मटन-सब्जी मार्केट में भी मची है लूट

Update: 2021-08-14 05:01 GMT
  1. तराजू-कांटा की जांच नही होने से खूब चल रही डंडीमारी, इलेक्ट्रोनिक कांटे में भी कम तौल
  2. नापतौल विभाग की अनदेखी से उपभोक्ता हो रहे लूट के शिकार - मटन-मछली-मुर्गा के साथ हरी सब्जी साग-भाजी खरीदने वाले उपभोक्ता नापतौल विभाग की अनदेखी और उदासीनता के चलते हर रोज बाजार में जाकर लूट के शिकार हो रहे है। नियमित साग-सब्जी की खरीदी तो करनी ही पड़ती है। चाहे आप शाकाहारी हो या मांसाहारी। सब्जी की खरीदी करने बाजार तो जाना ही पड़ेगा। बाजार जाते ही उपभोक्ता कारोबारियों के हाथों हंसते हुए लूट के शिकार हो जाते है। क्योंकि ज्यादा मोल भाव करने के बजाय जो भाव फिक्स कर रखा है, वहीं से सामान खरादी कर ठगी का शिकार होकर घर लौट जाते है। नापतौल विभाग का यहीं ढर्रा चलता रहा तो उपभोक्ताओं के साथ कभी भी न्याय नहीं हो पाएगा। यह विभाग मात्र लाखों करोड़ों तनख्वाह बांटकर सरकार के लिए सफेद हाथी साबित होता रहेगा।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। नापतौल विभाग के संरक्षण के चलते मटन-मछली-मुर्गा मार्केट के तराजू बांट भगवान भरोसे चल रहे है। जिसका न तो नगर निगम जांच करता है और न ही नापतौल विभाग, उपभोक्ताओं को ठगी का शिकार बनाने के सबसे आसान तरीका तराजू को झुका कर देने के बाद भी मांस-मटन-मछली, सब्जी भांजी खरीदी में चूना लगना तय है। उपभोक्ता कितना भी टेलेंटेड, जानकार और पढ़ा लिखा क्यों न हो मटन-मछली, सब्जी मार्केट जाते ही सारी होशियारी धरी रह जाती है। मटन मार्केट में बाहर और अंदर टंगे ताजा मटन और सिरी पाए, कलेजी, किमा, नाल की मांग के अनुसार ग्राहकों को जो मटन मिलता है, उसमें कितनी होशियारी से डंडी मारा जाता है, कोई भी पकड़ नहीं सकता। क्योंकि उनका तराजू-बांट या इलेक्ट्रानिक कांटा पहले से ही सेट रहता है। क्योंकि मटन खरीदने वाला अपने मनपसंद मटन मिलने को ज्यादा महत्व देता है। न कि कम वजन की निगरानी में समय नहीं जाया करता। मटन मार्केट में नियमित उपभोक्ताओं का दुकान फिक्स होने के बाद भी कभी अन्य दुकान से मटन खरीदने पर कम वजन मिलने पर दूसरे दिन शिकायत करने पर विवाद की स्थिति निर्मित होती है। इस कारण ज्यादातर उपभोक्ता कम वजन की शिकायत ही नहीं करते है। वहीं हाल मछली मार्केट जो गली-मेहल्ले और बाजार में लगते है वहां फूल डंडी मार अभियान चलता है। मछली की खरीदी के बाद साफ-सफाई करने के बाद एक किलो मछली की जगह उपभोक्ता को मात्र तीन पाव ही मछली मिलता है। बाकी का मटेरियल 250 वेस्ट निकल जाता है। अब उपभोक्ता को तो पता नहीं कि 250 वेस्टेज निकला है या सौ ग्राम की डंडी खुलेआम मार दी गई है। ग्राहक तो पूरे एक किलो का पैसा देकर 750 ग्राम मछली लेकर ठगा सा महसूस करते हुए मछली मार्के ट जाकर खरीदी करने पर खुद को कोसते रहता है।

थोक मछली मार्केट में तौल कांटा भगवान भरोसे

देवेंद्र नगर स्थित थोक मछली मार्केट में तौल कांटा भगवान भरोसे चल रहा है। फुटकर मछली विक्रे ताओं को जो थोक बाजार वाले अपने कांटा तराजू से तौल कर दे दिया वही सच माना जाता है। कम वजन की शिकायत करने पर बाजार के लोग मारपीट पर उतारू हो जाते है। मजबूरन फुटकर विक्रेताओं को कम वजन लेकर पीछा छुड़ाना पड़ता है। उसके बाद जो कम मछली मिला उसका कसर फुटकर कारोबारी उपभोक्ताओं से निकालते है। मछली मार्केट में नापतौल विभाग की टीम आज तक तराजू-कांटे की जांच के लिए नहीं पहुंचा है। नापलौत विभाग की उदासीनता के चलते उपभोक्ताओं के साथ फुटकर व्यापारियों को कम वजन का दंश वर्षो से झेलना पड़ रहा है।

शिकायत पर सुनवाई नहीं

फुटकर व्यापारियों ने कम वजन मिलने के सैकड़ों बार शिकायत नापतौल विभाग में लिखित और मौखिक रूप से करने के बाद भी नापतौल विभाग के बड़े अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे है। मछली मार्केट में बाहर से मछली आने के कारण जो तौल लेकर आते है उसी बिल्टी पर माल की सप्लाई देते है। चाहे रास्ते में माल निकल गया हो या चोरी हो गया हो इसकी कोई रिस्क कवर थोक विक्रेताओं को नहीं मिलता। मांस-मटन-मुर्गा-मछली और सब्जी के कारोबार में तौल कांटे की नियमित मानिटरिंग नहीं होने से डंडी मारने वालों के हौसले बुलंद है। तौल कांटे में डंडी मारने की आदत अब कारोबारियों के सेहत में शामिल हो चुका है। थोक कारोबारी कितना भी ईमानदारी से माल सप्लाई देने की गारंटी दे, लेकिन दोबारा तौल कराने पर सच सामने आ जाएगा। फुटकर कारोबारी विवाद की स्थित से बचने के लिए रोज हजार, 5 सौ का चूना लगवा लेते है और इसका कसर उपभोक्ताओं से निकालते है। इस तरह मटन-मछली मुर्गा, सब्जी बाजार में डंडी मारने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। क्योंकि राजधानी का कर्ताधर्ता नापतौल विभाग सेटिंग के चलते तराजू-कांटे की जांच ही नहीं करता हैं।

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