राजधानी हॉस्पिटल हादसा: फरार डॉक्टरों को पकडऩे से बच रही पुलिस

Update: 2021-05-20 06:18 GMT

आफताब फरिश्ता

मौतों के जिम्मेदार डॉक्टरों को जेल जाने से बचाने आरोपियों के अग्रिम जमानत मिलने का इंतजार तो नहीं?

क्या आरोपी को सबसे बड़ा मेडिकल व्यवसायी होने के चलते बचाया जा रहा है?

क्या आरोपी का सरकारी सेवा में होना गिरफ्तारी नहीं होने का कारण है?

बड़ी पकड़ और छुटभैय्ये नेताओं के संरक्षण ने पुलिस के हाथ बांध दिए हैं?

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में पिछले महीने हुए अग्निकांड में कोरोना संक्रमित सात मरीजों की मौत के मामले में पुलिस और हेल्थ विभाग व जिला प्रशासन की जांच ठहर गई है। मामले में राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रसूखदार जिम्मेदारों को बचाने की बराबर कोशिश जारी है। पुलिस ने मामले में दो डॉक्टरों को गिरफ्तार करने के बाद जेल भेजकर अपनी जिम्मेदारी खत्म समझ ली है। दूसरी ओर जिला प्रशासन की जांच अस्पताल प्रबंधन से पूछताछ और फायर सेफ्टी की जांच तक ही सीमित है, जांच टीम अब तक अस्पताल की कमियों और लापरवाही को लेकर किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाई है। इस मामले में पुलिस अब तक फरार चल रहे दो डॉक्टर को पकड़ नहीं पाई है। जबकि दोनों के राजधानी में ही होने की सूचना है। जानकारी के अनुसार गिरफ्तार दो डॉक्टर अपनी जमानत के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। चूंकि दोनों फरार डॉक्टर रसूखदार और ऊंची पहुंच वाले हैं ऐसे में उन्हें बचाने की हर कोशिश हो रही है। लगता है पुलिस भी यह चाह रही है कि गिरफ्तार डॉक्टरों को जमानत मिल जाए तब दोनों डॉक्टरों को गिरफ्तार किया जाए ताकि दो डॉक्टरों को मिली जमानत के आधार पर उन्हें भी जमानत मिल जाए और उन्हें जेल जाने की नौबत न आए। उल्लेखनीय है कि इस हादसे में सबसे अहम फायर सेफ्टी विभाग और एफएसएल की जांच रिपोर्ट के आधार पर अभियोजन की राय लेने के बाद अस्पताल का संचालन कर रहे चार डॉक्टरों के खिलाफ गैर इरातन हत्या का केस दर्ज किया गया है।

आरोपियों को बचने का अवसर दे रही पुलिस

राजधानी अस्पताल अग्निकांड के बाद बनी जिला प्रशासन की टीम ने अस्पताल प्रबंधन से पूछे 28 बिंदुओं के सवालों का जवाब तो दे दिया है, लेकिन किसी भी सवाल के एवज में कोई दस्तावेजी सुबूत जमा नहीं किए। अस्पताल प्रबंधन ने यह हवाला देकर बचने की कोशिश किया है कि घटना के बाद से सीलबंद अस्पताल में ही सारे दस्तावेज है। सूत्रो ने बताया कि रसूखदार डाक्टरों ने आखिर तक बचने की कोशिश की। जांच टीम को न केवल गुमराह किया बल्कि ऊपरी दबाव भी बनाया। लेकिन जब प्रशासन पर ही सवाल खड़े होने लगे, तब अपने आप को बचाने के लिए जिम्मेदारों ने लापरवाही बरतने वाले डाक्टरों पर शिंकजा कसा, लेकिन दो डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर जांच ठहर गई है। फरार चल रहे डॉ. संजय जादवानी और डॉ. विनोद लालवानी को गिरफ्तार करने की कोई कोशिश पुलिस नही कर रही है जबकि दोनों के राजधानी में ही होने की सूचना है। जानकारी के अनुसार डॉ जादवानी राजधानी के सबसे बड़े मेडिकल व्यवसायी हैं। वे सरकारी सेवा में हैं और ए निजी डेंटल कालेज से भी जुड़े हुए हैं। ऐसी चर्चा है कि वे बड़ी पहुंच और ऊंची रसूख रखते हैं, उनका परिवार शुरू से ही भाजपा से जुड़ा हुआ है।

जिम्मेदार विभागीय अधिकारियों पर भी हो कार्रवाई

इस पूरे मामले में अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों के साथ उन जिम्मेदार विभागीय अधिकारियों पर भी कार्रवाई होने चाहिए जो अस्पताल की लापरवाही और कमियों को नजरअंदाज करते रहे। फायर सेफ्टी के नाम पर काला-पीला करने वाले जिम्मेदारों के साथ बिना अनुमति तीसरा माला तानने पर नगर निगम के अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे कई मामले शहर के अंदर हैं, जिनकी सही जांच होने पर हालात सामने आ सकते हैं। जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई नहीं होने से ऐसे हादसे और मौतें होती रहेंगी।

निजी अस्पतालों की जांच ठप

पचपेड़ीनाका स्थित राजधानी हॉस्पिटल अग्रिकांड के बाद भी जिलेभर में संचालित प्रइवेट हॉस्पिअल और नर्सिंग होम पर शिकंजा कसने में प्रशासन फेल हो गया है। 25 दिन में प्रइवेट हास्पिटलों के फायर सेफटी की जांच पूरी नहीं हो सकी। ज्यादातर हॉसिपटलों की जांच रिपोर्ट भी कलेक्टोरेट तक नहीं पहुंची है, जिससे एक भी अमानक हॉस्पिटल पर कर्रवाई नहीं हो सकी। हैरतअंगेज है, जिम्मेदार अफसरों को भी नहीं पता, कितने हॉस्पिटलों की जांच हुई है? दरअसल, प्राइवेट हॉस्पिटल और नर्सिंग होम में फायर ऑडिट, फायर सेफ-टी प्रोटेक्शन से निर्धारित मानकों की जांच पूरी कर तीन दिन में रिपोर्ट सौंपने का आदेश जारी किया गया था, लेकिन 25 दिन में जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। ऐसे में प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम में हादसा होने से इनकार नहीं किया जा सकता।

रायपुर में 400 से अधिक प्राइवेट हॉस्पिटल

रायपुर जिलेभर में कॉलोनियों से लेकर गली-मोहल्लों तक प्राइवेट हास्पिटल औ नर्सिंग होम फैले हुए हैं। छोटे-बड़े मिलाकर 400 से अधिक हॉस्पिटल हैं, लेकिन 24 अप्रैल से 1 मइ्र तक कुल करीब 50 फीसदी प्राइवेट हॉस्पिटल और नर्सिंग होम की फायर ऑडिट की गई है, बाकी हॉस्पिटल और नर्सिंग होम की जांच चल रही है। सभी हॉस्पिटलों की जांच कब तक पूरी होगी, यह बड़ा सवाल है?

इन बिंदुओं पर होनी थी जांच

जानकारी के मुताबिक जिलेभर के नर्सिंग होम और प्राइवेट हॉस्पिटलों की तीन बिंदुओं पर जांच करनी थी। भारतीय निर्माण संहिता 2016 के तहत फायर ऑडिट, फायर प्रोटेक्शन के निर्धारित मापदंडों की जांच करने करीब 10 टीमें बनाई गई थीं। एसडीएम के नेतृत्व में नगर निगम, फायर, बिजली विभाग और थाना प्रभारी को शामिल किया गया था। वहीं नगर निगम इलाके के बाहर की जांच संबधित एराडीएम को करनी थी। जांच कर तीन दिनों में कलेक्टर को रिपोर्ट सौंपनी थी।

नियमों की अनदेखी और लापरवाही पर जिला प्रशासन मौन

जिला प्रशासन की तीन सदस्यीय जांच टीम की रिपोर्ट में बताया गया है कि अस्पताल का 26 अप्रैल को निरीक्षण के दौरान पांच बिंदुओं पर की गई जांच के दौरान फायर सेफ्टी के संसाधनों के कोई अवशेष अस्पताल में नहीं मिले। न ही कोई प्रशिक्षित कर्मचारी घटना के दौरान अस्पताल में मौजूद था। इसके अलावा जांच टीम ने पाया था कि अस्पताल प्रबंधन के पास सिर्फ दो माला बिल्डिंग की अनुमति थी, बावजूद इसके तीसरा माला अवैध रूप से बनाया था। वहीं फायर सेफ्टी विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट में बताया है कि अस्पताल प्रबंधन ने साल 2016 में नगर निगम की फायर ब्रिगेड द्वारा फायर एनओसी लेने की बात कही थी, लेकिन इसके दस्तावेज पेश नहीं किया। विभाग ने माना कि अस्पताल के पास साल 2016 के बाद फायर सेफ्टी की कोई एनओसी नहीं थी। चौंकाने वाली बात यह है कि साल 2017 में राज्य में फायर सेफ्टी विभाग की स्थापना हो चुकी थी। फि र भी जिम्मेदार लोगों ने अस्पताल की फायर सेफ्टी व्यवस्था को नहीं जांचा और आंख मूंदकर अस्पताल का संचालन बेधड़क होते देखता रहा और अस्पताल प्रबंधन पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। स्वास्थ्य विभाग अभी तक मामले की जांच पूरी नहीं कर पाई है जबकि ऐसे मामले में तत्परता दिखाते हुए तेजी से जांच कर सख्त कार्रवाई की जरूरत होती है।

अस्पताल खोलने से पहले इन विभागों की अनुमति जरूरी

नगर निगम जो जमीन के आधार पर अनुज्ञप्ति लाइसेंस देता है।

अग्निशमन विभाग से गाइड लाइन के आधार पर अनुमति।

पर्यावरण एवं प्रदूषण विभाग मेडिकल डिस्पोज, 20 बिस्तरों के ऊपर अस्पताल हो तो सीवरेज ट्रीटमेंट जैसे गाइड लाइन के आधार पर अनुमति देता है।

बिजली विभाग कामर्शियल उपयोग और व्यवस्था को देखते हुए अनुमति प्रदान करता है।

स्वास्थ्य विभाग नर्सिंग होम एक्ट, चिकित्सकीय गाइड लाइन के आधार पर बिस्तर, आइसीयू, चिकित्सकीय सुविधा, डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ आदि की जांच कर अनुमति प्रदान करता है।

अस्पताल के संचालन के लिए आवेदन के बाद सबंधित विभाग की टीम को स्थल निरक्षण के बाद जांच में सही पाए जाने पर लाइसेंस या एनओसी के लिए स्वीकृति प्रदान करना होता है।

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