सात साल में प्रमोशन का नियम फिर भी नहीं मिल रहा लाभ
वेतन और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं आरक्षक
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। पुलिस महकमे में काफी आरक्षक अपनी पदोन्नति के इंतजार में हैं। लेकिन किसी न किसी वजह से इस काम में देरी हो रही है। कभी पदों की कमी तो कभी कोई अन्य वजह बताकर इन्हें समय पर प्रधान आरक्षक पद पर प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है।
विभाग के नियमानुसार सात साल की सेवा के बाद आरक्षक से प्रधान आरक्षक पद पर पदोन्नत कर दिया जाना चाहिए। इसके बावजूद रायपुर में आरक्षकों की पदोन्नति नहीं हुई है। आरक्षकों की वेतन में भी कमी है जिसकी वजह से आरक्षक निराश होने लगे है। पुलिस में सामान्य वर्ग आरक्षक की पदोन्नति पर आरक्षण का ग्रहण लग गया है। जो सामान्य रूप से मिलने वाली पदोन्नति भी आरक्षको को रायपुर में नहीं मिल पा रही है। जिले में ही हालात यह है कि किसी आरक्षक को 29 साल में पदोन्नति नहीं मिली है। ऐसे कई आरक्षक है। वहीं दूसरी ओर आरक्षण का लाभ लेते हुए 15 साल की सर्विस में आरक्षक एसआई के पद पर पहुंच गए है। पदोन्नति की सरकार की दोहरी चाल आरक्षक वर्ग में हताशा उत्पन्न कर रही है। कई आरक्षको ने डीजीपी तक को पदोन्नति नहीं होने के चलते शिकायत भी लिखी है।
सायकल भत्ता आज भी, वाहन भत्ता का पता नहीं
वर्तमान में कोई पुलिस कांस्टेबल साइकिल पर ड्यूटी करते नहीं दिखता मगर फिर भी आरक्षकों को सायकल भत्ता 18 रूपए दिया जाता है। आरक्षकों को वाहन भत्ते की जगह आज भी 18 रुपए का सायकल भत्ता ही दिया जा रहा है। वर्तमान समय में आरक्षकों को अपना गुजर बसर करने में बहुत सी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन के समय में आज भी पुलिसकर्मियों को सरकार द्वारा बनाए गए नियम के आधार पर ही साइकिल भत्ता, मेडिकल भत्ता, वर्दी धुलाई और पौष्टिक आहार के लिए भत्ता दिया जा रहा है। मगर बहुत कम मात्रा में दिया जाता है।
पद का अलग ही रूतबा
आरक्षकों ने का कहना है कि युवक-युवतियां उनके साथ आरक्षक की नौकरी करते है। आज कोई हवलदार है, तो कोई एएसआई। क्योंकि इनके लिए पर्याप्त पद है। पद के अभाव में समय पर प्रमोशन नहीं मिलने से कई बार इन्हें काफी खलता है क्योंकि विभागों में पद का अपना अलग महत्व और रूतबा होता है।पद के अभाव में हवलदार नहीं बन पाए आरक्षकों का कहना है कि शासन उन्हें रायपुर रेंज के किसी भी जिले में जहां हवलदार के पद रिक्त है, वहां हवलदार के पद पर पदोन्न्त कर भेजा जाए। वे हवलदार बनकर जाने को तैयार है, लेकिन ऐसा नहीं किया जाता।
आरक्षकों की मेहनत के बाद भी हताशा
पुलिस विभाग में कार्यरत आरक्षकों को आज भी वेतन वृद्धि और भत्ते में वृद्धि जैसी सुविधा नहीं मिल रही है। इनका वेतन व अन्य सुविधाएं आज भी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की ही तरह है। गर्मी, बरसात, ठंड हर मौसम में डबल ड्यूटी करने वाले इन जवानों की सुविधाएं बढ़ाने गृह विभाग और पुलिस विभाग गंभीर नहीं है। 15 से 20 साल की सेवा पूरी कर चुके आरक्षकों को भी अधिकतम वेतन 30 हज़ार से 32 हज़ार मिलती है। वही नव आरक्षकों को 20 से 22 हज़ार की सेलेरी मिलती है। वाहन भत्ते की जगह आज भी 18 रुपए की सायकल भत्ता दिया जा रहा है। महंगाई के दौर में जब किराये का एक कमरा 3 से 4 हज़ार रेंट पर मिलता है। तब इन आरक्षकों को 800 रुपए मकान भत्ता मिल रहा है। वेतन और भत्ता में वृद्धि नहीं होने से इन जवानों में हताशा का माहौल है।
आरक्षकों को पद आने का बेसब्री से इंतजार
अपने वर्दी पर हवलदार की फित्ती लगाने परीक्षा पास करने वाले आरक्षकों को पद आने का बेसब्री से इंतजार है। जिले के कई आरक्षक है जिन्होंने चार साल पहले हवलदार बनने के लिए विभागीय परीक्षा पास कर लिया है, लेकिन पद के अभाव में अब तक इन आरक्षकों को हवलदार नहीं बनाया गया है। हालांकि पद नहीं होने के बाद भी इन आरक्षकों को हवलदार का पेमेंट शासन से दिया जा रहा है। ओबीसी, सामान्य वर्ग व एससी वर्ग के आरक्षकों के प्रमोशन के लिए पद नहीं है। मजबूरी में हवलदार होने के बाद भी आरक्षक की ड्यूटी करना पड़ रहा है। परीक्षा पास करने वाले कुछ पुलिस आरक्षकों का कहना है कि हवलदार तो बन गए है।
आरक्षकों को रही काफी परेशानी
पुलिस विभाग के कर्मचारी दिन रात जनता की सेवा करने वाले आरक्षकों को आज भारी दिक्क्तों का सामना करना पड रहा है। पुलिसकर्मियों को जो भी भत्ता दिया जा रहा है वह वर्तमान समय में नहीं के बराबर है। वर्तमान समय में आरक्षक को दो पहिया में यात्रा करते हुए लोगों ने देखा है।पुलिस विभाग के आरक्षक व प्रधान आरक्षकों को 18 रुपये प्रतिमहीने साइकिल भत्ता मिलता है जबकि जिले के सभी पुलिसकर्मी समय के मुताबिक मोटर साइकिल की सवारी करते हैंं।
शासन से मिलने वाले भत्ते में इस महंगाई के दौर में ट्यूब का पंचर बनवाना भी संभव नहीं हो पाता। आज एक तरफ अपराधी भी हाईटेक तरीके का इस्तेमाल कर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं वहीं सरकार पुलिस को हाईटेक बनाने के बजाए अपने नियमों पर ही उलझी हुई है।
नियमों में विसंगति
विभाग में आरक्षकों और अन्य पदों के लिए अलग-अलग पदोन्निति नियम बनाए गए हैं। सब इंस्पेक्टर से लेकर आईपीएस अफसर तक के प्रमोशन के लिए प्रदेश में एक ही वरिष्ठता सूची बनाई जाती है। लेकिन आरक्षकों के मामले में जिलेवार सूची बनती है। इसमें किस जिले में कितने पद रिक्त हैं, इसका ध्यान रखा जाता है। प्रदेश के विभिन्न थानों में 10 हजार से अधिक आरक्षक पदस्थ हैं। गृह विभाग सब इंस्पेक्टर व अन्य बड़े पदों पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों को नियमानुसार पदोन्नति दे रहा है, लेकिन आरक्षकों के प्रमोशन हर साल अटका दिए जाते हैं। लेट-लतीफी के कारण पदोन्नति से वंचित आरक्षक मानसिक तनाव झेल रहे हैं। इसके अलावा कम वेतन के रूप में आर्थिक हानि भी हो रही है।5 साल का सेवाकाल नियम : प्रधान आरक्षक के प्रमोशन के लिए आरक्षक का पांच साल का सेवाकाल पूरा होना चाहिए। इसके अलावा सेवाकाल के दौरान उसे मिले इनाम और सजा का रिकॉर्ड भी देखा जाता है। अगर किसी आरक्षक को इनाम के बजाय सजा ज्यादा मिली होती है, तो उसका नाम प्रमोशन लिस्ट में नहीं आ पाता। प्रमोशन में देरी के पीछे जिला भी एक महत्वपूर्ण कारण है। प्रदेश में रायपुर सहित कई जिले ऐसे हैं, जहां कोई पुलिसकर्मी रहना ही नहीं चाहता। रायपुर सहित कई जिले ऐसे भी हैं, जहां से प्रधान आरक्षक ट्रांसफर लेना ही नहीं चाहते। इन कारणों से भी प्रधान आरक्षक के पद रिक्त नहीं हो पाते हैं। और आरक्षकों को प्रधान आरक्षक का पद भी नहीं मिल पाता।