आलेख - केदार कश्यप, सहकारिता मंत्री
Kedar Kashyap पहला मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए सहकार तो उसके मूल्य में है लेकिन जब आर्थिक गतिविधियों की बात होती है तब मनुष्य स्वार्थी हो जाता है। जिनके पास पूंजी है वह तो पूंजी से पूंजी कमाकर आर्थिक दृष्टि से सक्षम हो जाता है किंतु जिसके पास पूंजी नहीं है वह क्या करे? ऐसे में सहकार से उद्धार का भाव ही सही प्रतीत होता है।
छत्तीसगढ़ के बारे में कहा जाता है, इस अमीर धरती पर गरीब लोग रहते हैं। यह बात सही नहीं है, इस प्रदेश के लोग ऋषि और कृषि संस्कृति को मानने वाले हैं, प्रकृतिवादी हैं इसलिए जो प्रकृति से जीवनयापन के लिए मिल जाए संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी का सपना था कि यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से भी प्रगति करे। राज्य में 15 साल की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने चहुंओर विकास की यात्रा प्रारंभ की थी, जिसे विष्णुदेव साय की सरकार आगे बढ़ा रही है। केंद्र में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार का लक्ष्य वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में स्थापित करना है। ऐसे में छत्तीसगढ़ राज्य उस महान यात्रा में कैसे पीछे रह सकती है। हाल में प्रदेश में सहकारिता को आधार बनाकर विकास की गति को बढ़ाने के लिए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने बैठक कर एक कार्ययोजना बनाई है।
छत्तीसगढ़ में 70 प्रतिशत लोग कृषि और वनों से अपनी आजीविका प्राप्त करते हैं। प्रदेश में किसानों की संख्या का 70 प्रतिशत सीमांत और छोटे किसान हैं जिनके पास औसत एक एकड़ की खेतिहर भूमि है। इसलिए केवल खेती करके किसान अपनी आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव नहीं ला सकता। भाजपा की सरकार में किसानों को सहकारी बैंकों के माध्यम से शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण की सुविधा दी है। धान के उत्पादन को न्यूनतन समर्थन मूल्य पर सहकारी समितियों ’’पैक्स’’ के माध्यम से खरीद रही है। दुग्ध और मत्स्य पालन के क्षेत्र में भी सहकारिता के जरिए किसानों और गरीबों की आर्थिक समृद्धि के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन अब सहकारिता के माध्यम से मैदानी क्षेत्र के साथ वन क्षेत्र में रहने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को भी सहकारिता से जोड़कर उनको आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की कार्ययोजना बनाई जा रही है।
अभी प्रदेश में कुल 2058 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां पैक्स कार्यरत हैं, अब प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर बहुआयामी पैक्स / दुग्ध/ मत्स्य सहकारी समिति का गठन दो वर्ष के भीतर सुनिश्चित किया जाएगा। भारत सरकार की जनजाति कल्याण विभाग के साथ समन्वय करते हुये राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और छत्तीसगढ सरकार के साथ एमओयू किया जाएगा जिसके बाद प्रदेशवासी विशेषकर अनुसूचित जनजाति के लोगों को दुग्ध सहकारिता से जोड़ने की पहल की जा रही है। उनकी आर्थिक समृद्धि के लिये दुधारु पशु यथा- गाय/भैंस पालन के लिए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाएगा। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के माध्यम से ऋण सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी, ताकि आगामी पांच वर्षों में दुग्ध सहकारी समितियों के माध्यम से लाभ अर्जित कर आठ से दस पशुधन के मालिक बन सके एवं उस परिवार को आजीवन इसका लाभ मिलता रहे।
इस प्रकार प्रदेश में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होगी, इस दूध को सहकारी संघ के माध्यम से दुग्ध के विभिन्न उत्पादों का निर्माण किया जा सकेगा। गुजरात में 1960 के दशक में अमूल नामक एक सहकारी आंदोलन छोटे से गांव आणंद में शुरू हुआ, आज वह आंदोलन दुग्ध उत्पाद में वैश्विक ब्रांड बन गया है जिसका वार्षिक टर्नओवर 60 हजार करोड़ रुपए को पार कर गया है। छत्तीसगढ़ में इसी मॉडल पर काम शुरू किया जायेगा। कृषकों द्वारा उत्पादित दुग्ध के लिये पर्याप्त प्रशीतक केन्द्र एवं प्रक्रिया इकाईयां स्थापित की जाएंगी।
सहकारिता के माध्यम से अर्थव्यवस्था के विकास तथा इसका लाभ आमजन तक पंहुचाने कृषि, पशुपालन, मत्स्य, जनजाति विभाग के परस्पर समन्वय हेतु संबंधित विभाग के मंत्रियों तथा सचिवों की पृथक कमेटी बनाई जाएगी। प्रदेश में वर्तमान में केवल छः जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक संचालित हैं, सहकारिता के विस्तार और पैक्स की संख्या सभी जिलों तक बढ़ेगी तब जिला सहकारी बैंकों की संख्या भी बढ़ानी होगी। इसके साथ ही सहकारी बैंकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाया जायेगा। राज्य के सभी 6 जिला सहकारी केन्द्रीय बैंको की संबंद्धता सीजीटीएमएसई से सुनिश्चित करते हुये इंटरनेट बैंकिग सहित ई-बैंकिग सुविधाओं तथा आधार इनेब्लड पेमेंट सिस्टम सुनिश्चित किए जाएंगे ।
सहकारिता के अन्य आयामों जैसे जैविक कृषि, बीज उत्पादन, मत्स्य आदि को मजबूत कर छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन को गति दी जाएगी। छत्तीसगढ़ वन, खनिज, भूमि संसाधन के साथ परिश्रमी जनसंसाधन भी है। सहकार की भावना से जब कार्य प्रारंभ होंगे तभी जनता का आर्थिक उद्धार का मार्ग प्रशस्त होगा।
(आलेख सहकारिता मंत्री के स्वयं के विचार हैं।)