रायपुर। रायपुर संभागायुक्त संजय अलंग गुरुवार को एनआईटी में एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत आयोजित युवा संगम कार्यकम में शामिल हुए। उन्होने नागालैंड के एनआईटी सहित विभिन्न शिक्षण संस्थान के विद्यार्थियों को छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विरासत से परिचित कराते हुए छत्तीसगढ़ के नाम की व्याख्या की। अलंग ने बताया कि छत्तीसगढ का इतिहास गौरवशाली रहा है। यहां कल्चुरी वंश के त्रिपुरी शाखा का आधिपत्य रहा हैं। उन्होने पहले तुम्माण उसके बाद रतनपुर को अपनी राजधानी बनाया। उस समय छत्तीसगढ़ दक्षिणी कोसल के नाम से जाना जाता था, जो कि छोटी-छोटी जमीदारियों में बंटा हुआ था। इसे उन्होंने मांडलिक नाम दिया। अलंग ने बताया कि कल्चुरी राजाओं ने प्रशासनिक सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए अपने आधिपत्य वाले क्षेत्र को विभिन्न प्रशासनिक यूनिट में बांटा जिसे ही गढ़ का नाम दिया जो छत्तीसगढ़ के नाम से प्रचलन में आया। कालान्तर में अंग्रेजों ने इसे तहसील का नाम दिया जो आज भी प्रशासनिक इकाई मानी जाती है। शिवाजी का उल्लेख करते हुए अलंग ने मराठा साम्राज्य के बारे में बताया। छत्तीसगढ़ में कल्चुरियों के बाद भोसलेे शासक ने शासन किया। मराठा शासको ने अपने सैनिकों को राजस्व वसूली का कार्य दिया। उनके राजस्व का प्रमुख स्रोत टैक्स थे। जिसे सरदेशमुखी और चौथ कहा जाता था। इनके सैन्य अधिकारी जो राजस्व वसूली कर लाते थे। उन्हे मराठा राजाओं के अधिकारी फडवनीस और चिटनीस रिकार्ड रखते थे। संबधित क्षेत्रों से राजस्व वसूली के संगहण के रिकार्ड रखने के दौरन ही शनैःशनैः छत्तीसगढ शब्द़ प्रचलन में आता गया। अलंग ने नागपुर शहर के संस्थापक बख्तबुलंद तथा मवाल समाज के संबंध में रोचक जानकारी शेयर की। उन्होंने उपस्थित छात्र-छात्राओं को समकालीन समय का उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे की आपने बाहुबली फिल्म देखी होगी, उसमें माहिष्मती का जिक्र आता है। संयोग यह है कि कोसल से जुडे ऐतिहासिक वृतांतों में इसके अनेक वर्णन मिलते है। यद्यपि फिल्म में यह काल्पनिक कहानी है। इस अवसर पर वेटलिफ्टर रूस्तम सारंग ने कहा कि उनका और नार्थईस्ट के राज्यों का करीब संबध रहा है। छत्तीसगढ में एक मई बोरे बासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में चावल और उनसे बने फरा चीला इत्यादि व्यंजन बनाये जाते है। सारंग ने नागालैंड के छात्र-छात्राओं से छत्तीसगढ़ व्यंजन का स्वाद लेने का आग्रह किया।