रोजाना जोखिम झेल रहे किराना दुकानदारों के लिए कारोबार चलाना मुश्किल
अतुल्य चौबे
रायपुर। उपभोक्ता सामग्री के ढेर, किसी भी सामान को निकालने के लिए दूसरे सामान को धकियाना, खाद्य पदार्थों की बोरियां, माउथ फ्र्रेशनर्स और शैम्पू की झूलती लडिय़ां, धूल भरे दुकान के कोने हाथ से लिखे प्लेकार्डस जिनमें सामग्री की कीमत लिखी हुई यह नजारा भारत के कमोबेश हर शहर के किराना स्टोर पर देखने को मिलेगा। लेकिन इसके पास की किराना दुकानों का प्रवेश भ्रामक लगेगा, इन्हें जनरलाइज्ड ट्रेडिंग स्टोर्स कहा जाता है जहां भारत का खुदरा कारोबार का भारी मात्रा में सामान रखा जाता है। देश में इस प्रकार के रिटेल ट्रेडिंग कारोबार करने वालों मे करीब 90 प्रतिशत अपने साथ जनरल ट्रेडिंग स्टोर्स भी रखते हैं शेष बचे 10 प्रतिशत या तो संगठित खाद्य सामग्री विक्रेता और सुपर मार्केट के तौर पर हैं जिनका अपने किराना स्टोर्स जहां वे खाद्य सामग्री से लेकर हर घरेलू उपयोग की चीजों की आपूर्ति करते हैं।
कोरोना काल में साबित हुई उपयोगिता
ऑनलाइन रिटेलर्स और अत्याधुनिक चेन रिटेल स्टोर्स की कड़ी चुनौतियों के सामने, वे न केवल जीवित रहने में सफल रहे, बल्कि कोरोना वायरस महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद उन्होंने अपनी वापसी की। जहां आधुनिक डिपार्टमेन्टल स्टोर और ऑनलाइन रिटेलर्स लॉकडाउन के दौरान संघर्ष करते रहे, वहीं किराना स्टोर उपभोक्ताओं की जरुरत पूरा करने में फ्रंट रनर के रूप में उभरे। भले ही चीजों में काफी कमी आई हो, लेकिन देशभर में मौजूदा 66.5 लाख किराना स्टोर्स ने उपभोक्ताओं का जबरदस्त विश्वास हासिल किया है।
सुपर बाजारों के दौर में मुसीबत बढ़ी
शहर-शहर सुपर बाजार और चेन रिटेल स्टोर्स खुलने से छोटे किराना दुकानदारों को अस्तित्व के लिए लडऩा पड़ रहा है। सुपर बाजार में मिलने वाली छूट और हर जरुरत की चीज एक ही छत के नीचे मिलने से ग्राहक टूटने लगे हैं। बंधे और महीने का पूरा ग्रासरी खरीदने वाले ग्राहक भी सुपर बाजार से खरीदारी करने लगे हैं ऐसे में छोटे किराना व्यवसायियों इनकम लगातार घटते जा रहा है। सुपर बाजार वालों को जहां आर्थिक दिक्कत नहीं रहती वहीं किराना व्यवसाय वालों को लोन के सहारे अपने व्यवसाय को जिंदा रखना पड़ता है। ग्राहकी घटने से इनके सामने लोन चुकाने के साथ कारोबार को जिंदा रखने की भी चुनौती है। इस पर उत्पादक कंपनियों की व्यापार पॉलिसी ने इनकी कमर और तोड़ दी है। इस पर बड़े पूजीपंतियों के रिटेल चेन मार्केट में उतरने से भी किराना व्यवसाय दम तोडऩे लगी हैं। हालाकि लोगों की खुदरा रोजमर्रे की ग्राहकी के सहारे किराना व्यवसायी धंधे को जिंदा रख पा रहे हैं।
उत्पादक कंपनियों की दोहरी पॉलिसी
उत्पादक और सप्लायर एंजेसिंयों की सुपर बाजार और छोटे किराना व्यवसायियों के लिए दोहरे मापदंड अपनाए जा रहे हैं इसका किराना दुकानदारों पर सीधा असर पड़ रहा है। इनकी डिस्काउंट पालिसी सुपर बाजार के लिए अलग और रिटेलर्स के लिए अलग होती हैं। सुपर बाजारों को छोटे किराना दुकानों से दुगुने मार्जिन पर प्रोडक्ट सप्लाई किया जाता है वहीं किराना दूकान को जो मार्जिन मिलता है उसमें वह ग्राहकों को सुपरबाजार की तरह ज्यादा डिस्काउंट नहीं दे पाता। परिणाम स्वरूप ग्राहक सुपर बाजार से ही खरीदारी के लिए आकर्षित होता है। राजधानी के राजातालाब स्थित गोपाल किराना एंड जनरल स्टोर्स के संचालक ने बताया कि बड़े पूंजीपतियों के रिटेल चेन में कूदने से छोटे कारोबार खत्म हो जाएंगे। इनकी पालिसी छोटे दुकानदारों के लिए घातक है। ये सुपरबाजार को 33 फीसदी मार्जिन के साथ प्रोडक्ट उपलब्ध कराने की बात कर रहे हैं वहीं छोटे किराना दुकानदारों को किसी उत्पाद में अधिकतम 12 प्रतिशत मार्जिन ही मिलता है। ऐसे में जहां सुपरबाजार वाले बड़े डिस्काउंट के साथ उत्पाद ग्राहकों को उपलब्ध करा सकते हैं वहीं किराना व्यवसायी चाहकर भी ग्राहकों को बड़ी छूट नहीं दे सकता। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि सुपरबाजार में एक साबुन के पांच नग का पैक 95 रुपए में और किराना दुकानों में उसी साबुन का चार नग का पैक 110 रुपए में उपलब्ध कराया जाता है। इस तरह की दोहरी पालिसी से छोटे दुकानदार सड़क पर आ जाएंगे। बड़ी कंपनियों के पास कारोबार चलाने धन की कमी नहीं होती जबकि छोटा कारोबारी अपने एक धंधे पर ही निर्भर होता है जिसके लिए वह बैंक से लोन लेता है, बैंक की किश्तों के साथ व्याज चुकाने के अलावा उसी व्यवसाय से उसे अपने परिवार के खर्चे भी पूरे करने होते हैं। ऐसे में एक छोटा व्यापारी किस तरह कारोबार चला सकेगा। कैसे वह अपने सपने पूरे कर सकेगा। सरकार को ऐसी डिस्काउंट पालिसी बनानी चाहिए जिससे छोटे कारोबारी भी धंधा कर सकें।