रायगढ़। चक्रधर समारोह के जरिए रायगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान को मिटाने का षडयंत्र कांग्रेस पर लगाते हुए पूर्व विधायक एवम भाजपा नेता विजय अग्रवाल ने कहा रायगढ़ की जनता इस गुनाह के लिए विधायक प्रकाश नायक को माफ नही करेगी। कला संस्कृति की विरासत वाली नगरी रायगढ़ के कलाकारों की आत्मा चक्रधर समारोह में बसती है। कला संस्कृति के पुजारी महाराज चक्रधर सिंह के राजघराने की पीढ़ी में राजा भूपदेव सिंह के द्वितीय पुत्र गोंड़वंश के आदिवसी राजा चक्रधर सिंह का जन्म भाद्र पद संवत 1862 को हुआ। उनके जन्मदिवस को राजकीय समारोह के रूप में मनाने के लिए "ऐतिहासिक गणेश मेला' का आयोजन किया जाता है ।जो रायगढ़ के सांस्कृतिक गौरव के रूप में पूरे देश मे प्रसिद्ध हुआ जिसमे देश के शीर्षर्थ प्रतिष्ठित कला , संगीत एवं साहित्य साधको और क्रीड़ा जगत की प्रख्यात प्रतिभाओं को आमंत्रित कर सम्मानित किया जाता था।महाराजा चक्रधर सिंह ऐसे ही विशिष्ट सांगीतिक व्यक्तित्व के धनी और कलापारखी नरेश थे। विजय अग्रवाल ने कहा गणेश मेला एवम चक्रधर समारोह के जरिए राष्ट्र की कला एवं संस्कृति को पर्याप्त संरक्षण हासिल हो पाया। इसकी वजह से रायगढ़ को सांस्कृतिक राजधानी और कला की तीर्थस्थली के रूप में पूरे राष्ट्र में प्रसिद्धि प्राप्त करने का गौरव हासिल हुआ। रायगढ़ दरबार संगीत के उद्धारक प. विष्णु दिगंबर पलुस्कर , प. ओंकार नाथ ठाकुर , प. भूषण संगीताचार्य , बड़े रामदास , उस्ताद इनायत खा , कादर बक्श , मुनीर खा , कंठे महाराज , प. बिंदादीन , सीता राम जी , हनुमान प्रसाद , सुखदेव महाराज , सुंदर प्रसाद , जयलाल , लच्छु अक्छन जैसे प्रख्यात साधको की रायगढ़ तपोभूमि रही है। महाराजा चक्रधर सिंह ने देश के शीर्षर्थ नृत्याचार्यो से प. कार्तिकराम , कल्याण दास महंत , बर्मनलाल एवं फिरतु महाराज को कथक की शिक्षा दिलाई जिन्होंने राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की एवं मध्यप्रदेश शासन ने पंडित कार्तिकराम , कल्याण दास , फिरतु महाराज एवं बर्मनलाल जी को शिखर सम्मान से सम्मानित किया। संगीत सम्राट राजा चक्रधर सिंह ने कत्थक की एक अभिनव शास्त्रीय शैली विकसित की।
जो "रायगढ़ कत्थक घराना' के रूप मे प्रसिद्ध है।राजा चक्रधर सिंह ने संगीत एवं साहित्य के कई अमूल्य ग्रंथो की रचना की है। जिसमे नर्तन सर्वस्वम , तालतोय निधि , राग रत्न मंजुसा , मुरज परण पुष्पकार प्रसिद्ध है।
महाराजा चक्रधर सिंह के देहांत के बाद उनके पुत्र राजा ललित सिंह कुमार सुरेंद्र प्रताप सिंह , और कुमार भानुप्रताप सिंह के द्वारा कई वर्षों से इस परंपरा का निर्वाह किया गया । 1984 में सर्वोदयी नेता केयूर भूषण की अध्यक्षता में राजपरिवार के सदस्यों , साहित्यकारो एवं संगीतकारो की एक सभा हुई । प. मुकुटधर पांडेय , प. किशोरी मोहन त्रिपाठी , लाल फूलचन्द्र श्रीवास्तव , जगदीश मेहर , डॉ. बलदेव , मनहर सिंह ठाकुर वेदमणि सिंह ठाकुर रजनी कांत मेहता , राजपरिवार के पूर्व सांसद सुरेंद्र कुमार सिंह , कुमार भानु प्रताप सिंह , उर्वशी देवी एवं देवेंद्र प्रताप सिंह ( सदस्य ) इनके संरक्षक हुए । बाद में वरिष्ठ पत्रकार , साहित्यकार , संगीतकार एवं प्रबुद्ध नागरिकों की हिस्सेदारी बढ़ती गई।सर्वप्रथम गणेश उत्सव , छत्तीशगढ़ के प्रसिद्ध संत कवि पवन दीवान द्वारा राज महल के परिसर में 18-09-1985 को उद्घाटित हुआ। जिसे आने वाले वर्षो में ही राष्ट्र व्यापी ख्याति मिली। प. मुकुटधर पांडेय ने इसे रायगढ़ के सांस्कृतिक जीवन मे महत्वपूर्ण मानते हुए सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाला गणेश उत्सव निरूपित किया। महल का गणेश उत्सव राजकिय था। यह एक प्रकार से नए युग की शुरुवात थी। छत्तीशगढ़ संसद द्वारा चक्रधर समारोह 2001 से शुरू किया गया था।छत्तीसगढ़ शासन ने इस परंपरा को समृद्ध करते हुए 10 दिवसीय समारोह को शासकीय मान्यता प्रदान कर संस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह किया और रायगढ़ को पुनः कला एवं संगीत की तीर्थस्थली के रूप में गौरवान्वित किया। संस्कृतिक विभाग , छत्तीशगढ़ शासन ,जिला प्रशासन एवं जन सहयोग से रायगढ का ऐतिहासिक राष्ट्रीय संस्कृतिक उत्सव गणेश मेला "चक्रधर समारोह' का यह गौरवपूर्ण आयोजन है। कोरोना महामारी के दौरान इस आयोजन को ऑन लाइन किया गया लेकिन इसकी परंपरा जारी रही लेकिन कांग्रेस अब इस आयोजन को लेकर बहानेबाजी कर किसी तरह इस आयोजन को बंद कर कला संस्कृति की पहचान मिटाने में आमदा है