विशेष लेख : नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी...ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती आयी

Update: 2020-12-21 12:22 GMT

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बावजूद यहां के मूल निवासी एवं रहवासियों को विकास का वो लाभ नहीं मिल सका, जिनके वे असली हकदार थे। गिरता हुआ भू-जल स्तर, खेतीं में लागत की बढ़ोत्तरी, मवेशी के लिए चारा संकट, आदि ने स्थिति को और भयावह बना दिया। साल 2018 के अन्त माह में नई सरकार के गठन के बाद से यह छत्तीसगढ़ इस कदर बदला है कि गांधी के सिद्धांतों पर चलने लगा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश की सत्ता संभालते ही नारा दिया - छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरवा अउ बाड़ी एला बचाना हे संगवारी (छत्तीसगढ़ की पहचान के लिए चार चिन्ह हैं, नरवा (नाला), गरवा (पशु एवं गोठान), घुरवा (उर्वरक) एवं बाड़ी (बगीचा), इनका संरक्षण आवश्यक है। इस योजना के माध्यम से भू-जल रिचार्ज, सिंचाई और आॅर्गेनिक खेती में मदद, किसान को दोहरी फसल लेने में आसानी हुई। पशुओं को उचित देखभाल सुनिश्चित हो सकी। परंपरागत किचन गार्डन एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती आयी है तथा पोषण स्तर में भी सुधार देखा गया है। अब हम पुरातन संस्कृति और सरोकारों को सहेज कर रखने के काम की ओर भी लौट रहंे हैं।

छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरूवा, घुरवा एवं बाड़ी के अंतर्गत महासमुंद जिले की बात करें तो यहाँ पहले चरण में 65 गौठान निर्माण की अनुमति दी गई थी। जिनकी संख्या बढ़ कर अब 300 से अधिक हो गई है। जिसमें से 175 गौठान पूर्ण हो गए है। 34 गौठान प्रगतिरत है। जिले में 17 आदर्श गौठान बन गए हैं। गरूवा कार्यक्रम के तहत महासमुंद जिले की ग्राम पंचायत में गौठान बननें से मवेशियों को आश्रय मिला है और अब सड़को पर मवेशियों का विचरण कम हुआ है। गौठान में ग्रामीणों द्वारा चारे के दाने के साथ-साथ मवेशियों के उचित प्रबंधन, देखरेख के लिए ग्राम स्तर पर गौठान प्रबंधन समिति का चयन किया गया है, जिनके द्वारा गौठान का संचालन प्रारंभ कर दिया गया है। जिसमें पशु अवशेषों का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन कर गोबर से आधुनिक खाद तैयार करने, गौ-मूत्र से कीटनाशक तैयार करने एवं गौठान स्थल पर विभिन्न प्रकार के आर्थिक गतिविधि संचालितहै। ग्राम गौठान प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा गौठान का संचालन करने से अब मवेशी एक जगह सुव्यवस्थित रूप से एकत्र रहते हैं। मवेशियों से फसल सुरक्षित होने से किसान भी निश्चिन्त हैं साथ ही दुर्घटनाओं में भी कमी आयी है।

यह योजना पूरे प्रदेश भर में लागू है। बाड़ी लगाने के लिए मनरेगा से सहायता दी जा रही है तो वहीं स्व-सहायता समूहों की महिला एवं समाज कल्याण के ओर से मदद दी जा रही है। ग्रामीण खुद ही आगे बढ़कर मदद कर रहे हैं। गांवों में आवारा मवेशी की समस्या कम हो रही है, इसलिए किसान दूसरी एवं तीसरी फसल लगाने को लेकर भी उत्साहित और ललायित है।

इस योजना कार्य से गांव के महिला स्व-सहायता समूहों और युवाओं को जोड़ा जा रहा है। इस योजना से पशुओं से फसल बचाने के लिए खेतों को घेरने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। किसानों को जैविक खाद उपलब्ध हो रहा है तो वहीं कृषि लागत भी कम हुई ह। लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलें। प्रदेश में पहले चरण में दो हजार गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है। वर्तमान में इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई। महासमुंद जिले की बात करें तो यहाँ पहले चरण में 65 गौठान निर्माण की थी जिनकी संख्या बढ़कर 300 से अधिक हो गई है। जिले में 17 आदर्श गौठान बन गए हैं।

योजना के तहत गरूवा के आस-पास के ग्रामों के किसानों द्वारा गौठानों के लिये स्वेच्छा से पैरा दान भी किया जा रहा है। लाए गए पैरा से भरे ट्रेक्टर गौठानों की आते देखें जा सकतेे है। किसानों के इस कार्य की सराहना की जा रही है। बाड़ी योजना में किसानों के घरों की बाड़ी में सब्जियों और मौसमी फलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पौष्टिक आहार उपलब्ध हो रहा है। वहीं शाला-आश्रमों, आंगनबाड़ी केंद्रो की खाली पड़ी जमीन पर किचन गार्डन बच्चों द्वारा तैयार कर हरी सब्जी-भाजी का उपयोग किया गया। वर्तमान में देशव्यापी लाकडाउन के चलते अभी ये संस्थाएँ बंद है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में वर्तमान में कुल लक्ष्य 67.73 लाख मानव दिवस के विरूद्ध 46.55 लाख मानव दिवस की उपलब्धि हुई है, जो लक्ष्य का 68 प्रतिशत अधिक है। जिले में मनरेगा के तहत एक लाख 20 हजार से अधिक परिवारों के लगभग 2.50 लाख मजदूरों को रोजगार मुहैया करवाया गया। 9471.58 लाख रूपए व्यय किए गए। इसमंे मजदरी पर 8287.92 लाख एवं सामग्री पर 1183.66 लाख रूपए व्यय हुए है।

शासन की महत्वाकांक्षी योजना राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में महासमुंद जिले में 5223 महिला स्व-सहायता समूह काम कर रही है। इसमें 55 हजार से ज्यादा महिलाएं स्थानीय बाजार मांग के अनुसार विभिन्न प्रकार की सामग्रियां मोमबत्ती, दीया, वाशिंग पाउडर से लेकर अचार, बड़ी, पापड़ आदि बनाकर आत्मनिर्भर हो रही है।

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