लघु वनोपज संग्राहकों को मिलने लगा मेहनत का वाजिब दाम

Update: 2021-09-29 10:59 GMT

रायपुर। आदिवासी अंचल में रहने वाले अधिकांश वनवासियों का जीवन और रोजगार जंगल और उनके उत्पादों पर निर्भर रहता है। बिचौलिये इनसे कीमती वनोपजों की कम दामों में खरीदारी कर अधिक मुनाफा कमाते रहे हैं। वनवासियों के जीवन में बदलाव लाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर वनोपजों के समर्थन मूल्य में दाम बढ़ाने और उनका दायरा बढ़ाने से संग्राहकों को उनकी मेहनत की वाजिब कीमत मिलने लगा है। इस फैसले ने औने-पौने दाम में बिकने वाले लघु वनोपज को अब मूल्यवान बना दिया है। उत्तर बस्तर कांकेर जिले में ही तक पिछले तीन वर्षाें में 06 लाख 42 हजार 589 क्विंटल लघु वनोपज की खरीदी की गई है, जिसके लिए संग्राहकों को 18 करोड़ 55 लाख 77 हजार रूपये का भुगतान किया गया है। इसी अवधि में सरकार ने कांकेर जिले में 05 लाख 95 हजार से अधिक मानक बोरा तेंदूपत्ता की खरीदी कर 4 हजार प्रति मानक बोरा की दर से संग्राहकों को 2 अरब 38 करोड़ 26 लाख रूपये से अधिक का भुगतान किया है। जिले में ईमली, महुआ, टोरा, चिरौंजी, कुसुमी लाख, रंगीनी लाख, हर्रा, बेहड़ा, सालबीज, कचरिया जैसे लघु वनोपजों का संग्रहण स्थानीय निवासियों द्वारा किया जाता है। लघु वनोपज की खरीदी महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से करने से संग्राहकों के साथ ग्रामीण महिलाओं को भी रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ देश का एक मात्र राज्य है, जहां 52 प्रकार के लघु वनोपज को समर्थन मूल्य पर क्रय किया जा रहा है, इससे वनवासियों एवं वनोपज संग्राहकों को सीधा लाभ मिल रहा है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ राज्य आज लघु वनोपज के संग्रहण के मामले में देश का अव्वल राज्य बन गया है। देश का 73 प्रतिशत वनोपज क्रय कर छत्तीसगढ़ ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर तेंदूपत्ता संग्रहण की दर को 2500 रूपये प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर सीधे 04 हजार रूपये प्रति मानक बोरा किया गया है। साथ ही महुआ, ईमली, चिरौंजी गुठली जैसे वनोपजों को भी अधिक समर्थन मूल्य खरीदा जाने लगा है। इसका सीधा लाभ ग्रामीण संग्राहक परिवारों को होने से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आने लगा है।

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