जाला ड्राबी साड़ी बुनाई से विनोद हुए समृद्ध

Update: 2022-01-13 06:33 GMT

रायपुर। बुनकारी के परंपरागत व्यवसाय से जुड़े बुनकरों को जाला ड्राबी बुनाई ने समृद्धि की राह दिखाई है। राज्य में हाथकरघा के बुनकर जहां अपने सुनहरे सपनों को साकार कर रहे हैं। वहीं संचालित प्रशिक्षण कार्यक्रमों से लाभान्वित भी हो रहे हैं। ऐसा ही जाला ड्राबी डिजाइन साड़ियों की बुनाई करने वाले श्री विनोद का भी जीवन खुशहाल हो गया है। यह कहानी महासमुंद जिले के बसना विकासखण्ड के ग्राम पोस्ट भंवरपुर निवासी श्री विनोद कुमार देवांगन की है, जो बचपन से ही अपने परंपरागत बुनाई व्यवसाय का कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा तैयार की गई जाला ड्राबी डिजाइन वाली सिल्क साड़ियों की बाजार में बड़ी अच्छी मांग है। इस साड़ी की विशेषता यह है कि साड़ी में ताना और बाना दोनों का उपयोग तथा सिल्क धागा का बॉर्डर में गोल्डन जड़ी का इस्तेमाल होता है। साड़ी का आंचल जाला से बनाया जाता है तथा 5.50 मीटर तक की लम्बाई वाली साड़ी में छोटे-छोटे बूटे बनाए जाते हैं। ऐसी डिजाइन वाली एक साड़ी दो दिन में तैयार होती है। जिससे उन्हें बुनाई मजदूरी के रूप में 800 रूपए मिलते हैं।

उन्होंने बताया कि उनके पिताजी की तबियत खराब होने के कारण उन्हें 14 वर्ष की आयु से ही बुनाई कार्य करना पड़ा। शुरुआती दौर में महाजन से धागा लाकर साड़ी बुनाई का कार्य करते थे। उस दौरान एक साड़ी बनाने में 2 दिन का समय लगता था जिसकी मजदूरी 100 रुपए प्रति साड़ी मिला करती थी। जिससे उनके पूरे परिवार का बड़ी मुश्किल से खर्च चलता था। श्री विनोद ने बताया कि आज वे जागृति बुनकर सहकारी समिति के सदस्य हैं। बुनकर सेवा केंद्र रायगढ़ द्वारा समिति में जाला ड्राबी डिजाइन का प्रशिक्षण लेकर विभिन्न प्रकार की डिजाईन वाली साड़ियां तैयार कर रहे हैं। हाथकरघा विभाग से रंगाई प्रशिक्षण, टाई-डाई प्रशिक्षण और नवीनतम तकनीकी से कोसा कॉटन साड़ी और सलवार सूट पर डिजाइन का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इन साड़ियों की बुनाई से उनकी आमदनी दोगुनी हो गयी है। उन्होंने बताया कि हाथकरघा से प्रशिक्षण लेने के बाद विभिन्न प्रकार के डिजाइनों के वस्त्रों का निर्माण कर रहे हैं। जिससे उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है। वे कपड़ा बुनाई के साथ-साथ हेण्डलूम ताना बनाने का काम भी कर लेते हैं। श्री विनोद ने बताया कि पहले उनका मकान कच्चे मिट्टी का था। बुनाई मजदूरी से अच्छी आमदनी होने से अब उनका पक्का घर बन गया है। हाथकरघा वस्त्र बुनाई की आय से उनका परिवार खुशहाल हो गया है।

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