अधिकतर अस्पताल प्रदेश के बाहर से आए हुए डाक्टरों व्दारा संचालित, बेहतर ईलाज के नाम पर मची लूट...........
जिस इलाज का नागपुर में खर्च 1.50 लाख आता है उसी इलाज का रायपुर में 2.50 लाख लेते हैं.....
प्रदेश मे फैले एजेंटो को निजी अस्पतालों से हर मरीजों को मिलता है मोटी रकम
दवाई से लेकर इलाज तक की गारंटी देकर फंसाते है मरीजों के परिजनों को
बच्चा बदली करने से लेकर किडनी
निकाल लेने में माहिर पैसे के लिए कुछ भी करने में सक्षम
दवा कंपनी और एमआर से दवा खपाने डाक्टरों को दी जाती है लाखों की दलाली
दवा कंपनी के पैकेज के अनुसार मरीजों को दवाई देते हैं
रायपुर raipur news (जसेरि)। आज डाक्टरी पेशा को डाक्टरों ने ही व्यापारीकरण कर रखा है। इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों Private Hospitals में भर्ती होने वाले गंभीर और अति गंभीर बीमारी के इलाज के लिए कई तरह के प्रलोभन देकर मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती कराने के बाद कमीशन लेकर रफूचक्कर हो जाते है। सूत्रों की माने तो सबसे चौकाने वाला मामला यह है कि नकली दवाइयों को खपाने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनिया डाक्टरों को हर साल विदेश यात्रा पर भेजते है।
chhattisgarh news एम्स डायरेक्टर के पीए ने फोन तक रिसीव नहीं करते : रायपुर ए्म्स की तथाकथा बहुत निराली है, वहां के डाक्टर से लेकर निज सहायक तक किसी भी वीवीआईपी और वीआईपी को भाव नहीं देते हैं। कितना भी एमरजेंसी हो एम्स अस्पताल अपने ढर्रे पर ही चलना पसंद करते हैं। छत्तीसगढ़ में एम्स को लेकर जो सुविधा मिलने की अपेक्षा थी, वहां उपेक्षा मिल रही है। यहां के डाक्टर और टेक्नीशियन अपने आप को किसी सेलेब्रेटी से कम नहीं समझते। इलाज के नाम पर मरीजों और उनके परिवार की बेइज्जती उनका जन्म सिद्ध अधिकार हो। एम्स में इलाज कराना यानी अपनी बेइज्जती कराने के समान हो गया हैं। छत्तीसगढ़ कर्णधारों ने एक सपना देका था,जिसके तहत छत्तीसगढ़वासियों को स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर बेहतर अस्पताल बनवाया उनका सपना ता, इसके िलिए पूर्व प्रधानमं6ी से िनवेदन कर एम्स को रायपुर में खुलवाने राजी किया और उन्हीं से आधिशिला भी रखवाया यह सोचकर कि छत्तीसगढ़ की गरीब जनता को अत्याधुनिक सेवा का लाभ मिलेगा लेकिन एम्स के वर्तमान स्टाृफ इलाज तो दूर सीधे मुंह बात तक नहीं करते। निर्वाचित जनप्रितिनिधयों में सांसदों की बात भी नहीं सुनते तो आम जनता के साथ कैसा व्यवहार होता होगा समझा जा सकता है। और अक्सर स्टाफ व्दारा बेड खानी नहीं होने का बहाना बनाया जाता है या वेटिंग लिस्ट दिखाया जाता है । अंत में मरीज अनापशनाप फीस लेने वाले अस्पतालों की ओर जाते है। आसपास के सभी निजी अस्पतालों में एम्स में भर्ती नहीं िकए जाने वाले ही मरीज रहते है। छत्तीसगढ़ के गरीब, मजदूर, किसान और स्थानीय निवासियों को एम्स जैसे बड़े अस्पताल होने का कोई फायदा नहीं मिल रहा है। पिछले दिनों एम्स रायपुर के डायरेक्टर के पीए शिवानंद जो अपने आपको लोकतंत्र के सबसे बड़े राजा और जनता के अधिकारों को भी कुछ नहीं समझते और अपने आप को देश का सबसे बड़ा अधिकारी समझ कर अनाप शनाप उल्टी गाली गुप्तार अपशब्दों का प्रयोग करते हैं । जनता से रिश्ता मीडिया अख़बार के प्रबंधन ने शिवानंद से बात करने की कोशिश की,लेकिन सही ढंग से बात नहीं करते वे क्षेत्रीय सांसद और लोकतंत्र के प्रहरी को भी अनाप-शनाप भद्दी भाषा में प्रयोग करते हुए फ़ोन पटक देते है और गऱीब मरीज़ों की सहायता नहीं करते, ऐसे ही सब को मजबूर किया जाता है जनता एम्स रायपुर से परेशान हैं जबकि सबसे अच्छा इलाज की तलाश में एम्स की ओर जनता रुख़ करती है लेकिन दलाल और सरकारी स्टॉफ के गंदे आचरण और व्यवहार के कारण आस पास के हॉस्पिटल में लोग चले जाते है जहां बारी भरकम फीस देना उनकी मजबूरी हो जाती है। इस तरह से एम्स का स्टाफ अपनी दुकानदारी ज़ोरदार तरीके से जोरदार चला रहे है। औऱ छत्तीसगढ़ की गऱीब जनता जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते है।
chhattisgarhएक मरीज रात एक निजी अस्पताल से निकल भागा, सडक़ों पर मिली लाश : इलाज से ठीक तो नहीं हो पाया देवेंद्र नगर एक स्थित निजी बड़े नामचीन अस्पताल में प्रदेश के गृहमंत्री के सहपाटी इलाज के लिए भर्ती हुआ था, जो इलाज से ठीक तो नहीं हो पाए अलबत्ता वहां से भाग निकले जिसकी तीन दिन बाद अस्पताल से दूर एक व्यस्ततम सडक़ में मिली। इस मामले में अस्पताल पूरी तरह दोषी होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे पता चलता है कि अस्पताल वालों की पहुंच कहां तक है। गृहमंत्री का सहपाटी होना अपने आप में एक रूतबा वाला सख्श कहा जा सकता है। लेकिन वहां अव्यवस्था देखकर मरीज भाग निकाला। जिस मामले में अस्पताल संचालक पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। एसे ही एक मामले में पचपेड़ी नाका स्थित श्री शंकरा अस्पताल में पैर का आपरेशन करानेआए उड़ीसा के मरीज का छाती का आपरेशन कर दिया गया।
प्रेग्नेंट महिला के साथ ऐसा दुव्यर्वहार : एक अन्य अस्पताल में भर्ती एक प्रेग्नेंट महिला के पति ने बताया कि अस्पताल की फीस नहीं देने पर उसकी पत्नी को अस्पताल में झाड़ू-पोछा लगाने की धमकी दी जा रही है। अस्पताल के डायरेक्टर और मैनेजर पर उसने गाली-गलौज करने का आरोप लगाया। पति ने बताया कि उसकी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार भी किया जा रहा है। इस मामले में सीआईडी की टीम ने प्रसूता को अस्पताल से मुक्त कराया। दरअसल, पैसे वसूली के लिए खूंटी निवासी प्रसूता को बंधक बनाए जाने का खुलासा होने के बाद बरियातू-बूटी रोड के जेनेटिक अस्पताल के खिलाफ कई और गंभीर आरोप लगे हैं। पीडि़त मंगलू सिंह ने गुरुवार को अस्पताल निदेशक मनोज अग्रवाल और मैनेजर राजा खान पर केस दर्ज कराया है। मनोज अग्रवाल पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उसकी प्रसूता पत्नी से झाड़ू-पोछा लगवाकर पैसे की वसूली करने की धमकी दी थी। पत्नी से दुर्व्यवहार भी किया गया था। बता दें कि पुलिस जांच में जुटी गई है। उल्लेखनीय है कि पत्नी को बचाने की गुहार लगाने पर सीआईडी टीम ने प्रसूता को मुक्त कराया था। मंगलू का आरोप है कि वह पत्नी से मिलने जाता था तो दोनों आरोपी जातिसूचक गालियां देते थे। धमकी देते कि पैसे नहीं देने पर उसकी पत्नी से पूरे अस्पताल में झाड़ू-पोछा करवाते रहेंगे। इसके बाद उन्होंने सीआईडी के अधिकारी से संपर्क किया। मंगलू ने आरोप लगाया है कि अस्पताल मरीजों को लाने के लिए ऑटोवालों को भी कमीशन देता है। उन्होंने कहा है कि रांची आने पर ऑटोवाले ने रिम्स में इलाज अच्छा नहीं होने की बात कही और जेनेटिक अस्पताल ले गया था। काउंटर में बैठे लोगों ने ऑपरेशन में 1.20 लाख के अलावा दवा खर्च अलग से होने की बात कही थी। लेकिन छुट्टी देने को कहने पर निदेशक व मैनेजर ने उनसे 1.60 लाख की और मांग की थी।
भर्ती के समय 50 हजार रुपए दिए : रांची में पारस अस्पताल में शुक्रवार को एक सडक़ दुर्घटना के बाद घायल को भर्ती कराया गया था। घायल के परिजनों ने आरोप लगाया कि न तो आयुष्मान और न ही ईएसआईसी के तहत इलाज किया गया। भर्ती के समय 50 हजार रुपए दिए गए थे। उसके बाद जब पैसे मांगे गए तो शनिवार को दूसरे अस्पताल ले जाने की बात कही। पर सिर्फ इन 12 घंटे के लिए 1.60 लाख का बिल थमा दिया गया। इसपर परिजनों ने जमकर हंगामा किया। हंगामा के बाद अस्पताल प्रबंधन ने बिल घटाया। अस्पताल के डायरेक्टर डॉ नितेश कुमार ने बताया कि मरीज काफी गंभीर स्थिति में भर्ती कराया गया था। पेट में इंज्युरी थी। आंत बाहर आ गई थी। तत्काल ऑपरेशन किया गया। जो भी वाजिब शुल्क था, वही चार्ज किया गया। हालांकि, विवाद के बाद उन्हें डिस्काउंट करते हुए मरीज को डिस्चार्ज किया गया। आयुष्मान से इलाज नहीं हो पाना प्रदेश की जनता के साथ सबसे बड़ी विडंबना है।