कमाल है! केला और मक्का से बन रहा कपड़ा, लगी प्रदर्शनी
क्या आपने कभी सोचा है कि केले, मक्का, अनानास और बांस से भी यार्न बनाया जाता है और फिर उस यार्न से कपड़ा बनाया जाता है?
सूरत: क्या आपने कभी सोचा है कि केले, मक्का, अनानास और बांस से भी यार्न बनाया जाता है और फिर उस यार्न से कपड़ा बनाया जाता है? गुजरात के सूरत में तीन दिवसीय आयोजित यार्न एक्सपो में केला, मक्का, अनानास और बांस से भी यार्न बनाने और फिर उस यार्न से कपड़ा तैयार किए जाने की प्रदर्शनी की जा रही है.
सूरत में चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और सदर्न गुजरात चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट सेंटर के संयुक्त उद्यम के तहत तीन दिवसीय यार्न एक्सपो-2021 शुरू हो गया है. भारत सरकार के कपड़ा और रेल राज्य मंत्री दर्शन जरदोश ने यार्न एक्सपो का शुभारंभ किया. एक्सपो में विभिन्न प्रकार से तैयार होने वाले यार्न का प्रदर्शन किया जा रहा है, जिसमें ख़ासकर केले, मक्का, अनानास और बांस से बनने वाला फाइबर, यार्न और उनसे बना कपड़ा यहां आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ हैं.
केंद्रीय कपड़ा और रेल राज्य मंत्री दर्शन जरदोश ने यहां सभी स्टॉल्स का निरीक्षण किया. अलग-अलग तकनीक से तैयार किया जा रहे यार्न को लेकर उन्होंने उद्योगपतियों की प्रशंसा की और आत्मनिर्भर भारत 'मेक इन इंडिया' के तहत उद्योग चलाने में मदद करने का भी उद्योगपतियों को भरोसा भी दिया.
यार्न एक्सपो-21 में सूरत समेत दक्षिण गुजरात से ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से खरीदार और बायर आ रहे हैं. देश की विविध कपड़ा मंडी जैसे कि इच्छाचलकरंजी, सेलवास, नंदुरबार, नासिक, वाराणसी, भिवंडी, कोडिनार, तिरुपुर, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और लुधियाना के यार्न भी प्रदर्शनी में शामिल है.
अब केला, अनानास, मक्का और बांस से फ़ाइबर, यार्न और कपड़ा बनाने वाली सूरत की मेहर इंटरनेशनल कंपनी के डायरेक्टर सुमित अग्रवाल की मानें तो वो एग्रीकल्चर वेस्ट को कलेक्ट कर के प्रोसेस करते है फिर उससे फ़ाइबर बनता है और यार्न फिर कपड़ा तैयार किया जाता है. केले का प्रोडक्शन तो शुरू हो चुका है, पाइनेपल का प्रोडक्शन अगले माह शुरू हो जाएगा.
सुमित अग्रवाल ने बताया कि किसान एग्रीकल्चर वेस्ट को जला देते है जिससे प्रदूषण भी फैलता है लेकिन उनके द्वारा जिस तकनीक से एग्रीकल्चर वेस्ट से फ़ाइबर यार्न और कपड़ा बनाना शुरू किया गया इससे किसानों को भी फ़ायदा होगा और पर्यावरण को नुक़सान भी नहीं होगा.