Satirical poem : चोर का सोच

Update: 2024-07-18 03:55 GMT

रायपुर raipur। राजनांदगांव निवासी जनता से रिश्ता के पाठक Roshan Sahu रोशन साहू 'मोखला' ने व्यंग्य कविता ई-मेल किया है। chhattisgarh news

डायरी कलम साथ लिए, मिश्राजी मेरे घर आए ।

अखबार की कटिंग दिखलाए ,जो साथ थे लाए।।


रहस्य की चादर का हुआ ,तभी सहसा अनावरण।

हँसने की बारी मेरी थी, हुआ अचंभा सुन कारण।।


मराठी लेखक नारायण सुर्वे के घर चोर घुस आया।

फोटो नाम देखकर अपनी करनी पे रोया पछताया।।


चोरी का सामान उसने तो, सारा का सारा लौटाया।

साहित्य का सामर्थ्य देखो ,माफीनामा लिख आया।।


तभी सोचूं कि गुरुजी ,दिन रात कविता लिखते हो ।

कोई चोर घर न आए , इसलिए कागज घिसते हो।।


पगार के लिए तुम रस्ता,एक तारीख का तकते हो।

घर की सेफ्टी के लिए भाई,नज़र दूर की रखते हो।।


नेतागिरी ठेकेदारी नही करूंगा,अब मैं भी लिखूंगा।

गीत कविता लिखना सिखाना,आपसे ही सीखूँगा।।


लिख न पाया तो कुछ रचनाओं का जुगाड़ करना है।

शारदे का हंस ठीक रे बाबा,उल्लू अब ना बनना है।।


सच यार लेखक होना,कवि बनना सबसे अच्छा है।

प्रारंभिक स्तर के चोर का, सोच कितना सच्चा है।।

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