ये कहानी तीन सहेलियों की: कबाड़ से जुगाड़ कर बनाया खुद का ब्रांड, जाने कैसे?
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वाराणसी। ये कहानी है, बनारस की उन तीन सहेलियों की, जिन्होंने कोरोना में नौकरी खोई लेकिन हौसला नहीं हारीं. बल्कि कुछ अलग करने का जुनून लेकर कबाड़ से हुनर का धागा खोजकर तरक्की का तानाबाना बुन डाला. आज खुद के ब्रांड के साथ इनकी नई पहचान समाज के लिए नजीर है. तरक्की का ऐसा सोना खोजा कि खुद का ब्रांड बना डाला. ब्रांड का नाम है-पुटुकवा. अब इस ब्रांड पुटुकवा की गूंज महिलाओं के बीच सुनाई देने लगी है. बनारस की इन ये तीन सहेलियां हैं- तूलिका, मीनम और पूर्णिमा.
बचपन की इन तीनों दोस्तों ने एक साथ मुम्बई से पढ़ाई की. अच्छे पैकेज पर प्राइवेट सेक्टर में नौकरी भी मिल गयी, लेकिन कोरोना की आर्थिक मंदी में फंसकर नौकरी छूट गई. लौटकर वाराणसी आईं लेकिन निराश होने के बजाय इस बार अपना खुद का कुछ करने का इरादा बनाया. व्यापार के लिए रुपए चाहिए थे. इसलिए तीनों ने काशी की पीढ़ियों पुराने हैंडी क्राॅफ्ट कला को जरिया बनाया. कबाड़ में पड़ी बेकार चीजों के इस्तेमाल से आकर्षक आइटम बनाने शुरू किये. तुलिका बताती हैं कि अलग-अलग मटेरियल से इन्होंने ये आइटम बनाएं. जिसमें लकड़ी के खिलौने, नोटबुक, कागज के ईयर रिंग और ज्वेलरी, पेंटिंग, छोटे-छोटे कालीन और वॉल हैंडीक्राफ्ट आदि शामिल हैं.
नीलम बताती हैं कि एक साल बाद प्रयास रंग लाने लगा और शहर की बड़ी प्रदर्शनियों के लिए बुलावे आने लगे. वहीं वंदना कहती हैं कि अब इतने आर्डर मिलने लगे हैं कि उसे पूरा करना भी समय से एक चुनौती है. लेकिन वो लगातार इसे पूरा कर रही हैं. तीनों ने बातचीत में एक ही बात कही कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है. विपदा से घबराना नहीं बल्कि लड़ना चाहिए. पीएम मोदी के मंत्र आपदा में अवसर को प्रेरणा मानते हुए अपने ये इरादा बनाया और आज हमे खुशी है कि अब हम दूसरों को भी नौकरी दे सकते हैं.