रेमडेसिविर लगी फिर भी हुईं मौतें, क्या इंजेक्शन नकली थीं?

Update: 2021-05-13 05:49 GMT

छत्तीसगढ़ में भी नकली इंजेक्शन खपाने वाले गैंग सक्रिय तो नहीं, जांच का विषय

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी सहित छत्तीसगढ़ में भी नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन खपाने की आशंका बलवती हो रही है। मध्यप्रदेश के कई बड़े शहरों के अस्पतालों में नकली इंजेक्शन खपाने का खुलासा हुआ है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में भी रेमडेसिविर के कालाबाजारी की बड़ी संख्या में आए मामले और कोरोना से संक्रमित मरोजों के परिजनों द्वारा 35-40 हजार में इंजेक्शन खरीदने की खबरों से साफ है कि छत्तीसगढ़ में भी रेमडेसिविर का कृत्रिम अभाव पैदाकर इंजेक्शन की कालाबाजारी की गई और मरोजों को दस गुना ज्यादा रेट पर इंजेक्शन खरीदने के लिए मजबूर किया गया। इस मामले में अस्पतालों के साथ दवा कारोबारियों और मेडिकल फिल्ड से जुड़े लोगों के अलावा कुछ ऐसे लोग जो लोगों को सुविधा पहुंचाने के नाम पर मुनाफा कमाने का धंधा चलाने वालों की भूमिका संदिग्ध है। जिसकी पड़ताल करने की जरूरत है। पुलिस ने कालाबाजारी के मामले में पकड़े गए आरोपियों से सख्ती से पूछताछ करती तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते थे लेकिन पुलिस ने मामूली धाराओं में कार्रवाई कर महज खानापूर्ति की वहीं ड्रग विभाग ने इन मामलों में कोर्ट में केस लगाकर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली, जबकि पकड़े गए आरोपियों से कड़ी पूछताछ कर उनके पीछे सक्रिय लोगों को बेनकाब किया जाना था। इस पूरे मामले में अस्पतालों की भूमिका की सख्ती से जांच की जानी चाहिए।

जब्त रेमडेसिविर इंजेक्शन की जांच जरूरी

पुलिस को कालाबाजारी के दौरान पकड़े गए आरोपियों से जब्त किए गए रेमडेसिविर इंजेक्शन असली है या नकली इसकी जांच करानी चाहिए, इससे यह पता चल सकेगा कि इंजेक्शन असली है या नहीं। इंजेक्शन अगर नकली निकले तो मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में भी नकली इंजेक्शन खपाने का खुलासा हो जाएगा और पुलिस को इसके लिए जिम्मेदार लोगों की धरपकड़ और पहचान करने में आसानी हो जाएगी। छत्तीसगढ़ के सभी बड़े शहरों का इंदौर-जबलपुर से कारोबारी संबंध है ऐसे में वहां नकली इंजेक्शन खपाने वालों का लिंक रायपुर सहित राज्य के बड़े शहरों में मेडिकल व्यवसाय अथवा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों से न हो इसकी संभावना बहुत कम है। इसलिए इस एंगल से अस्पतालों में सरकारी आपूर्ति से पहले इस्तेमाल में लाए गए इंजेक्शनों की जांच जरूरी है।

रेमडेसिविर लगने के बाद भी बड़ी संख्या में मरीजों की मौत

राजधानी में सरकारी और निजी अस्पतालों में बड़ी संख्या में ऐसे मरीजों की भी मौत हुई है जिन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन के कई डोज लगाए गए थे। इससे यह संदेह पैदा होता है कि कहीं इन मरीजों को नकली इंजेक्शन तो नहीं लगाए गए। ऐसे में ेरेमडेसिविर इंजेक्शन को रामबाण समझकर मरीजों को दस गुना ज्यादा रेट पर खरीदने के लिए मजबूर करने वाले अस्पतालों में उपचार कराने वाले मृत कोरोना मरीजों को दिए गए इंजेक्शन व दवा की भी जानकारी एकत्र की जानी चाहिए और अस्पतालों से यह पूछा जाना चाहिए कि उसने अगर मरीज को अपने पास उपलब्ध इंजेक्शन लगाए तो उसने इंजेक्शन का स्टाक किस स्टाकिस्ट अथवा दवा वितरक से लिए और मरीज ने बाजार से लाकर इंजेक्शन दिए तो संबंधित दुकान जहां से उसने इंजेक्शन खरीदी वहां के स्टाक की बराबर जांच की जानी चाहिए। अगर रेमडेसिविर नकली होना पाए जाए तो फिर सब-कुछ सामने आ जाएगा।

निजी अस्पतालों की मानिटरिंग क्यों नहीं?

रेमडेसिविर की कालाबाजारी के कई मामले सामने आने के बाद भी प्रशासन ने इस पर रोक लगाने कोई कड़े कदम नहीं उठाए और नहीं निजी अस्पतालों की भूमिका जांचने की जरूरत समझी गई। जबकि यह जानकारों का साफ मानना है कि बाजार में इंजेक्शन की बिक्री पर रोक और सरकारी सप्लाई के बाद रेमडेसिविर की कालाबाजारी अगर हो रही है तो साफ है कि इंजेक्शन अस्पतालों से ही बाहर आ रहे थे और इस कालाबाजारी अस्पताल प्रबंधन या उसके कर्मचारियों की ही बड़ी भूमिका है। सरकारी सप्लाई के बाद भी मरीजों के परिजनों से इंजेक्शन की भारी कीमत अस्पताल वाले वसूल रहे हैं। इंजेक्शन के एक दो डोज लगने के बाद भी पूरे डोज लगाने का उल्लेख भर्ती चार्ट में कर रहे हैं। कई दूसरे इंजेक्शन और दवाइयों की भारी भरकम कीमत अस्पताल वाले वसूल रहे है, यहां तक की मरीजों का रिकार्ड भी गायव कर दे रहे हैं। बावजूद स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन अस्पतालों की मानिटरिंग की जरूरत नहीं समझ रहे हैं।

अस्पतालों को लूट की खुली छुट

निजी अस्पतालों को मनमानी और मरीजों को लूटने की खुली छुट मिली हुई है। राजधानी सहित की शहरों में निजी अस्पताल वाले महामारी के अवसर में भी मरीजों के परिजनों को खुल कर लूट रहे हैं। सरकार द्वारा दर निर्धारित होने के बाद भी निजी अस्पताल वाले भारी भरकम फीस वसूल रहे हैं। फीस न दे सकने वाले मरीजों के इलाज में ढिलाई के साथ मरीज की मौत की स्थिति में शव देने से भी अस्पताल वाले मना कर अमानवीयता की हद पार कर रहे हैं। बावजूद सरकार और स्वास्थ्य विभाग के कान खड़े नहीं हो रहे हैं। शिकायत पर अस्पतालों को नोटिस देकर कुछ दिन मरीजों की भर्ती पर रोक लगाकर कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। शिकायतों पर कोई अधिकारी अस्पताल प्रबंधन से बात करने को तैयार नहीं होता, नोडल अधिकारी भी फोन करने से कतराता है कि कहीं किसी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने पर उसका ट्रांसफर या निलंबन न हो जाए। अस्पतालों की लापरवाही, मनमानी पर कार्रवाई करने को लेकर जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात करने पर यही जवाब मिलता है कि कार्रवाई कर रहे हैं नोटिस दिया है।

इन अस्पतालों ने सेवा की कायम की मिसालें...

कोरोना संक्रमण के दौर में जब लोग अपनों को बचाने अपना सबकुछ लुटा रहे हैं ऐसे में राजधानी की कुछ अस्पतालों ने सेवा की मिसालें कायम की है। इन अस्पतालों में हजारों ने कोविड से लड़कर अपनी जान बचाने में कामयाबी पाई है। इन अस्पतालों के प्रबंधन से लेकर डॉक्टर-नर्स और अन्य स्टाफ ने कोरोना मरीजों के उपचार में अपने जीवन का श्रेष्ठ लगाकर मरीजों को नई जिंदगी दी है। इनके इलाज से स्वस्थ होने वाले मरीज और उनके परिजन उन्हें दुआ देते नहीं थक रहे।

एम्स: राजधानी रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ने कोरोना महामारी से लोगों को बचाने में सर्वोच्च भूमिका निभा रही है। अस्पताल में न सिर्फ छत्तीसगढ़ अपितु बाहर से आने वाले गंभीर मरीजों ने भी नई जिंदगी पाई है। निदेशक डॉ. नितिन नागरकर के निर्देशन में अस्पताल के डाक्टरों और नर्सो के साथ समस्त स्टाफ ने सेवा का बेहतरिन परिचय देते हुए कोरोना से लडऩे में लोगों को संबल दिया। अस्पताल के स्टाफ के निस्वार्थ सेवा का ही परिणाम है कि कोरोना मरीजों के इलाज में एम्स की भूमिका सर्वश्रेष्ठ रही है, संसाधनों की कमी के बाद भी एम्स प्रबंधन ने कोविड के उपचार में अपना श्रेष्ठ दिया है। इससे छत्तीसगढ़ के लोगों को बड़ी राहत मिली है।

रामकृष्ण केयर: राजधानी के सबसे बड़े और विश्वसनीय हास्पिटल रामकृष्ण केयर ने कोरोना मरीजों के उपचार में बड़ी भूमिका निभाई है। प्राय: महंगे उपचार के लिए चर्चित इस अस्पताल ने कोरोना मरीजों के उपचार में सेवा का बेमिशाल परिचय दिया है। अस्पताल ने कई मजबूर और कमजोर परिस्थिति वाले मरीजों को इलाज में राहत दी है। कोरोना महामारी के दौर में अस्पताल की सेवा भाव व मानवीय व्यवहार की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है।

एनएचएमएमआई: कोरोना काल में मरीजों के उपचार में लालपुर स्थित एनएचएमएमआई हास्पिटल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विश्वसनीय और सस्ते इलाज के लिए प्रख्यात इस अस्पताल में कोरोना के कई गंभीर मरीज स्वस्थ हुए हैं। अस्पताल में सरकार के निर्देश और निर्धारित दरों के आधार पर ही कोरोना मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराया जा रहा है, जो प्रशंसनीय है। अस्पताल का संचालन सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। संस्था का उद्वेश्य पैसा कमाना नहीं अपितु मानव सेवा है।

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