कोरोनाजन्य परिस्थिति का उजला पक्ष

Update: 2020-10-23 09:06 GMT

लेखक मनीष कुमार श्रीवास्तवए प्राचार्यए केंद्रीय विद्यालय संगठन

कालचक्र सर्व शक्तिमान हैए अनंत काल से अगणित इतिहास को अपने गर्भ में दबाए चला जा रहा है। हर युग में मानव अपने को परमसत्ता के कुछ और समीप ले जाने का अनवरत प्रयास करने में लगा हुआ है। आज जब विश्व के श्रेष्ठ वैज्ञानिक कृत्रिम बुद्धिमता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मानस पुत्री श्एलेक्साश् और कृत्रिम भ्रूण जैसे आविष्कारों के माध्यम से मानव की श्रेष्ठता और अजेयता को सिद्ध करने की कोशिश करए स्वयं को गर्वांवित महसूस कर इतरा रहे थेए ठीक उसी समय कोरोना ;कोविड.19द्ध जैसे अदृश्य विषाणु ने जैसे मानव विकास के कालचक्र को अगूँठा दिखा दिया है। विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्था वाले देश जो अपने आप को सर्वसंपन्न होने का दंभ पाले बैठे थे वे भी इस अदृश्य शत्रु के सामने बौने से प्रतीत हो रहे हैं और परमाणु पर विषाणु को सत्तासीन होते देख रहे हैं द्यडार्विन के विकासवाद अथवा भारतीय मनीषा के दशावतार की किस संकल्पना के साथ वर्तमान परिस्थिति का सूत्र स्थापित होता दिख रहा है यह समय की आत्मकथा की विवेचना का एक अध्याय अवश्य होगा द्य यह मानव की जिजीविषा और प्रयास का ही प्रतिफल है कि जिस दिन मनुष्य ने मिट्टी के दीए एरुई की बातीए चकमक की चिनगारी के संयोग को देखा एअंधकार को जीता ए दीया जलाया एघने अंधकार में डूबी धरती को आंशिक रूप से आलोकित किया द्य अंधकार से जूझने के संकल्प की जीत हुई द्य

प्रथमतया आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 24 मार्च को सम्पूर्ण भारतवर्ष में 21 दिनों का लॉक डाउन घोषित किया गया था द्य समस्या की गंभीरता और लॉकडाउन एसोशल वैक्सिनेशन इत्यादि के सकारात्मक प्रभावों को ध्यान में रखते हुये लॉकडाउन को समय.समय पर बढ़ाया गया और फिर शुरु होती है अनलॉक की प्रक्रिया। अनलॉक .5 के बाद तो लगभग सभी संस्थानों की कार्य प्रणालीए कोविड.19 के लिए जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अपनी पूर्व स्थिति में आने लगी है। जब भी अपना देश विपरीत परिस्थितियों से दो.चार हुआ भारत के प्रत्येक नागरिक ने अग्रिम पंक्ति के सिपाहियों की तरह अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया हैं द्य जब बहुतेरे क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारी मसलन स्वास्थ्य सेवायेंएपुलिस सेवाएनागरिक आपूर्ति सेवायें एसिविल डिफ़ेस इत्यादि के लोग अपने जान की परवाह न करते हुए देश सेवा में अपना अनवरत योगदान दिया है।

हर सिक्के के दो पहलू होते हैंए यह शाश्वत नियम कोविड.19 के परिप्रेक्ष्य में भी अटल है। कोविड से हुए नुकसान को शब्दों में बयाँ कर पाना उतना ही समय.साध्य है जितना कोविड.19 के साथ की अवधि को जीना। लेकिन इसके कोविड.19 में परिवर्तित सामाजिकए आर्थिकए धार्मिक और तो और मानसिक मानदण्ड के कारण कुछ उजले पक्ष भी सामने आए हैंए जिन्हें जनमानस और उनकी दृष्टि में लाना आवश्यक और प्रासंगिक है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हाल के सम्बोधन को रेखांकित करें तो उन्होने कहा कि श्लॉकडाउन गया है और कोरोना नहीं। इस समय भी सतर्कता और सावधानी उतनी ही आवश्यक और अपरिहार्य है जितनी लॉकडाउन के समय थी। बचपन से एक पंक्ति रेलवे क्रासिंग के दोनों तरफ़ बने सिगनल.संकेत के रूप में पढ़ते आ रहे हैं. श्सावधानी हटीए दुर्घटना घटीश्। शायद यही एक पंक्ति वह ब्रह्म.वाक्य है जिसका पालन हमें पूरी ईमानदारी के साथ करना है। प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी जी का एक और मंत्र अपनी सार्थकता सिद्ध कर भारत के हर नागरिक को उर्ध्वमुखी होने के लिए प्रेरित करता है। वह है श्आपदा में अवसरश्।

विश्व स्वास्थ्य संगठन भी स्वच्छता के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और अभियानों का आयोजन करता हैए लेकिन करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद भी स्वच्छता का जो कार्य विश्व स्वास्थ्य संगठन और देश.दुनिया के विभिन्न संगठन नहीं कर पाएए वह कोरोना वायरस कर रहा है। स्पष्ट कहें तो कोरोना वायरस दुनिया को सेनिटेशनए स्वच्छता का वास्तविक प्रयोग सिखा रहा है।कोरोना के इस दुर्दांतकारी काल ने लोगों को घरेलू नुस्खोंए गिलोय के काढ़े और योग की तरफ और सजगता से बढ़ाया है।मार्च 2020 से से लेकर आज के समय में अपने आस.पास की दुनिया को ध्यान से देखें तो हम पाएँगें कि लगभग हर सामाजिक स्तर की जीवन शैली में काढ़ा और योग अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है। और गहराई से छानबीन की जाए तो यह भी स्पष्ट होता है कि सामाजिक दूरी के पालन और घरेलू नुस्खों के सानिध्य से मौसमी बीमारी और उसके मरीजों में भी कमी देखने को मिली है। यदि आज की जीवन शैली को बारीकी से विश्लेषित करें तो यह स्पष्ट होता है कि स्वच्छता को लेकर हम सब में जागरुकता बढ़ी है। व्यक्तिगत स्वच्छता में बहुत ही संचेतना दिखाई देने लगी है। जो किसी न किसी रुप में स्वस्थ व्यक्ति और स्वस्थ समाज की ओर बढ़ा हुआ एक कदम है।

लगभग 167 साल पहले भारत में रेल की शुरुआत हुई थी। महाराष्ट्र स्थित मुम्बई और ठाणे के बीच 21 मील ;लगभग 33ण्6 किण्मीण्द्ध लम्बे रेलमार्ग पर 16 अप्रेलए 1853 को पहली रेल चलाई गई थी। उस दिन से लेकर बाद में कभी भी रेल के पहियों ने अपनी गति को विराम नहीं दिया था। मार्च माह के आखिरी हफ्ते में जब भारत में संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया गया थाए तब भारतीय रेल की यात्री सुविधाओं को थामा गया तो रेलकर्मी और रेलयात्री सभी अचरज में रह गए। दरअसल भारतीय रेल के इतिहास में इस तरह का देशव्यापी चक्का.जाम पहली बार देखने में आया। यह देशवासियों को कोरोना महामारी के संक्रमण से बचाने के लिए लिया गया ऐतिहासिक फैसला था। यह फैसला मानवतापूर्णए सहिष्णु और सौम्यता पर आधारित थाए ताकि रेल यात्रियों को महामारी के प्रकोप से बचाया जा सके।इस प्रक्रिया का सकारात्मक पहलू यह उभर कर आता हैए आज हम सभी की यात्राएँ सिर्फ आवश्यकता पर ही होती सम्भव हो रही हैं। यातायात के सभी माध्यमों में भीड़भाड़ए अनावश्यक आवागमनए सड़क दुर्घटना में बहुत कमी आई है।

आप यदि सदी के शुरुआत के दिनों में मोबाइल कम्पनियों के विज्ञापन के टैग लाइन को याद करें. जिसमें श्कर लो दुनिया अपनी मुट्ठी मेंश् और श्एक आयडिया जो बदल दे दुनियाश्ए लगता है इस कोरोना काल में इनकी सार्थकता अधिक उभरकर.निखरकर आई है। सोशल डिस्टेंसिंगए वर्क फ्रॉम होम के इस दौर में ऑफलाइन जिंदगी थम गई है। लोगों के पास पहले से थोड़ा ज्यादा वक्त है। लोग विभिन्न सोशल.मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से अपने को एक.दूसरे के अधिक करीब पा रहे हैं। वीडियो कॉल और ऑनलाइन बैठक एक सशक्त माध्यम बन कर उभरा है।एक वर्ष पहले तक बहुजन के लिए ऑनलाइन के दो ही अर्थ थे यदाकदा. ऑनलाइन शापिंग और ऑनलाइन रेलवे टिकटए इस कोरोना को तो ऑनलाइन क्रांति का नाम देना गलत नहीं होगा। ऑनलाइन कक्षाएँए ऑनलाइन पूजाए ऑनलाइन मीटिंगए ऑनलाइन सिनेमाए ऑनलाइन इलाजए ऑनलाइन सत्संग। ऑनलाइन जो पहले इक्का.दुक्का की आदत थी अब बन गई है श्सरवाइवलश्। समय की मांग के हिसाब से खुद को ढाल रहे हैं लोग। हिंदी सिनेमा ने व्यावसायिक सिनेमा को वेब सिनेमा की तरफ मोड़ा है।

कोरोना का सबसे सशक्त पहलू जो उभर कर आया हैए और जिसपर भविष्य में भी सुधार और मानकीकरण किए जाने और अनवरत बनाए रखने की जरुरत हैए वह है डिजीटल कक्षाएँ। ऑनलाइन या डिजीटल कक्षाएँ किसी भी स्तर पर होंए यह भारत जैसे बहु.जनसंख्यक देश के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। आज जहाँ हमारे देश का एक वर्ग पारिस्थिति और सीमित संसाधनोंए सुरक्षित और मानक स्तर के भवनोंए प्रशिक्षित और अनुभवी शिक्षकों के अभाव के कारण शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित हो रहा है।ऐसे विद्यार्थियों को ऑनलाइन माध्यम से जोड़ा जा सकता है। स्वयंप्रभा और दूरदर्शन के ज्ञानदर्शन चैनल के शैक्षिक कार्यक्रमों में बहुत बड़े बदलाव के साथ ऑनलाइन शिक्षा को देश और विदेश स्थित शैक्षिक संस्थानों से जोड़ा जा सकता है। जरुरत है तो एक संकल्प कीय हर कल्याणकारी राज्य का यह मिशन होना चाहिए कि हर तर्ह के गतिरोधोंए बाधाओं और अवरोधों का व्यावहारिक हल निकालते हुए हर विद्यार्थियों को इस धारा से जोड़ने का मिशन साकार करे।

जनसामान्य इन सभी सकारात्मक पहलुओं के साथ प्रकृति के अधिक करीब आ गया है। प्रदूषण के स्तर में भी कमी को नकारा नहीं जा सकता । गंगा और यमुना जैसी नदियां अपने भीतर के पानी के दूसरे छोर तक साफ बनाए हुए हैं। वाहनों के शोर की जगह पक्षियों कि चहचाहट को भी सुना जा सकता है।हमारी खरीदारी की सूची से कई महत्वहीन वस्तुएँ कम हुईए उपभोग घटा हैए तो खरीददारी भी कन हुई परिणामतरू कचरे की मात्रा भी कम है। अब जरुरत है तो स्थायी और योजनाबद्धए सकारात्मक और संरचनात्मक परिवर्तनों को भविष्य में भी बनाए रखने की।





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