chhattisgarh news वर्तमान में कोरबा जिले के ग्राम पेण्ड्रीडीह में रहने वाला पहाड़ी कोरवा युवक दुखुराम को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सहायक शिक्षक के रूप में नौकरी प्रदान की गई है। वह कोरबा मुख्यालय के सुदूरवर्ती क्षेत्र श्यांग-अमलडीहा से लगे ग्राम आमाडांड के शासकीय प्राथमिक शाला में बच्चों को अध्यापन कराता है। प्रतिदिन ग्राम पेण्ड्रीडीह से अपने स्कूल आमाडांड की दूरी बाइक से तय करने वाले दुखुराम ने बताया कि वह समय पर स्कूल पहुंच जाता है। पेण्ड्रीडीह में उनके रिश्तेदार रहते हैं, इसलिए यहीं निवास करता है। उन्होंने बताया कि शुरूआत में नौकरी करना कठिन लगा क्योंकि उसे जंगल में रहने की आदत थी। लेकिन धीरे-धीरे आदत बदल गई और स्कूल माहौल में रहने से काम करने में झिझक भी मिटने लगी।
गौरतलब है कि राज्य शासन द्वारा आदिवासी विकास विभाग के माध्यम से समय-समय पर जिले में निवासरत विशेष पिछड़ी जनजाति परिवार के सदस्यों को उनकी योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी से जोड़कर उनके जीवन स्तर को बदलने का कार्य किया जाता है। पहाड़ी कोरवा दुखुराम भी इन्हीं प्रयास का एक हिस्सा है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निर्देश पर कलेक्टर अजीत वसंत ने कोरबा जिले में बड़ी संख्या में निवासरत पीवीटीजी के उत्थान की दिशा में 8 वीं से लेकर उच्च शिक्षा हासिल करने वाले पहाड़ी कोरवाओं को डीएमएफ के माध्यम से मानदेय के आधार पर स्कूल तथा अस्पताल में रोजगार देने का न सिर्फ पहल किया है बल्कि सभी का बेहतर भविष्य बनाने के साथ आने वाले पीढ़ियों को भी समाज के मुख्यधारा में जोड़ने की दिशा में कदम उठाया है। कोरबा जिले में डीएमएफ से विशेष पिछड़ी जनजाति परिवार के सदस्यों को नौकरी मिली है।
नौकरी से बदली लाइफ स्टाइल
शासकीय सेवा में आने के साथ ही कोरवा युवक दुखुराम का रहन-सहन में काफी परिवर्तन आ गया है। एक शिक्षक के रूप में पहनावा और स्कूली विद्यार्थियों के बीच उनके व्यवहार में परिवर्तन आया है। नौकरी के बाद प्रतिमाह समय पर वेतन मिल जाने से उसकी आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी है। दुखुराम ने बताया कि वेतन का कुछ रकम बचत करता है ताकि वह भी आने वाले समय में अपने बच्चों का भविष्य बना सके। दो साल पहले ही शादी के बंधन में बंधे दुखुराम ने बताया कि उसे भी मोटर साइकिल चलाने, मोबाइल का शौक था। नौकरी पाकर मोटर साइकिल और मोबाइल की शौक पूरी कर चुका है, अब जल्दी ही घर में टीवी सहित अन्य जरूरी सामान भी लेगा। उधर दुखुराम की पत्नी जून बाई का कहना है कि अब पति नौकरी करते हैं तो फिर आस-पास की महिलाओं के साथ महुआ, चार, तेंदूपत्ता के लिए जंगल जाना छूट गया है और उनकी भी कोशिश है कि जंगल की ओर जाने की बजाय बेहतर है कि एक नया जीवन जीकर आने वाली पीढ़ी को संवारने का काम किया जाएं।