इंसान का मिजाज बदल रहा है, अचानक इंसान को क्या हो गया?

Update: 2022-06-17 06:09 GMT

ज़ाकिर घुरसेना-कैलाश यादव

मशहूर शायर डाक्टर बशीर बद्र साहब ने ठीक ही कहा है कि दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाईश रहे जब हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों। लेकिन शायर साहब की बात को सुनता ही कौन है। अब ऐसा ज़माना आ गया है जिसकी जितनी मदद किया जाय वही सबसे बड़ा दुश्मन साबित होता है। ऐसा दिन प्रतिदिन देखने को मिल जाता है लोगों की सोच और व्यवहार में ऐसा परिवर्तन आ गया है जिसे देखकर गिरगिट भी शर्मिंदा हो जाये। लोग हैरान परेशान हैं, अचानक लोगों को क्या हो गया? लोगों का मिजाज बदला हुआ नजऱ आ रहा है। लोग आधुनिकता के फेर में इस कदर अंधे हो गए हैं। संस्कार,परंपरा, संस्कृति परिपाटी और कर्टसी को भी भूल गए हैं। अब फस्र्ट इम्प्रेशन इज़ लास्ट इम्प्रेशन नहीं रहा बल्कि टूडेज इम्प्रेशन इज़ फाइनल इम्प्रेशन हो गया है। वर्तमान की पोजीशन को ही फुल एंड फाइनल मान कर चलते हैं और इसी अनुरूप ही लोगों का चाल और चरित्र होते जा रहा है। वर्तमान दौर में चाहे वह क्लब हो या दफ्तर हो और तो और घर क्यों न हो सब जगह चाटुकारिता संस्कृति ने अपना शिकंजा कसा हुआ है। लोग इंसानियत भूलकर कर चाटुकारिता को अपना रहे हैं। वैसे भी देखा जाये तो चापलूसी भी एक प्रकार का कला है जो स्वाभिमानी इंसान कभी भी सीख नहीं सकेगा और न ही सीखने की कोशिश करेगा इसके विपरीत स्वाभिमानी होना बहुत बड़ी कला है जो चापलूस इंसान कभी बन ही नहीं सकता चाहे लाख कोशिश भी कर ले क्योकि उसके रगों में स्वाभिमानी व्यक्ति का खून दौड़ रहा होता है। आज हर क्षेत्र में चापलूसों का बोलबाला है। चाहे वह क्लब हो या अन्य दफ्तर हो या यूनियन हो सभी जगह इनके जैसे लोगों का बोलबाला दिखता है। चापलूस अगर आसानी से मैदान छोड़ दे तो भी लोगों कोआश्चर्य होता है कि ऐसा क्या हुआ जो मशहूर चापलूस साहब ने इतनी जल्दी मैदान कैसे छोड़ दिया। क्योंकि मैदान छोडऩा यानी पूछपरख कम होना है। और आज के दौर में पूछ परख कम होने नहीं देना चाहते। ऐसा पत्रकारिता -राजनीति सब जगह है। बहरहाल समय तय करता है कि चापलूस को सवा चापलूस तो मिलता ही है। अक्सर होता ऐसा ही है। इन लोगों के पास दूसरा भी काम रहता है ये घर बैठे चापलूसी का बाजार बनाएंगे कि बाजार में निकलकर चापलूसी की दुकान सजायेंगे! इंसान असमंजस में है, लोग वक्त को भूलकर सिर्फ दिखावे की ओर भाग रहा है। पद प्रतिष्ठा और गरिमा को नजऱअंदाज़ करते हुए आगे बढऩे की सोचता है लेकिन आधुनिकता में अंधे हुए लोग यह भूल जाते हैं की दुनिया बहुत छोटी है और एक मामूली सी परिधि के अंदर ही हमें रहना है देर सबेर सामना तो होना ही है। राजनीति, पत्रकारिता या न्याय के क्षेत्र मे ंसब जगह चापलूसों और दलालों का बोलबाला है जहां ये रहते है वहां सब कुछ इन्हीं के इशारे पर चलता है। इस पर शायर साहब का कहना बिलकुल सही है ।

डर के आगे जीत

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल कांग्रेस का वफ़ादार सीएम रहे लेकिन उनके बेटे विधायक कुलदीप विश्नोई को राजयसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत क्यों करना पड़ा कुलदीप बिश्नोई ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करके अजय माकन को हरवा दिया जाहिर सी बात है कांग्रेस से उन्हें हटना ही था। लेकिन अब सवाल ये उठता है आखिर उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ वोटिंग क्यों किया। वे क्या चाहते थे कांग्रेस आला कमान ने समझने में चूक कर दी या कुछ और ही कारण था। लोग बताते हैं कि एक मुख्य कारण आय से अधिक संपत्ति के मामले की वह तलवार थी, जो उनके सिर पर अभी भी लटकी हुई है?

अब कांग्रेस बिश्नोई की विधायिकी खत्म करने की भी सिफारिश करने वाली है। लेकिन इससे उन्हें कुछ फर्क पड़ेगा ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन सबसे बड़ा फायदा उन्हें तब होगा जब वे भाजपा ज्वाइन करेंगे और उनके ऊपर लगे आय से अधिक संपत्ति के मामले में वे बरी हो जायेंगे।

उन्होने अपना ये कदम बेहद सोच-समझकर और इससे होने वाले अगले फायदे को नाप तौल कर ही उठाया होगा। जनता में खुसुर-फुसर है कि नाराजगी की वजह जो भी रहे अपने इस कदम से वे बहुत बड़ी परेशानी से मुक्त होने तो नहीं जा रहे हैं। कांग्रेस के कुछ नेता अब ये आरोप लगा रहे हैं कि उसी मुकदमे के डर और उसमें बरी किये जाने को लेकर ही बिश्नोई ने सत्तापक्ष से सौदेबाजी की। वैसे भी डर इंसान की फितरत में है। डर एक अलग बात है लेकिन डर कायम करना अलग बात है। वर्तमान राजनीतिक हालात में डर को देखते हुए शायद उन्होंने ऐसा कदम उठाया होगा बहरहाल इसी बात पर शायर राणा गन्नौरी का शेर याद आया कि अब मुझे थोड़ी सी गफलत से भी डर लगता है, आँख लगती है कि दीवार से सर लगता है।

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