जो बोएगा वही पाएगा, तेरा किया आगे आएगा...

Update: 2022-01-14 06:07 GMT

ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

वक्त-वक्त की बात है, जिस साहब की गाड़ी के दफ्तर में प्रवेश करते ही जर्रा-जर्रा सहम जाता था, उसी दफ्तर में साहब को कैदियों की तरह लाया गया। जीपी सिंह को दिल्ली से गिरफ्तार करने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू दफ्तर लाया गया, जो भाजपा शासनकाल के बाद कांग्रेस के शुरूआती एक साल तक इस दफ्तर के सर्वेसर्वा रहे थे। जनता में खुसुर-फुसर है कि अपने बड़े अधिकारी के घर पर छापा मरवाने में भी हाथ था, आईपीएस राहुल शर्मा प्रकरण में भी इन पर आरोप लगे थे, ऐसा लगता है जीपी सिंह ने वक्त का कद्र नहीं किया, तो वक्त ने अपना हश्र दिखा दिया। जस करनी तस करम गति। कहा जाता है कि जीपी सिंह ने अपने कार्यकाल में कई परिवार को रोड में ला दिया था, आज खुद रोड में आ गए है। इसे कहते है वक्त का पलटवार। एक मशहूर गाना जो बोएगा वही काटेगा, तेरा किया आगे आएगा जो कि फिल्म जैसा करनी वैसी भरनी में नीतिन मुकेश का गीत अभिनेता गोविंदा पर फिल्माया गया था, वह जीपी सिंह पर अक्षरश: उतर रही है।

जनता की खुसुर-फुसर सच हुई

कुछ दिन पहले-जनता से रिश्ता ने खुसुर-फुसुर कालम में सीएम भूपेश बघेल से मिले अभिनेता सोनू सूद प्रकाशित किया, जिसमें संभावना जताई गई दी कि देर सबेर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से बातचीत कर सोनू सूद की बहन को विधानसभा की टिकट दिला ही देंगे। यह बात सौ फीसदी सच साबित होते दिख रही है। हाल ही में अभिनेता सोनू सूद की बहन ने कांग्रेस ज्वाइन की है और मोगा विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे वाली है। इस समीकरण के मुख्यसूत्रधार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को माना जा रहा है। जनता में खुसुर भूपेश बघेल पूरे देश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में मृतप्राय पड़ी कांग्रेस को जिंदा कर दिया। बधाई हो कका...

यूपी भाजपा में भगदड़

चुनावी शंखनाद होते ही यूपी में भाजपा नेताओं का सरकार से मोह भंग होने लगा है। सूत्रों की माने तो योगी सरकार के एक और मंत्री व करीब आधा दर्जन विधायकों के भी इस्तीफा देने की खबर तेजी से फैल रही है। वे जल्द ही सपा के झंडाबरदार बन जाएंगे। वहीं भाजपा विधायक को भाजपा छोड़ते ही गिरफ्तारी वारंट का दंश झेलना पड़ा। यूपी सरकार के एक मंत्री ने बयान दिया कि जो भाजपा छोड़ेगा उसका यही हाल होगा, यानी बाजपा में रहे तो गंगा उजली और छोड़े तो गंगा मैली? जनता में खुसुर-फुसुर है कि भाजपा के जहाज में छेद हो गया है। इसलिए भगदड़ मचा हुआ है। ये चुनावी गणित वाला उटापटक है,चुनाव के बाद फिर हम प्याला हम निवाला हो जाएंगे।

कोरोनाकाल में लोगों की जान और चुनाव दांव पर

कोरोना वायरस का नया वैरियंट ओमीक्रान भारत के की राज्यों में तेजी से फैल रहा है, वीकेंड के साथ रात का कफ्र्यू लग चुका है। पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा के बाद कोरोना के जद में चुनाव और लोगों की जान आ चुकी है। वहीं इन चिंताओं से मुक्त होकर पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, समाजवादी नेता अखिलेश यादव चुनावी रैली में व्यस्त हो गए है। ऐसे में कोरोना संक्रमित भी रैली में शामिल होकर कोरोना की रफ्तार को हवा देंगे। जिससे रैली में शामिल लोगों के साथ उनके परिजन भी संक्रमित हो सकते है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि यूपी सहित पांच राज्यों में रैली में भीड़ बुलाने के बजाय वर्चुअल रैली करने की सोच रहे हैं। वीडियो कांफ्रेंसिंग वाली चुनावी रैली कितना कारगर होगी, यह तो परिणाम ही बताएगा फिलहाल जनता नेताओं के रूख का टोह ले रही है।

धर्मगुरुओं की चौखट पर नेताओं की भीड़

पिछले दिनों भाजपा नेता का बयान आया कि समाजवादी पार्टी बदल रही है, अब सपा हिंदुओं को भी साधने में जुटी हुई है। सपा के जो नेता चुनाव आते ही मौलानाओं की चौखट पर दस्तक देने लगते थे,वह अब साधु संतों की परिक्रमा कर रहे हैं.मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं। अखिलेश अपने को सबसे बड़ा कृष्ण भक्त बताने में लगे हैं। भगवान परशुराम का मंदिर बनवाने की बात कह रहे हैं। भगवान परशुराम के बहाने अखिलेश ब्राह्मणों को पार्टी के पक्ष में लामबंद करना चाह रहे हैं। यह भी उनका हिंदुत्व की तरह बढ़ता हुआ ही कदम है। इसके साथ ही सपा प्रमुख जनता के बीच यह मैसेज भी देना चाहते हैं अयोध्या में रामलला का मंदिर बनने से उन्हें खुशी है, लेकिन इसका श्रेय वह बीजेपी को नहीं सुप्रीम कोर्ट को दे रहे हैं,साथ ही यह भी कह रहे हैं कि अगर उनकी सरकार होती तो अभी तक अयोध्या में रामलला का मंदिर बन गया होता। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा मंदिर-मस्जिद की बात कर सकती है, सपा करे तो परेशानी। यूपी में भाजपा का शासन है उनको देश में बेरोजगारी, मंहगाई,घटती आमदनी, भुखमरी, कुपोषण, कोरोना के बढ़ते प्रकोप आदि पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय देश में नफरत का बीज बोने में ध्यान दे रहे हैं। बहरहाल जनता में खुसुर-फुसुर है कि कोई भी सरकार जब पांच साल शासन करती है और चुनाव के दौरान किये वादे को पूरा कर अपने प्रदेश में विकास की गंगा बहाती है तो फिर इनको वोट विकास के नाम पर मांगना चाहिए हिन्दू-मुस्लिम, श्मशान-कब्रिस्तान या दिवाली-ईद के नाम से वोट क्यों मांगना पड़ता है। जनता जिसे चाहे सत्ता में बिठाये लेकिन नफरत की राजनीति नहीं होना चाहिए देश में भाई-चारा कायम रहना ही चाहिए। इसी बात पर डॉ बशीर बद्र साहब ने ठीक ही कहा है - सात संदूकों में भर कर दफन कर दो नफऱतें, आज इन्शां को मोहब्बत की जरुरत है।

लॉकडाउन की अफवाह से जमाखोर मस्त

प्रदेश में अभी सिर्फ नाइट कफ्र्यू की घोषणा हुई है और जमाखोर और मुनाफाखोर सक्रिय हो गए हैं अभी से बाजार से कई सामान नहीं मिल रहे हैं और जो मिल रहे हैं उसका रेट बढ़ा हुआ है। कुल मिलकर परेशानी फिर से माध्यम और निचले तबके के लोगो को ही होने है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि प्रशासन को ऐसे लोगों को सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए ताकि लोग जमाखोरी और मुनाफखोरी से बाज आए।

एप पर नहीं आप स्वयं पर नियंत्रण रखें

पिछले दिनों दो ऐप के जरिये लोगों को बदनाम करने की साजिश का पर्दाफाश हुआ। एक ऐप में मुस्लिम महिलाओं को बदनाम करने की कोशिश की गई और दूसरे ऐप में सिखों को बदनाम करने की कोशिश की गई। अब सवाल ये उठता है कि ये सब किनके इशारों पर हुआ कौन-कौन लोग इसमें शामिल थे। इस पर चिंतन होना चाहिए, मजे की बात ये है कि जो लोग इसमें शामिल थे उनमें सभी बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल के छात्र थे।

जैसे विशाल झा इंजीनियर, स्वेता सिंह मेडिकल स्टूडेंट, मयंक रावत कालेज स्टूडेंट,नीरज बिश्नोई कम्प्यूटर साइंस, ओंकारेश्वर ठाकुर बीसीए स्टूडेंट। इन पढऩे लिखने वाले बच्चों को नफरती किसने बनाया इस पर भी गौर करना चाहिए। ऐसा लगता है कि राजनीतिक दलों का जो इस प्रकार की राजनीति में विश्वास रखते हैं उनका गेम प्लान इन्हीं नफरती गैंगों के बदौलत फल-फूल रहा है जो सोशल मीडिया को कभी धर्मयुद्ध का मैदान या अपनी पार्टी को जिताने का सामान समझ बैठे हैं। लेकिन इसका परिणाम युवा नहीं समझ पा रहे हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि हर बार समाज द्रोही राजनीति के प्रभाव में आकर इस तरह के उटपुटांग हरकत कर बैठते जिससे समाज को बदनामी झेलनी पड़ती है।

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