महिलाओं की प्रेस कांफ्रेंस: अंतर्राष्ट्रीय मेहनतकश महिला दिवस 8 मार्च को
रायपुर। आज फिर एक बार 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय मेहनतकश महिला दिवस के अवसर पर हम छत्तीसगढ़ की महिलाएं साथ में आ रही है, फिर एक बार इस छत्तीसगढ़ राज्य और देश की जनता एवं शासन का ध्यान उन मुद्दों की तरफ आकर्षित करने के लिए जो हम राज्य में आज भी सामना कर रही है। पिछले कुछ सालों में बढ़ते हिन्दू कट्टरवाद, मजदूर नीतियों से छेड़छाड़, कल्याणकारी सेवाओं में कटौती जैसी नीतियों ने हम पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव डाला है। साथ ही कोरोनो महामारी, मगर उससे भी ज़्यादा राज्यों खासकर के केंद्र की महामारी से निपटने की जान विरोधी नीतियों ने महिलाओं, श्रमिक, दलित, मुस्लिम, और वंचित समुदायों को और भी अनिश्चित स्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया है।
कोरोना महामारी और उसके बाद हुए दमनकारी लॉकडाउन ने देश में श्रमिक वर्ग की स्थिति सबके सामने ला दी। स्थिति बेहतर करने की बजाय यह सरकार देश में लागू श्रम कानूनों को कमजोर कर रही है। मजदूर वर्ग ८ घंटे के बजाय १२ घंटे काम कर रहा है। लॉकडाउन होने से सबसे ज्यादा भार महिलाओं पर पढ़ा है। एक तरफ उनका घरेलु एवं देखभाल का काम बढ़ गया है वहीं आर्थिक तंगी होने के कारण बाहर के काम में भी बढ़ोतरी हुई है। भिलाई के छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से नीरा डहरिया श्रमिक वर्ग खासकर के महिलाओं पे पिछले एक साल में पढ़े असर और बदलावों पर बात रखेंगी। साथ में खेमीन जी जो नगर निगम दुर्ग में सफ़ाई कर्मचारी व यूनियन के सदस्य हैं बात रखेंगी सफ़ाई कर्मचारियों के हालत पे। पूरे लोकडाउन में बिना सुरक्षा सुविधा और बिना ओवरटाइम के पयमेंट का लगातार काम किया है। बार बार आवेदन व शिकायत के बावजूद ना हक़ का पेमेंट मिला है और ना ही ढंग की सुरक्षा सुविधाएँ।
जशपुर जिले में आदिवासी व अन्य वंचित तपके के लड़कियों का लगातार तस्करी होना व दूसरे राज्य में जब वे पलायन करके मज़दूरी करने दौरान आर्थिक व यौनिक शोषण का शिकार बनती हैं - इन मुद्दों पर जशपुर के ममता कुजूर जी ने बात रखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार से इन सब पर पहलकदमी की माँग रखी। कुछ हफ्ते पहले बस्तर क्षेत्र में एक प्रत्यार्पित २२ वर्षीय महिला की "आत्महत्या" की घटना सामने आयी। महिलाओं के परिवार वालों का आरोप है की महिला से जबरदस्ती प्रत्यार्पण / सरेंडर कराया गया था। उसके घरवाले यह भी आशंका जाता रहे है की महिला ने आत्महत्या नहीं बल्कि प्रशासन का उसकी हत्या में हाथ में। बस्तर में कई सालों से यह प्रत्यार्पित माओवादी /सरेंडर स्कीम/ लोन वरातू (गोंडी में घर वापसी) योजना के अंतर्गत शासन माओवाद से लड़ने के नाम पे वाहवाही लूट रहा है वही दूसरी तरफ इनमें से कई केसेस ऐसे है जहा पे जबरदस्ती शासन द्वारा सरेंडर करवाया जा रहा है या गाँव से युवाओं के पकड़ के प्रत्यार्पित माओवादी दिखाया जा रहा है। इस योजना एवं नक्सलवाद के नाम पे शासकीय दमन का प्रभाव महिलाओं पर साफ़ देखा जा सकता है। इन और बस्तर के अन्य मुद्दों को सोनी सोरी ने सामने रखा। दंतेवाड़ा SP द्वारा ज़बर्दस्ती शादी करवाना "सरेंडेर" लड़कियों का व यौन हिंसा के निशान पांडे के शरीर पर - ये गंभीर सवाल खड़े करते हैंवहाँ के पुलिस के महिलाओं पर रवैया का।
ट्रान्सजेंडर समुदाय के सामने अनगिनत चुनौतिया - रोज़गार के लिए लड़ाई से लेकर अपनी अस्तित्व व समाज में गरिमा व सम्मानकी लड़ाई के तमाम मुद्दों पर देवसेना जी बात रखेंगी। सामाजिक बहिष्कार छत्तीसगढ़ में एक बड़ा मुद्दा है। ज़्यादातर देखा गया है की गांव के दबंग लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए या किसी से बदला निकालने के लिए समाज को बदनाम करने या परंपराओं को तोड़ने के नाम पर समाज से बहिष्कृत कर देते है। इस प्रकार की जाति पंचायत मे केवल पुरुष लोग ही उपस्थित रहते है महिलाओं को बैठक में भी नहीं बुलाया जाता है। जाति पंचायत पीड़ित परिवार पर आर्थिक दंड लगाती हैं लगाए हुए आर्थिक दंड की राशि का कोई हिसाब नहीं होता हैं। न ही कोई हिसाब मांग पाता है। ज्यादातर सामाजिक बहिष्कार के मामले अपनी मर्जी से विवाह करने पर किया जाता है। कानून विशेष विवाह अधिनियम को प्रोत्साहित कर रही है और जाति पंचायत इसी आधार पर दंड दे रही है। यह संवैधानिक मूल्यों का मजाक है। बहुत से ऐसे मामले है जिसमे समाज से बहिष्कृत परिवार को जान तक गवानी पड़ी है या तो प्रेमी जोड़े ने इस विरोध के ड्डर से आत्महत्या तक किया है , गांव से भागना भी पड़ा है। सबसे बड़ी विडंबना ये है कि ऐसे मामलों में एफ आईं आर भी दर्ज नहीं हो पाता क्योंकि छत्तीसगढ़ में इसके लिए कानून भी नहीं बना है और न ही कोई सेंट्रल एक्ट है। केवल महाराष्ट्र में सामाजिक बहिष्कार सम्बंधित अधिनियम है इसमें भी एक खामी हैं की यह केवल सजातीय पर लागू होता है दूसरे समाज के लिए खामोश है। जबकि बहुत से मामलो में देखा गया है कि पूरा गांव सामाजिक बहिष्कार के लिए इकठ्ठा हो जाता है बहिष्कृत व्यक्ति चाहे किसी भी जाति से हो। सामाजिक बहिष्कार से सम्बंधित अपराधों को रोकने के लिए और पीड़ित समुदाय को सुरक्षा देने के लिए हम सामाजिक बहिष्कार के रोकथाम के लिए कानून कि मांग करते हुए बिलासपुर से अधिवक्ता गायत्री सुमन अपनी बात रखेंगी।
धर्म और पितृसत्ता का सदियों पुराना गठजोड़ रहा है। पिछले ६ सालों में बढ़ते हिंदुत्व उन्माद ने न सिर्फ महिलाओं के लिए बल्कि मुस्लिम समुदाय, दलित समुदायों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर दी है। मनुस्मृति पे आधारित हिन्दुत्ववाद को बढ़ावा देते हुए कई बीजेपी शासित प्रदेशों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश) ने लव जिहाद सम्बंधित कानून लागु कर दिए है। यह न सिर्फ महिलाओं के शरीर, अधिकारों और चयन को सीमित करने की चाल है परन्तु एक ब्राह्मणवादी पितृसत्ता आधारित हिन्दू राज्य बनाने की कोशिश है जिसमें हिन्दू सवर्ण आदमी के अलावा सभी महिलाएं एवं जातियां दोयम दर्जे की होंग। आंबेडकर के संविधान वाले भारत में इस तरह की परिस्थिति पैदा होना बेहद दुःख की बात है। इन मुद्दों पर भी हमारी महिला साथी बात रखेंगी।
इन्ही मुद्दों को उठाने के लिए हम "छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच" के तहत 5 मार्च 2021, 12:30 बजे रायपुर प्रेस क्लब में प्रेस कांफ्रेंस रख रही है, जिसमें राज्य के अलग अलग कोनों में संघर्ष कर रही महिलाएं अपने मुद्दे सामने रखेंगी। सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे, जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, राज्य दमन और सामाजिक बहिष्कार के मुद्दों पर, बढ़ते जातिगत व धार्मिक ताक़तें के ख़िलाफ़ जगह जगह महिलाओं के साथ विचार विमर्श करके मिलकर आवाज़ उठाने व सवाल खड़े करने का अभियान का ऐलान करते हैं।