अतुल्य चौबे
डीआरओ, पीआरओ, पर्यवेक्षक जैसे अधिकांश पदों पर भी गैर छत्तीसढिय़ों को नियुक्त किया गया
रायपुर। कांग्रेस में प्रदेश नेतृत्व के साथ मंत्रियों-विधायकों के खिलाफ नाराजगी एक बार फिर सतह पर आ गई है। नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा को थोक में शिकायतें मिली हैं। इसे देखकर समझा जा सकता है कि प्रदेश कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं है। सत्ता के केन्द्र और उसके इर्दगिर्द रहने वाले ही गुडफिल कर रहे हैं जबकि आम और निष्ठावान कार्यकर्ता और पदाधिकारी खुद को उपेक्षित और ठगा महसूस कर रहे हैं। पूर्व में निवर्तमान प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने कार्यकर्ताओं की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया था और प्रदेश में कांग्रेस को अपने तरह से हांकने का काम किया। प्रदेश के मुखिया सरकार और संगठन में तालमेल बिठाते हुए निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को उपकृत करने पर जोर देते रहे लेकिन प्रदेश संगठन से उन्हें वैसा सहयोग नहीं मिला, पीसीसी अध्यक्ष लगातार सीएम के निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए अपना चलाते रहे और संगठन में अपनी मर्जी के अनुसार नियुक्ति करते रहे। वे एक ओर छत्तीसगढिय़ावाद की बात करते हैं और संगठन के तीन बड़े पदों पर गैर छत्तीसगढिय़ा को बिठाते देते हैं। संगठन चुनाव के दौरान भी बीआरओ नियुक्ति में पीसीसी अध्यक्ष ने सीएम के पसंद को भी दरकिनार कर दिया था जिससे प्रदेश के मुखिया की नाराजगी के चलते लंबे समय तक सूची जारी नहीं की जा सकी थी जिसके चलते चुनाव में देरी हुई। प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ कई बार शिकायतें हुई और कार्यकर्ताओं की नाराजगी सामने आई, लेकिन प्रदेश के मुखिया और हाईकमान के भरोसे पर कार्यकर्ताओं ने अपनी नाराजगी बार-बार काबू में करते गए। अब जब नए प्रदेश प्रभारी आई है तो कार्यकर्ताओं की नाराजगी एक बार फिर उजागर हुई है। प्रदेश अध्यक्ष के क्रियाकलाप को लेकर प्रदेश प्रभारी ही नहीं बल्कि हाईकमान को तक को शिकायत भेजी गई है।
यही नहीं ब्लाक अध्यक्षों की बैठक में भी नाराजगी खुलकर सामने दिखी। बैठक में कार्यकर्ताओं ने प्रदेश नेतृत्व के साथ मंत्री और विधायकों की जमकर शिकायत की और नाराजगी जताई। हालाकि प्रदेश प्रभारी ने सबकी बात पर गौर करने के साथ शिकायतों को दूर करने की बात कही है। लेकिन जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे चुनावी साल में सांगठनिक ढांचे को मजबूत करने के साथ कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना कांग्रेस प्रभारी के लिए चुनौती होगी। वहीं नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। कार्यकाल समाप्त होने के बाद उप चुनाव व कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पीसीसी अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ा दिया गया लेकिन अब नए अध्यक्ष नियुक्त करने की मांग भी जोर पकडऩे लगी है।
छत्तीसढिय़ावाद पर भाजपा में भी हलचल...
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस छत्तीसगढिय़ावाद को हवा दे रही है इसका असर भाजपा पर भी दिखाई देने लगा है। प्रदेश भाजपा में जहां मूल छत्तीसगढिय़ा नेता हमेशा द्वितीय पंक्ति में नजर आते हैं उनमें अब अपनी उपेक्षा और अनदेखी का भाव उपजने लगा है। प्रदेश भाजपा में ठाकुर, बनिया और अन्य उच्च जाति के नेता फ्रंट लाइन में रहते हैं। जब कोई केन्द्रीय मंत्री या संगठन के पदाधिकारी रायपुर आते हैं तो उनकी अगुवानी में यही नेता नजर आते हैं। संगठन में भी उन्ही नेताओं का वर्चस्व दिखता है जो रहते तो छत्तीसगढ़ में हैं लेकिन उनकी जड़ें अन्य राज्यों से जुड़ी हुई हैं। ऐेसे में अब मूल छत्तीसगढिय़ा नेता जिनमें आदिवासी और ओबीसी वर्ग से आने वाले द्वितीय व निचले पंक्ति के नेताओं-कार्यकर्ताओं का स्वाभिमान जाग रहा है। चर्चा है कि ऐसे ही कुछ नेताओं ने अपनी व्यथा केन्द्रीय पदाधिकारियों तक पहुंचाई है। अगर इस खबर में सच्चाई हुई तो प्रदेश भाजपा के अग्र पंक्ति के नेताओं और पदाधिकारियों के लिए यह बात मुश्किलों वालों साबित हो सकती है। प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढिय़ा वाद को जिस तरह हवा दी है आने वाले विधानसभा चुनाव में यह भाजपा के लिए नई मुसीबत खड़ी कर सकती है।
भाजपा में अग्र पंक्ति के सारे नेता उच्च वर्ग के और जड़ से दीगर प्रांतों से जुड़े हुए हैं। भले ही उनकी कई पीढिय़ां छत्तीसगढ़ में निवास करते आ रही है लेकिन आज भी मूल तौर पर छत्तीसगढिया नहीं माना जाता है। यही कारण है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री के छत्तीसगढियावाद का पैंतरा काम करते नजर आ रहा है। हालाकि इसकी काट के लिए हाल हि में भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष को ओबीसी वर्ग से नियुक्त कर इस मुद्दे को कमजोर करने की जुगाड़ कर ली है। लेकिन इसके बाद भी आदिवासी और ओबीसी वर्ग के नेता अब अग्र पंक्ति पर आकर कांग्रेस के इस चुनौती का सामना करना चाहते हैं यही कारण है कि इस वर्ग से आने वाले नेता अब चुनाव से पहले बड़ी जिम्मेदारी चाहते हैं ताकि कांग्रेस को उसकी छत्तीसढिय़ावाद के पैंतरे पर मात दिया जा सके।