किसी के गुजर जाने के बाद शहर बंद होते हमने बहुत बार देखा मगर कोई गुजर न जाये इसलिए शहर बंद होते पहली बार देखा
ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
कोरोना से छत्तीसगढ़ के बिगड़े हालात के लिए भाजपा नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता और उनके नीति को जिम्मेदार ठहराया है। अब सवाल ये उठता है कि चलो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता कोरोना फैलने के जिम्मेदार हैं लेकिन मध्यप्रदेश में कौन जिम्मेदार है। वहां की सरकार जिम्मेदार नहीं है बल्कि वहां की जनता जिम्मेदार है ? ये कैसा लॉजिक है समझ नहीं आया। बहरहाल जनता में खुसुर फुसुर है कि जैसे विधायकों का वेतन भत्ता बढ़ाते समय सभी पार्टी के विधायक एक होकर प्रस्ताव को पारित करते हैं उसी प्रकार कोरोना संकट के समय नेतागण मतभेद भुलाकर कोरोना के खिलाफ एक हो कर लडऩा चाहिए न कि इसमें भी राजनीति करना चाहिए।नेताओ को समर्पित शेर- लौट आएगी खुशियां अभी कुछ तक़लीफ़ों का शोर है,जरा संभलकर रहो दोस्तों यह इम्तेहान का दौर है।
आपदा में अवसर
रायपुर में आज शाम से लाकडाउन हो जायेगा जिस हिसाब से मरीज बढ़ रहे है लाकडाउन करना जरुरी हो गया था। लोगो की जान बचाना, उन्हें परेशानी से बचाना प्रशासन का दायित्व है। लेकिन कैसे ! शहर में स्वास्थ्य सुविधाओं में काफी कमी है सरकारी अस्पतालों में जगह नहीं है लेकिन वीआईपी के लिए है , और निजी अस्पताल वाले मनमानी कर रहे हैं। निजी अस्पताल वालों और मेडिकल स्टोर वालों से दवाइयों को अनापशनाप रेट पर खरीदना लोगो की मज़बूरी बन गई है। सामान्य चेकअप के लिए जाओ और कहीं एक दिन भर्ती होने बोला जाये मतलब एक लाख सबसे पहले जमा करना जरुरी हो जाता है नहीं जमा करने की स्थिति में ईलाज नहीं करते,कितने संवेदनहींन हो गए हैं, जिसे देखो मुनाफा खोरी में लिप्त है. दस रूपये का टमाटर पचास रूपये किलो बिकने लगा है इसी प्रकार दैनिक उपयोग की सभी चीज़ो का दाम आसमान छू रहा है कोई देखने वाला नहीं है अंधेर नगरी बना हुआ है। शासन प्रशासन का डर बिलकुल नहीं रहा।लोग बेखौफ होकर अपनी मनमानी पर उतर आये हैं। जनता में खुसुर फुसुर है कि लाकडाउन का अनाउंसमेंट कम से कम एक सप्ताह पहले करना था दो दिन पहले करने से सब्जी या अन्य चीज़ो का दाम बेतहाशा बढ़ा दिया गया है। जिला प्रशासन असहाय हो गया है। कोई व्यापारी सुनने तैयार नहीं है। बाज़ारो में भीड़ को देखकर ऐसा लग रहा है कि लाकडाउन दस दिन के लिए नहीं बल्कि दस साल के लिए लग रहा है इसी बात पर किसी ने ठीक ही कहा है - किसी के गुजर जाने के बाद शहर बंद होते हमने बहुत बार देखा है , मगर कोई गुजर न जाये इसलिए शहर बंद होते पहली बार देखा है।
चुनाव यूपी में प्रचार छत्तीसगढ़ में
इन दिनों यूपी में ग्रामपंचायत चुनाव होने जारहा है। वहां के ग्राम मांचा के ग्रामप्रधान पद पर चुनाव लड़ रहे अनवर अली ने रायपुर के मौदहापारा में बैनर पोस्टर लगा कर मतदाताओं से वोट मांगते नजऱ आ रहे है। चुनाव भी जो कराये कम है। उसने बाकायदा प्रत्येक मतदाताओ को टीए डीए के आलावा प्रतिदिन के हिसाब से रोजी भी दे रहे हैं। जनता में खुसुर फुसुर है कि काश यहाँ भी कोई चुनाव होते ,कम से कम रोजी भी पते और कोरोंना से भी बचे रहते।
कंगना को मिली ख़ुशी
महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख से इस्तीफा लिए जाने से कंगना काफी खुश थीं, उनका कहना था कि महिलाओ पर अत्याचार करने वालो का यही हश्र होता है। अभी देखते जाइये कौन कौन चपेट में आते हैं। जनता में खुसुर फुसुर है कि देशमुख के इस्तीफे पर कंगना का ट्वीट आया और स्वामी चिन्मयानन्द को बरी किया गया तब कंगना जी कहाँ थीं। उस पर भी तो कुछ बोलिये।
नगर निगम में वेतन घोटाला
पिछले दिनों नगर निगम में वेतन आहरण घोटाला पकड़ में आया था। कई महीनो से एक कर्मचारी अपने रिश्तेदारों के खाते में पैसा ट्रांसफर करवा रहा था एक ईमानदार अकाउंटेंट ने इसका भंडाफोड़ कर दिया था। इसके जद में कई अधिकारी भी आ रहे थे लगता है मामला यही पर दब गया है। जनता में खुसुर फुसुर है कि अभी कई ज़ोन में भी इस प्रकार का घपला चल रहा है जितने कर्मचारियों के नाम से वेतन निकला जा रहा है उतने कर्मचारी काम करते नजऱ नहीं आते। शायद घपलेबाज कर्मचारी ने मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी की ये शेर याद कर रखा था कि -लगेगी आग तो आयेंगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है, अगर खिलाफ हैं तो होने दो, जान थोड़ी है।
मुख्तार अंसारी के लिए तामझाम
पिछले दिनों मुख्तार अंसारी को पंजाब जेल से यूपी जेल शिफ्ट किया गया। पंजाब से यूपी लाते वक्त पुलिस व्यस्था देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कोई वीआईपी जा रहा हो।कई राज्यों की पुलिस, देश की सभी मीडिया, बड़े बड़े अधिकारी अंसारी का महिमा मंडन कर रहे थे जैसे विजय माल्या, नीरव मोदी , ललित मोदी या देश छोड़कर भागे हुए किसी बैंक डिफाल्ट्रो को पकड़ लिया गया हो। जनता में खुसुर फुसुर है कि इतनी ही पुलिस नक्सलियों के पीछे पड़ गई होती तो शायद 22 जवान शहीद नहीं होते। जबकि यूपी में मुख़्तार अंसारी से बड़े बड़े डॉन बैठे हैं।
नाम के चक्कर में परेशानी
कभी कभी हमनाम होना भी परेशानी का सबब बन जाता है। पिछले दिनों आसिफ मेमन को एक मीडिया घराने ने टारगेट किया था लेकिन निशाना उल्टा पड़ गया डॉन के हमनाम होने के चक्कर में सीधा साधा आसिफ मेमन मोकाती राडार में आ गया। जबकि जिस केस में मीडिया ने उन्हें लपेटा उस केस से उनका कोई लेना देना ही नहीं था बहरहाल अब पुलिस को स्पस्टीकरण देने में वक्त गुजर रहा है। जनता में खुसुर फुसुर है कि गुमनाम होना बेहतर है हमनाम होने से।