प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाने हाल नहीं

Update: 2021-03-02 05:56 GMT

राज्य सरकार का नाम खराब कर रहा स्वास्थ्य विभाग

मेकाहारा बना मरीजों का सब स्टेशन,यहाँ से मरीजों को मनचाहे निजी अस्पतालों में भेजा जाता है

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। प्रदेश में इन दिनों स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाने हाल नहीं है। स्वास्थ्य अमला मनमानी पर उतर आया है। दूर- दराज के भोले भाले ग्रामीण बेहतर इलाज के लिए रायपुर स्थित मेकाहारा आते हैं लेकिन उन्हें क्या पता कि यहाँ सुविधा के नाम पर असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा बल्कि इन गरीबों को उलटे परेशानी से दो-चार होना पड़ता है. ऐसा मालूम होता है कि स्वास्थ्य अमला संवेदनहीन हो गया है। मेकाहारा मरीजों का सब स्टेशन बन गया है प्रदेश के विभिन्न इलाकों से मरीज यहाँ इकठ्ठा होये हैं और बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पतालों में रिफर कर दिए जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग गहरी नींद में है इसका फायदा सरकारी अस्पताल वाले तो उठा रहे हैं ही साथ में लगे हाथ निजी अस्पताल वाले भी बहती गंगा में हाथ धोने में पीछे नहीं रह रहे हैं। वो निजी अस्पताल जिसके संचालक आईएएस,आईपीएस या रसूखदार विधायक होते हैं उनके अस्पताल में जो बिल बन गया वो ही फाइनल होता है. एक पैसा भी कम नहीं किया जाता चाहे जिससे भी अप्रोच लगा लिया जाये।और तो और परिजनों को बिना अस्पताल का भुगतान किये लाश देने में भी आनाकानी करते हैं। कुछ निजी अस्पताल ऐसे भी हैं जो किसी के अप्रोच से बिल में कंसेशन जरूर कर देते लेकिन उनका बिल पहले से ही भारी भरकम रहता है।एक तरफ भूपेश बघेल हैं जो गरीबो की भलाई के लिए दिन रात काम कर रहे हैं और दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग है जो सरकारी और निजी अस्पतालों पर नकेल कसने में पीछे है।

दवाइयों में भी हेरा फेरी

दवाइयां दस दिन की लिखी जाती है और दिया तीन दिन के लिए जाता है। ऊपर से मरीज के परिजनों से दस दिन की दवाई प्राप्ति की पर्ची में साइन करा लिया जाता है।एक मरीज के परिजन ने बताया कि मरीज के लिए दस दिन की दवाई लिखी गई थी और सिर्फ तीन दिन की दवाई दी गई और साइन दस दिन दवाई देने की पर्ची में साइन करा लिया गया. इस प्रका दवाई देने में भी काफी हेराफेरी किया जा रहा है।

स्वास्थ्य विभाग की दुर्गति क्यों ?

स्वास्थ्य अमले का फेल होने का प्रमुख कारण राजनेता और रसूखदार अधिकारियों के निजी अस्पताल चलाना है इनके धौंस या रसूख के वजह से स्वास्थ्य विभाग का चुप रहना मज़बूरी हो सकती है लेकिन प्रश्न ये उठता है कि क्या स्वास्थ्य मंत्री भी इनके धौंस के आगे घुटने टेकने मजबूर हैं ? यह असंभव है लेकिन हालत यही बयान कर रहे हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में इन अधिकारियो के स्वामित्व वाले या पार्टनरशिप में अस्पताल चल रहे हैं। क्या यही वजह है जिसके कारण निजी अस्पताल वाले खुली लूट मचा रखे हैं। एक बार अस्पताल में घुसे यानी जिंदगी भर की कमाई इन अस्पताल मालिकों के जेब में। यह भी देखा गया है की नोइजी अस्पताल वाले डाक्टर वही दवाई लिखते हैं जो उनके स्वामित्व वाले मेडिकल स्टोर में उपलब्ध रहते हैं। बाजार में जो इंजेक्शन 1500 की अति है वही इंजेक्शन 5000 रूपये में इनके द्वारा संचालित मेडिकल स्टोर में मिलते हैं। मरीज की जान को खतरा बता कर बेतहाशा कमाई करने से ये पीछे नहीं रहते। संवेदनहीनता में ये कसाई को भी पीछे छोड़ देते हैं ।

सरकार का नाम खऱाब करता स्वास्थ्य अमला

प्रदेश सरकार का नाम खराब करने में स्वास्थ्य अमला कोई कोर- कसर बाकी नहीं रखना चाहता मुख्यमंत्री की योजनाओं पर स्वास्थ्य अमला ने पतीला लगाया। सरकारी अस्पताल में मरीजों को जबरदस्ती इलाज के गफलत में रखकर निजी अस्पतालों के सुझाव दिए जाते है।क्योकि शहर के कई निजी अस्पताल छुटभैय्या नेताओं और आईपीएस अधिकारियों के है। बड़े छुटभय्ये नेताओं की और बड़े अधिकारियों के अपने निजी अस्पतालों के होने से सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज सही ढंग से नहीं किया जाता । मरीजों का सबसे बड़ा हब है मेकाहारा अस्पताल, जहां मरीजों को निजी अस्पताल में धकेलने के लिए डॉक्टर मजबूर करते है। निजी अस्पतालों का जितना बड़ा एमरजेंसी वार्ड उतना ही बड़ा बनता बिल। कोरोना आपात काल का हवाला देकर निजी अस्पतालों को तरजीह दी गई।

जूनियर डाक्टर ही मरीजों का उपचार करते हैं

सरकारी अस्पताल में मरीजों को किसी भी तरह का बहाना बताकर जैसे- तैसे उनको निजी अस्पतालों में भेजा जाता है। ऐसा प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों का हाल हो गया है/ राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा को अव्यवस्थाओं का मर्ज लग गया है। यही मर्ज मरीज और उनके परिजनों को दर्द दे रहा है। हद तो तब हो जाती है जब इमरजेंसी में आए मरीजों को स्ट्रेचर तक नहीं मिल पाते। जो स्ट्रेचर हैं भी वो टूटे-फूटे हैं। लगभग दो माह पहले ही 20 स्ट्रेचर और 20 व्हीलचेयर अस्पताल में भेजा गया था, लेकिन इनकी हालत भी देखने लायक है। मेकाहारा अस्पताल शहर के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार है। यहां न केवल शहर बल्कि दूरस्थ इलाकों से और छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों तक के मरीज इलाज के लिए यहां आते हैं। लेकिन, जब से अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया है, व्यवस्थाएं चौपट होती दिख रही है। इनमें स्टे्रचर व व्हील चेयर की कमी भी शामिल है। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा की दुर्गति किसी से छुपी नहीं है। जहां स्ट्रेचर टूटे हुए है और मरीज़ों को दर बदर की ठोकरें खानी पड़ रही है। मरीज़ों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में समय पर सही उपचार नहीं मिलने से बीमारी गंभीर हो रही है। इलाज की पूरी जिम्मेदारी प्रशिक्षु डॉक्टरों पर है। केस बिगडऩे पर ही सीनियर डॉक्टर मरीजों को देखते हैं।

जिला अस्पताल बना कबाड़ खाना

जिला अस्पताल में डॉक्टरों के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यहां मरीजों के लिए वार्ड में में लगे बिस्तर कबाड़ हो रहे हैं और स्ट्रेचर टूटे हुए पड़े हैं। स्ट्रेचरों के अभाव में मरीजों को यहां गोद में उठाकर लाना पड़ता है। देखरेख के अभाव में इमरजेंसी कक्ष के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। जिला अस्पताल परिसर में मरीजों की बढ़ती तादात को देखते हुए तकरीबन दो साल पहले नवीन इमरजेंसी कक्ष का निर्माण कराया गया था। मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सेवाएं मुहैया हो सकें, इसके लिए इमरजेंसी परिसर में चार अत्याधुनिक स्ट्रेचर और मरीजों को आपातकाल में भर्ती किए जाने के लिए आधुनिक सुविधाओं वाले बिस्तर मंगाए गए थे। विकलांग मरीजों को आसानी से उपचार के लिए चिकित्सक के पास तक ले जाया जा सके, इसके लिए बाकायदा रैंप बनवाकर व्हील चेयर मंगाई गई थी। देखरेख के अभाव में मरीजों की सुविधाओं के लिए उपलब्ध कराई गईं ये सभी व्यवस्थाएं कबाड़ हो रही हैं।

अव्यवस्था का आलम

सरकारी अस्पतालों में चारो तरफ अव्यवस्था का आलम है। स्थिति यह है कि इन दिनों नवीन इमरजेंसी में रखे सभी स्ट्रेचर कबाड़ हो चुके हैं। मरम्मत न कराए जाने के कारण इनके कलपुर्जे टूट रहे हैं। स्ट्रेचरों के अभाव में गंभीर हालत में लाए गए मरीज को हाथों में अथवा कंधों पर लादकर इमरजेंसी में मौजूद चिकित्सक तक ले जाया जाता है। स्ट्रेचर के कलपुर्जे भी निकले आधुनिक सुविधा से लैस अधिकांश बेड में से उनके कलपुर्जे अलग हो चुके हैं। बिस्तरों पर जो गद्दे बिछाए गए हैं उनमें से अधिकांश गद्दे भी फट चुके हैं। इमरजेंसी कक्ष में सुविधाओं के बदहाल होने का सबसे बड़ा खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। कभी-कभी तो मरीजों के परिजनों को स्ट्रेचरों के लिए काफी देर तक इंतजार भी करना पड़ता है। डॉक्टरों का कहना है कि स्ट्रेचर और बेड की मरम्मत कराई जा रही है। कुछ स्ट्रेचर दुरुस्त कराए गए हैं। मरीजों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। फिर भी अगर कुछ कमी है तो स्वयं इमरजेंसी कक्ष में जाकर जायजा लिया जाएगा और अव्यवस्थाओं को दूर कराया जाएगा।

कोविड टीकाकरण में निजी अस्पतालों का निराशाजनक प्रदर्शन

एक साल से कोरोना महामारी के भय से लोगों को उबारने सरकारी स्तर पर जिन चार स्थानों पर टीकाकरण की व्यवस्था की गई, उन अस्पतालों में अव्यवस्था के चलते सुव्यवस्थित टीकाकरण नहीं हो पाया। पूर्व में पंजीकृत लोगों को टीकाकरण के लिए बुलाया गया, वे अपने बारी का इंतजार करते रहे, लेकिन उनका नंबर ही नहीं आया। निजी अस्पतालों में प्रबंधन का रूझान सशुल्क टीकाकरण वालों की तरफ रहा। जिसके कारण नि:शुल्क टीकाकरण पूरी तरह फेल हो गया।

वेटिंग ख़त्म होने का दावा

मेकाहारा में एम आर आई , सीटी स्कैन ,सोनोग्राफी व कलर डाप्लर जाँच के लिए अभी 10-15 दिन की वेटिंग चल रही है। इस वजह से मरीजों को काफी तकलीफ उठानी पड़ती है उनकी और दूर-दराज़ से आये उनके परिजनों की भी परेशानी बढ़ जाती है। प्रदेश शासन द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भरी भरकम बजट का प्रावधान होने के बावजूद स्वास्थ्य अमला निजी अस्पतालों से मिलने वाले कमीशन के चलते नई मशीन मांगने में हिला हवाला कर रहे हैं।और निजी अस्पताल मालिकों को इसका सीधा फायदा करा रहे हैं। हालांकि मेकाहारा प्रबंधन के सूत्रों से जानकारी मिली है कि नई ?म आर आई व सीटी स्कैन मशीन मांगने हेतु प्रस्ताव भेजा जायेगा ताकि मरीजों को जाँच के लिए ज्यादा दिन इन्तेजार न करना पड़े,लेकिन कब तक नई मशीनों की खरीदी होगी कहा नहीं जा सकता। यही जाँच निजी अस्पतालों में तुरंत हो जाती है। वहां कोई वेटिंग नहीं होती 

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