जांजगीर-चांपा। गौठान में मिली आजीविका से समूह की महिलाओं सहित परिवार खुशहाल है, छोटी लागत लगाकरं का बड़ा मुनाफा कमा रही हैं, और इस कार्य में उन्हें किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत भी नहीं हो रही है। मुलमुला गौठान में मुर्गीपालन आजीविका से जुड़ी जय मॉ वैष्णव देवी स्व सहायता समूह की महिलाओं का कहना है कि छत्तीसगढ़ की नरवा, गरवा, घुरूवा बाड़ी योजना समूह की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में मील का पत्थर साबित हो रही है। जांजगीर-चांपा जिले की जनपद पंचायत पामगढ़ के अंतर्गत मुलमुला ग्राम पंचायत जहां पर सुराजी गांव योजना के तहत गौठान का निर्माण कराया गया। गौठान के निर्माण होने के बाद से ही यहां पर स्व सहायता समूह की महिलाओं को आजीविका गतिविधियों से जोड़ने का काम शुरू किया गया। जय मां वैष्णव देवी समूह की अध्यक्ष चंद्रकुमारी यादव एवं सदस्यों ने बताया कि समूह के गठन होने के बाद उतना लाभ नहीं मिल रहा था, जितना कि गौठान से जुड़ने के बाद मिला।
मुर्गीपालन को आजीविका के रूप में चयन करने के बाद विभागीय अधिकारियों, पशुपालन विभाग आदि से जानकारी एवं प्रशिक्षण लिया गया, फिर स्व सहायता समूह को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान योजना के अंतर्गत चक्रीय निधि की राशि 15 हजार, सामुदायिक निवेश निधि की राशि 1 लाख 20 हजार रूपए एवं बैंक लिंकेज के माध्यम से राशि 1 लाख 50 हजार की राशि की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। प्रथम चरण में समूह को डीएमएफ मद से 25 हजार रुपए की राशि चूजे खरीदने के लिए दी गई। इस राशि से समूह द्वारा सोनाली प्रजाति मुर्गी के चूजे खरीदे गए। साथ ही गौठान में समूह की महिलाओं को मुर्गी शेड, बिजली, पानी की सुविधा शासन द्वारा उपलब्ध कराई गई। गौठान में बने मुर्गी शेड में सोनाली प्रजाति की मुर्गी का पालन करना शुरू किया। गौठान में मिली सुविधाओं के बल पर समूह की महिलाओं की मेहनत रंग लाने लाने लगी और समूह ने 70 हजार 200 रुपए की लागत मुर्गीपालन बेहतर से किया। चूजे बड़े होने पर तकरीबन 28.50 क्विंटल मुर्गी का विक्रय समूह के द्वारा गांव सहित आसपास के बाजारों में किया गया, जिससे उन्हें 5 लाख 7 हजार 600 रूपए की आय प्राप्त हुुई। समूह की महिलाओं की मेहनत दिखने लगी और जो सोचा उसके मुताबिक उन्हें सफलता मिली। मुर्गीपालन से मिले लाभ की राशि का उपयोग महिलाओं ने अपने परिवार के पालन पोषण सहित बच्चों की शिक्षा एवं घर की अन्य जरूरतों को पूरा करने में किया। इस तरह से एक गौठान में मिली आजीविका ने समूह की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ते हुए स्वाबलंबी बना दिया और गांव में मेहनतकश समूह के रूप में ऊभर कर सामने आईं।