दवाई भी ऐसा लिख रहे जो उसके अतिरिक्त दूसरे दवा दुकानों में उपलब्ध नहीं
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। कोरोना काल में जहां डॉक्टर लोगों की जान बचाकर बड़ी भूमिका निभा रहे है और धरती के भगवान होने का सुबूत पेश कर रहे है। ऐसे अवसर में भी कुछ लोग डॉक्टरी पेशा को ज्यादा फीस लेकर बदनाम करने में लगे हुए है। ऐसा ही एक मामला राजधानी में सामने आया है ईएनटी हॉस्पिटल के डॉक्टर ने मरीज से ना सिर्फ 650 रुपए अपनी फीस बल्कि जो दवाई लिखकर दी वो दवाई भी मरीज़ को पूरे रायपुर में कही नहीं मिली। आखिर हताश होकर मरीज़ को उसी ईएनटी हॉस्पिटल में आकर दवाइयां खरीदनी पड़ी।
ईएनटी अस्पताल में चल रहा दवाइयों का खेल : रायपुर में आपदा को अवसर बनाने वाले कई ऐसे अस्पताल है, एक और अस्पताल का नाम शामिल होने जा रहा है। मगर ये अस्पताल कोई कोविड अस्पताल नहीं है बल्कि ये आँख, कान, गला का अस्पताल है। जिसमें एक मरीज़ राजू वासवानी कटोरा तालाब निवासी अपने गले का इलाज कराने गया था। जिसे डॉक्टर अनुज जाऊलकर ने विजिटिंग फीस के रूप में 650 रुपए लिए और गले में बार-बार हो रहे टॉन्सिल को गले का इन्फेक्शन बताकर कुछ दवाइयां लिख कर दी। मरीज़ के पास उस वक़्त उतने पैसे नहीं थे जिस वजह से मरीज़ राजू दवाइयां नहीं ले पाया। राजू ने दवाइयों की पर्ची लेकर पूरे रायपुर शहर के मेडिकलों में घूमा लेकिन वो दवाइयां नहीं मिली। आखिकार राजू हताश होकर वापस उसी अस्पताल में गया और दवाइयां ली। राजू ने जनता से रिश्ता को बतया कि दवाई की पर्ची में ना तो जीएसटी का बॉक्स है ना ही बच नंबर है। अपनी हताशा जाहिर करते हुए राजू ने बताया कि कोरोनाकाल में भी डॉक्टर ने 650 रुपए फीस लिए उसके बाद दवाई लिखकर दी लेकिन वो सिर्फ उनके अस्पताल में बने मेडिकल में ही मिली।
निजी अस्पतालों में बन मेडिकल बना फैशन
राजधानी में कई ऐसे निजी अस्पताल है मरीजों के परिजनों से बेड के नाम पर तो कभी दवाईयों के नाम पर ज्यादा चार्ज वसूल रहे हैं, जिससे मरीज और उनके परिजन काफी परेशान है, लेकिन क्या करें मरीज की जान तो बचानी है ऐसे में कैसे भी कहीं से भी वो पैसों का इंतजाम कर निजी अस्पतालों का पेट भरते हैं। अब निजी अस्पतालों में ऐसा भी खेल चल रहा है कि डॉक्टर अपने अस्पताल में ही कॉन्ट्रैक्ट बेस पर मेडिकल खोल कर रखे है और मरीज़ को वही दवा देते है जो कि सिर्फ उनके मेडिकल में ही मिलती है। ये अब तो एक फैशन बन गया है एक तरफ हर गली में मेडिकल के बड़ी-बड़ी दुकानें है लेकिन मरीज मेडिकलों में जाना छोड़कर सिर्फ निजी अस्पताल के मेडिकल में ही खरीद रहे है क्योंकि ये दवाइयां पूरे मेडिकल बाजार में नहीं मिलती सिर्फ उसी मेडिकल में मिलती है जिनके अस्पताल में डॉक्टर ने अपने प्रेस्क्रिप्शन में लिखकर दिया हो।
डॉक्टर ने अपना पक्ष रखा
जनता से रिश्ता को मामले में डॉक्टर का पक्ष जानने के लिए उन्हें कॉल किया तो डॉक्टर अनुज जाऊलकर ने बताया कि उनकी दो सालों से यही फीस है। और जो भी फीस लेना है वो उनकी मर्जी है। जितनी उनकी फीस है वो उतना लेता है। अनुज जाऊलकर ने आगे बताया कि फीस जो है वो सालों से एक ही रेट पर चल रहा है। और कोरोनाकाल में पीपीई कीट पहनकर कोई भी डॉक्टर मरीज़ का विजिट नहीं देगा। और हमारा अस्पताल इतना कर रहा है वो भी बहुत है। मरीज़ की डॉक्टर की तरफ से हर तरह की मदद की जाती है। मरीज़ द्वारा दवाइयों के आरोप पर अनुज जाऊलकर ने बताया कि जो दवाइयां उन्होंने लिखकर दी है वो मेडिकल काम्प्लेक्स में मिल जाती है। अगर कोई बीपी और हार्ट की दवाई मेरे अस्पताल में खोजेगा तो उसे वो नहीं मिलेगा। जो बीमारी का अस्पताल है और जो विषय के स्पेस्लिस्ट है उनके पास वही दवा मिलेगी। जहां तक बात मेडिकल बिल की है तो डॉक्टर ने बताया कि बिल कोई फर्जी नहीं होता है। जनता से रिश्ता प्रतिनिधि ने डॉक्टर जाऊलकर से जानकारी चाही तो उन्होंने बताया कि मेरी दवाइयां मार्केट में क्यों नहीं ये दवाइयों के स्टाकिस्ट ही बता सकते हैं।
मरीज ने जनता से रिश्ता को बताया
मरीज़ राजू वासवानी ने जनता से रिश्ता के संवाददाता को बताय कि उसने डॉक्टर अनुज जाऊलकर से इलाज के बाद दवाई लेने कटोरा तालाब स्थित कृष्णा मेडिकल गया। वहा के कर्मचारी ने बताया कि डॉक्टर ने जो दवाइयां लिखकर दी है वो दवाइयां किसी भी मेडिकल में उन्हें नहीं मिली। उसके बाद मरीज़ राजू वासवानी ने श्याम नगर स्थित दीपेश मेडिकल में भी उन्हें ये दवाइयां नहीं मिली। उसके बाद मरीज़ ने शहर के सबसे बड़े मेडिकल लक्ष्मी मेडिकल में जाकर दवाइयों की जानकारी ली। वहां से भी जब दवाइयां नहीं मिली तो राजू हताश होकर वापस कटोरा तालाब से चौबे कालोनी आये और अस्पताल के ही मेडिकल से दवाइयां खरीदी। मतलब ये दवाइयां पूरे मार्केट में नहीं मिली लेकिन अस्पताल के मेडिकल में मिल गई।