गोधन न्याय मिशन के प्रबंध संचालक डॉ. अय्याज तम्बोली ने सभी कलेक्टरों, संभागायुक्तों को पत्र लिखकर गौठानों में पारंपरिक कार्यक्रम के साथ ही गौठान प्रबंधन समिति, स्व-सहायता समूह, ग्रामीण जनप्रतिनिधियों से हरेली तिहार के दिन गौठानों में कार्यक्रमों के आयोजन की रूपरेखा के संबंध में चर्चा करने को कहा है। हरेली तिहार के दिन गौठानों में पशुओं के स्वास्थ्य परीक्षण एवं टीकाकरण के लिए विशेष कैम्प का भी आयोजन किया जाएगा। गौठानों में पशुओं को नियमित रूप से भेजने, खुले में चराई पर रोक लगाने तथा पशु रोका-छेका अभियान में सभी ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी को लेकर भी चर्चा की जाएगी। हरेली तिहार के दिन किसानों को भी गौठानों में विशेष रूप आमंत्रित कर खेती-किसानी के संबंध में उन्हें समसमायिक सलाह देने के साथ ही उन्हें वर्मी कम्पोस्ट का खेती में उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। गौठानों के प्रबंधन, क्रय किए गए गोबर, उत्पादित वर्मी कंपोस्ट के रखरखाव सुरक्षा को लेकर भी चर्चा की जाएगी तथा गौठानों में गोबर, वर्मी कम्पोस्ट आदि के सुरक्षित रख-रखाव के लिए छायादार चबूतरा, तिरपाल आदि के प्रबंध की पहल की जाएगी। हरेली तिहार के मौके पर जनप्रतिनिधियों, गौठान प्रंबंधन समिति के सदस्यों, स्व-सहायता समूह की महिलाओं एवं ग्रामीणों द्वारा फलदार, छायादार पौधों विशेषकर कदम का रोपण किए जाए।
गौरतलब है कि राज्य की महत्वकांक्षी सुराजी गांव योजना अंतर्गत नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी का संरक्षण व संवर्धन किया जा रहा है। इसके गरवा कार्यक्रम के तहत राज्य 10624 गौठानों की निर्माण की स्वीकृति दी गई जिसमें से 8408 गौठान निर्मित एवं संचालित हैं। इन गौठानों मंे 20 जुलाई 2020 हरेली पर्व से 2 रूपए किलो दर से गोबर की खरीदी की शुरूआत गोधन न्याय योजना के तहत की गई थी। गौठानों में क्रय गोबर से अब तक 20 लाख क्विंटल से अधिक वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, सुपर प्लस कम्पोस्ट महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा उत्पादित किए जा चुके हैं, जिसके चलते राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा मिला है। गोधन न्याय योजना राज्य के ग्रामीण अंचल में बेहद लोकप्रिय योजना साबित हुई है। इस योजना के तहत पशुपालक ग्रामीणों से लगभग दो सालों में 150 करोड़ से अधिक की गोबर खरीदी की गई है, जिसका सीधा फायदा ग्रामीण पशुपालकों को मिला है। क्रय गोबर से वर्मी खाद का निर्माण एवं विक्रय से महिला स्व-सहायता समूहों और गौठान समितियों को 143 करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान किया जा चुका है।
पशुओं के संरक्षण संवर्धन के उद्देश्य से गांवों में गौठानों की स्थापना से पशुधन प्रबंधन के साथ-साथ ग्रामीणों को आय का एक नया ठौर मिला है। गौठानों में पशुओं की देखभाल, चारा-पानी का निःशुल्क प्रबंध होेने से पशुपालन के खर्च में कमी आयी है। गौठान पशुधन के रोका-छेका अभियान में भी काफी मददगार साबित हो रहे हैं। राज्य में 10 जुलाई से संचालित रोका-छेका अभियान में ग्रामीणों की भागीदारी और गौठान प्रबंधन समिति की मदद से खुले में चराई प्रथा पर काफी हद तक विराम लगा है।