छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन में दवा परिवहन निविदा का मामला, दस्तावेजों को पहले अमान्य फिर मान्य कर दिया ठेका
टेंडर की शर्तो को पूरा नहीं कर पाने के बावजूद अपात्र फर्म को काम मिला, सरकार की हो रही बदनामी
शासन को संज्ञान में लेकर इस पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए
स्वास्थ्य मंत्री को शिकायत करने के बावजूद विभाग के अधिकारियो को कोई फर्क नहीं पड़ रहा
मिली भगत की आशंका से इंकार नहीं
इसके पूर्व भी गुणवत्ताहीन दवा सप्लाई में सरकार की बदनामी हो चुकी है
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा दवाई आपूर्ति हुए भ्रष्टाचार के बारे में शिकायत का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। बिना ठोस वजह के अपात्र किये गए फर्म के अलावा आरटीआई एक्टिविस्ट और समाज सेवा से जुड़े लोग भी इस मामले में कूद पड़े है। विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि अब इस मामले में एक आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा भी जानकारी लेने की खबर है। आरटीआई कार्यकत्र्ता ने क्या क्या जानकारी मांगी है इसका ब्यौरा तो नहीं मिल पाया है लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेने की खबर आ रही है। बहरहाल छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन इस विषय में क्या कर रहा है पत्रकारों को जानकारी नहीं दी जाती क्योकि जब कभी भी प्रबंध संचालक या अन्य जिम्मेदार अधिकारियो से इस विषय में जानकारी लेने हेतु जब कॉल किया जाता है तब कोई भी अधिकार फ़ोन रिसीव ही नहीं करते। गौरतलब है कि दवा परिवहन हेतु बुलाई गई निविदा के मूल्याकन में गड़बड़ी कर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाया जा रहा है । साथ ही निविदा में दिए शर्तो का भी खुल्लम खुल्ला उललंघन किया गया है। जबकि निविदा समिति द्वारा पूर्व में इन्ही कागजातों को निरस्त कर अपात्र घोषित कर दिया गया था तो अब यही कागज मान्य कैसे हो गए। यह सोचनीय है एवं गंभीर भ्रस्टाचार की ओर इंगित करता है। निविदा में पात्र निविदाकार के पास बंद बॉडी वाहन होना चाहिए क्योकि दवाई सप्प्लाई में इस प्रकार के वाहनों की ही जरुरत पड़ती है ताकि दवाइयां पानी से खऱाब न हो, लेकिन दवाइयों की सप्लाई खुले वहां से तिरपाल ढँक कर करवाया जायेगा। इसके पहले सीजीएमएससी द्वारा राज्य के सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की गई दवाइयों में भी सरकार की किरकिरी हुई थी। विभाग द्वारा गुणवत्ताहीन दवाइयों का सप्लाई छत्तीसगढ़ के अस्पतालों में किया गया था। आनन फानन में उस समय प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने दवाओं को मरीजों के लिए संजीवनी बताते हुए संज्ञान में लेकर त्वरित कार्रवाई कर दोषियों के खिलाफ एक्शन लेकर सीजीएमएससी द्वारा आपूर्ति की गई सभी दवाइयों को वापस बुलवाया था। लेकिन अब दवा परिवहन के टेंडर में हो रहे भ्रस्टाचार को वे रोकने एक्शन नहीं ले रहे हैं या विभाग द्वारा उन्हें गुमराह किया जा रहा है। अब सीजीएमएससी के क्षेत्रीय औषधि गोदामों से छत्तीसगढ़ में दवा परिवहन के लिए बुलाई गई निविदा में भी गोलमाल का अंदेशा स्पस्ट नजऱ आ रहा है।
विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि वहीं टेंडर भरने की अंतिम तारीख तक ईएमडी की राशि जमा की जाती है लेकिन एस के इंटरप्राइजेज द्वारा तय समय पर ईएमडी की राशि जमा नहीं की गई किंतु वित्तीय मूल्यांकन में निविदाकार द्वारा पुरानी निविदा में जमा की गई ईएमडी राशि के रूप में स्वीकार कर लिया गया है जो निविदा की शर्तो का घोर उललंघन है। हद तो तब हो जाती है जब इस विषय में प्रबंध संचालक द्वारा किसी भी तरह का अनुमोदन नहीं लिया गया है। साथ ही ऐसी जानकारी भी मिली है कि इस निविदा के अंदर जो वाहन मांगी गई है उसके अंतर्गत टाटा 207/टाटा जेमोन/ पिकअप या समतुल्य गाड़ी व टाइप 2 के अनुसार टाटा 407/ आईसर/स्वराज माजदा अथवा समतुल्य गाड़ी निविदाकार के पास होनी चाहिए लेकिन निविदा में शामिल हुए प्रतिभागी सफल निविदाकार द्वारा जमा किए गए दस्तावेज में प्रदाय वाहन निविदा में चाही गई टाइप 1 एवं टाइप टू के अनुसार नहीं है। और ना ही निविदाकार के पास समस्त टाइप ए एवं टाइप टू के वाहन भी नहीं है।जानकारी यह भी मिली है कि एक निविदाकार द्वारा 18 वाहन के दस्तावेज जमा किए गए हैं जबकि उक्त फर्म को दो वाहन के दस्तावेज पूर्ण नहीं है कह कर अपात्र कर दिया गया। जबकि निविदाकार एस के इंटरप्राइजेज के द्वारा पहले तो समस्त टाइप 1 एवं टाइप 2 वाहन के दस्तावेज जमा नहीं किए गए एवं जिन गाडिय़ों के दस्तावेज उनके द्वारा जमा किए गए हैं उनमें से तीन वाहन 3 साल पुराने हैं जो कि निविदा समिति द्वारा नजरअंदाज किया गया है एवं उसी आधार पर मेसर्स गणपति इंडस्ट्रीज को अपात्र करार दे दिया गया।
जो कागजात पहले अमान्य अब मान्य कैसे
सीजीएमएससी लिमिटेड के क्षेत्रीय औषधि गोदामों से दवा परिवहन हेतु वाहनों को लगाने/ दर अनुबंध हेतु निविदा आमंत्रित की गई थी जिसमें कुल 3 निविदाकारों ने भाग लिया था उक्त निविदा में निविदाकारों से दावा आपत्ति चाही गई थी जिसके तहत तीनों निविदाकारों को अपात्र घोषित कर दिया बाद में एक निविदाकार एस के इंटरप्राइजेज को पात्र कर दिया गया।जबकि पूर्व में उक्त फर्म के दस्तवेज को निविदा समिति द्वारा अमान्य कर दिया गया था लेकिन कुछ ही दिन बाद ऐसा क्या हो गया जिससे वही दस्तावेज मान्य हो गया । समिति ने जानबूझकर अमान्य दस्तावेजों को अब मान्य किया जाना संदेह के घेरे में है। दावा आपत्ती में दूसरे निविदाकरो को मामूली बात पर अपात्र घोषित किया जाकर भारी भ्रस्टाचार किया गया है। जिस एस के इंटरप्राइजेज को इसके लिए पात्र किया गया है उनको पहले इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव ही नहीं है इससे जाहिर होता है कि इसके मूल्यांकन में गड़बड़ी कर जमकर भ्रस्टाचार किया गया है।
गुमास्ता के नाम पर भी गोलमाल
गणपति इंडस्ट्रीज को गुमास्ता के नाम अलग होने के आधार पर अपात्र किया गया है तो ऐसे में एस के इंटरप्राइजेज के द्वारा जमा किए गए दस्तावेज में भी इंटरप्राइजेज के नाम नहीं है बल्कि शशि कपूर उपाध्याय का नाम है जोकि दोनों में समान अंतर दर्शाता है इसके बावजूद भी एस के इंटरप्राइजेज को पात्र घोषित कर दिया गया। ऐसा लगता है कि विभाग द्वारा जानबूझकर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचने के लिए ऐसा किया गया है। । सफल निविदाकार द्वारा टेंडर की शर्तो का खुला उललंघन इसके बावजूद पात्र घोषित किया जाना समझ से परे है। इन सबको देखते हुए इस बात से इंकार नहीं जा सकता कि निविदा में भारी गड़बड़ी हुई है ऐसे मे इन अनियमितताओं को देखते हुए सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक को हस्तक्षेप करते हुए नए सिरे से निविदा बुलाकर पात्र फर्म को ही काम दिया जाय । इस सम्बन्ध में सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक कार्तिकेय गोयल जन्म अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाई।
स्वास्थ्य मंत्री से शिकायत के बाद भी नहीं हो रही कार्रवाई
पीडि़त पक्ष ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से उनके बंगले में जाकर इस संबंध में शिकायती पत्र भी दिया। उन्हें मंत्री द्वारा कार्रवाई का आश्वासन भी दिया गया। उसके बावजूद संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होना आश्चर्यजनक है। शिकायत की अनदेखी कर अधिकारी भ्रष्ट्राचार को अंजाम दे रहे हैं जिससे अधिकारियों आौर ठेकेदारों के बीच मिली भगत जाहिर होता है। यह अधिकरियों पर उच्चाधिकारियों और विभागीय मंत्री का नियत्रण नहीं होना भी दर्शाता है या अधिकारियोंं को खुली छूट मिली हुई है या इन सब बातों की जानकारी विभागीय अधिकारी मंत्री को नहीं देते हैं
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