रायपुर। रायपुर के रेलवे स्टेशन में पारसबाई की तरह हीराबाई साहू सहित आधा दर्जन महिला कुली कार्यरत हैं। ये बिना संकोच यात्रियों का सामान ढोती हैं। सबकी अपनी कहानी है। सबका यही कहना है-'काम, काम होता है उसमें संकोच कैसा...?" सुबह होते ही अपने घर का काम करना, बच्चों को नाश्ता देने के बाद ये स्टेशन पहुंचकर जीवन संघर्ष में जुट जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर इनका सम्मान होगा पर इस एक दिन के बाद व्यवस्था फिर जस की तस हो जाएगी।
पारसबाई साहू, बीते 13 वर्षो से रायपुर के रेलवे स्टेशन मेें कुली का काम करती हैं। पति के छोड़ने के बाद दो-दो बच्चों के लालन-पालन का दायित्व उन्हीं के सिर आ गया। इस बीच स्टेशन में कुली की भर्ती की सूचना आई। आज से 13 साल पहले ये सब सरल नहीं था। सबसे बड़ी बाधा, लोग क्या कहेंगे..., संबंधी क्या सोचेंगे... की आई। पारसबाई की जिम्मेदारियों ने इन बाधाओं को पार कर लिया। अब वो यहां बिना संकोच आठ से दस घंटे काम कर रही हैं। उन्होंने कहा-'बेटी को यूपीएससी की तैयारी करवा रही हूं। जब वो साहब बन जाएगी, तब जीवन सार्थक हो जाएगा।
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