पत्रकार ने की सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश

Update: 2023-02-11 12:17 GMT

कोटा। आधुनिकता के इस दौर में भी सामाजिक कुरीतियां अभी भी बनी हुई हैं। लोग ऐसे नियम कानून के बंधन में आकर मानवता को शर्मसार करते हैं। समाज से बहिष्कृत ग्राम मोहली निवासी 90 वर्ष की अमृत बाई अपने लगभग 60 वर्षीय पुत्र के साथ रहती थी। जिनकी 9 फरवरी गुरुवार को मृत्यु हो गई। मौत के बाद भी सामाजिक बहिष्कार खत्म नहीं हुआ। शव को कंधा देकर अंतिम संस्कार करने परिजन, जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों में से किसी ने भी अपनी मानवता नहीं दिखाई। नतीजन 2 दिन तक वृद्धा का शव घर में ही पड़ा रहा। तब जाकर पुलिस को इस बात की जानकारी मिलते ही मृतका के घर पहुंचकर ग्राम के कोटवार और पत्रकार के सहयोग से पूरे रीति रिवाज के साथ कंधा देकर वृद्धा का अंतिम संस्कार किया गया।

धर्म के बंधन से परे होकर पत्रकार मजीद खान ने मानवता का परिचय देते हुए सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की। वृद्धा की अंतिम यात्रा में जब ग्राम के सामाजिक व्यक्ति शामिल नहीं हुए तब ऐसे में मजीद खान ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और दफन करने के लिए गड्ढे की खुदाई भी की। जिसके बाद नियमानुसार अंतिम संस्कार हुआ।

बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति एक अभिशाप की तरह है। 21वीं सदी के इस दौर में भी जहां लोग जाति-धर्म, ऊंच-नीच के भेदभाव को त्यागकर भाईचारा और समरसता के साथ एक जुट होकर रह रहे हैं, ऐसे में लोग आज भी रूढ़ीवादी समाजिक बुराई के बीच घिरे हुए हैं। आधुनिकता के इस समय में समाज में फैली बहिष्कार जैसी प्रथा को समाप्त करने ठोस पहल की आवश्यकता है। लोगों में एक दूसरे के प्रति सहयोग और मानवता बनी रहे। साथ ही सामाजिक बुराई के प्रति लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा।

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