रायपुर। मनु और सतरूपा की तपस्या रावण की शिव भक्ति भगवान के प्रति उनका समर्पण और विश्वास के दृष्टांत का वर्णन करते हुए संत शंभूशरण लाटा ने कहा कि जीवन में तपस्या इस प्रकार से करनी चाहिये कि भगवान साक्षात प्रकट हो जाये और वरदान के मांगने पर स्वंय को भी मांगने की बात कहते हैं। ऐसा केवल भगवान ही कर सकते है दूसरा अन्य कोई नहीं। भगवान की कथा और लीला को समझने के लिये बार -बार उसका श्रवण करना पड़ता है उसे जीवन में आत्मसात करना होता है और उसे अपने चरित्र में उतारना पड़ता है तभी भगवान की कथा समझ में आ सकती है। परमात्मा केवल एक ही है वह अपनने भक्तों की रीति और प्रीति के अनुरूप अपना रूप बदले लेते हैं शिव भक्तों के लिये वे शिव राम भक्तों के राम और कृष्ण भक्त के लिये वे भगवान कृष्ण का अवतार लेते हैं। उन्होंने कहा कि चमत्कार होते हैं लेकिन उसके लिये वैसी सिद्धी साधना करनी पड़ती है वर्तमान समय में थोड़ा सा चमत्कार दिखा कर स्वंय को भगवान के रूप में महिमा मंडित करने लगते हैं।
लाटा जी ने कहा कि रावण से बड़ा कोई शिव भक्त, उसके जैसा विद्वान, तपस्वी कोई दूसरा नहीं हो सकता लेकिन यह सब प्राप्त करने के बावजूद उसने उसका उपयोग धर्म की स्थापना करने के बजाए अधर्म में किया। उसके राज में भ्रष्टाचार से लेकर न जाने कितने प्रकार के अपराध होने लगे। वह स्वयं को भगवान मान बैठा है और इसलिए अपनी जगह वह किसी और को पुजने नहीं देता था। उसके पापों के भार से धरती भी कांपने लगी थी, ऐसे में भगवान को भी उसका वध करने के लिए मनुष्य अवतार लेना पड़ा। मनुष्य अवतार का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य रुप में ही जो कार्य संभव हो सकते है वह भगवान से भी संभव नहीं हो सकते इसलिए उन्हें मनुष्य का अवतार लेना पड़ा। शंभूशरण लाटा जी ने कहा कि भगवान को केवल प्रेम और भक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है, उन्हें प्राप्त करने का दूसरा अन्य कोई मार्ग नहीं है। लेकिन प्रेम निच्छल और स्वार्थहीन नहीं होना चाहिए, मन में केवल भगवान की ही मूर्ति होने चाहिए। आज के युग में प्रेम केवल दिखावे का है और अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए प्रेम किया जा रहा है, फिर चाहे वह भगवान से हो, मित्र से हो या परिवार से ही क्यों न हो दिखावे के अलावा और कुछ नहीं है। प्रेम शैतान को भी भगवान बना देता है और प्रेम से भगवान भी प्रकट हो जाते है, यह कोई समाधान वस्तु नहीं है।
उन्होंने कहा कि पति और पत्नी के बीच में भी प्रेम का महत्व सबसे महत्वपूर्ण है। पति को पत्नी से कैसा प्रेम होना चाहिए और पत्नी को पति के अनुकुल कैसे प्रेम करना चाहिए यह रामचरित्र मानस में से पता चलता है। प्रेम के साथ-साथ धैर्य का होना भी जरुरी है। यदि परिणाम नहीं आ रहा है तो धैर्य नहीं खोना चाहिए और दुखी नहीं होना चाहिए। ऐसे संकट में गुरु या संत की शरणों में जाकर अपने दुख और सुख दोनों को बताकर अपने मन को हल्का करना चाहिए। ऐसे समय में संत और गुरु ही दुखों का निवारण करते है। राजा दशरथ को पुत्र नहीं होने पर उन्होंने गुरु वशिष्ट की शरण ली और अपने दुख और सुख सबको उन्होंने बयां कर रोना शुरु किया। कोई ऐसा स्थान होना चाहिए जहां पर हम अपने जीवन के दुखों के आंसुओं को बहा सकें इससे मन हल्का हो जाता है।