार पर श्मशान घाटों का वर्गीकरण किया गया है तथा आज भी गांवों में दलितों के लिए अलग से श्मशान घाट है। कई यूजर्स ने बताया कि कई गांव में तो दलितों के लिए श्मशान घाट ही नहीं है तथा कई यूजर्स ने यह भी बताया कि दलित समाज के व्यक्ति के शव को गांव के मुख्य मार्गों से गुजरने तक नहीं दिया जाता।

उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार भी ग्राम पंचायतों को जाति के आधार पर बने हुए श्मशान घाटों के निर्माण के लिए अनुदान जारी कर रही है, जो कि बल्किुल गैरकानूनी है।

कल्सन ने कहा कि इसी मसले पर कई बार गांव में झगड़े भी हुए हैं तथा अनुसूचित जाति समाज के लोगों को सार्वजनिक श्मशान घाट में उनके अपनों का अंतिम संस्कार करने से रोका गया है। उन्होंने पिछले साल की एक घटना का हवाला देते हुए कहा कि रोहतक के गांव मोखरा में अनुसूचित जाति समाज के लोगों को उनके बुजुर्ग का शव का दहन करने से एक जाति विशेष के लोगों की तरफ से रोक दिया गया था, जिससे बड़ी पेचीदा स्थिति पैदा हो गई थी तथा जाति विशेष के लोगों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा भी दर्ज हुआ था।

कलसन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 17 के साथ-साथ अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम में भी इस तरह का जातीय बर्ताव करने वाले लोगों के खिलाफ दंड का प्रावधान है, लेकिन सख्त कानूनों के बावजूद भी लोगों की जातियां मानसिकता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।

उन्होंने कहा कि सरकारों को वोट की राजनीति से ऊपर उठकर इस तरह के जातीय भेदभाव को खत्म करने का काम करना चाहिए तथा सभी गांव में एक सार्वजनिक श्मशान घाट बनाना चाहिए तथा ग्रामीणों को भी जातिवादी मानसिकता त्याग कर इस प्रगतिशील कदम के लिए पहल करनी चाहिए। कलसन ने कहा कि वे जल्दी ही इस बारे में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इस भेदभाव को खत्म करने की मांग करेंगे। 

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