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Update: 2022-05-19 12:34 GMT

दिल्ली। उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ( M. Venkaiah Naidu) ने पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) के लिए जन आंदोलन का आह्वान किया है. मोहाली स्थित चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि पर्यावरण की रक्षा का काम सिर्फ सरकार का नहीं है, इसके लिए हर व्यक्ति को अपनी भागीदारी तय करनी होगी. विकास की चाहत में मनुष्य ने जिस तरह से प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है, उसी का प्रतिकूल परिणाम है जो हमें भुगतना पड़ रहा है.

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'पर्यावरण विविधीकरण और पर्यावरण न्यायशास्त्र' विषय पर आयोजित इस कांफ्रेंस में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित उप राष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने कहा कि छात्रों को छोटी उम्र से ही कार्बन और इकोलॉजिकल फुट प्रिंट के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, आज भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए 200 से अधिक कानून हैं, लेकिन सिर्फ इनका होना ही पर्याप्त नहीं है. इन्हें लागू कर सख्ती से पालन कराया जाना चाहिए.

उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने कहा कि हमें लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना होगा, ताकि पर्यावरण संरक्षण जन आंदोलन बने और हमारा भविष्य अधंकारमय होने से बचे. इस तरह के सम्मेलनों के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमें विश्व स्तर पर एक दूसरे से सीखना होगा और अच्छी प्रथाओं को अपनाना होगा. उन्होंने इस तरह की पहल के लिए चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी की सराहना भी की.

प्राचीन सभ्यता का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें हमेशा प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना सिखाया गया है, इकोसिस्टम का संरक्षण हमारे डीएनए में है, इसी का परिणाम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत पूरी दुनिया का मार्गदर्शन कर रहा है. गांधी जी के शब्दों को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि 'प्रकृति के पास मनुष्य की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है लेकिन उसके लालच के लिए नहीं'

आईपीसीसी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उप राष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में त्वरित कदम नहीं बढ़ाया तो जलवायु परिवर्तन घातक होता जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक भले ही देश उत्सर्जन को कम करने के अपने वादों का पालन करे, फिर भी २१वीं सदी के दौरान ग्लोबल वार्मिंग १.५ डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी. उन्होंने पीएम मोदी द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया. साथ ही उच्च न्यायपालिका की सराहना करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि निचली अदालतों को भी एक पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.


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