प्रधानमंत्री मोदी ने आपदा में अवसर तलाशा कमलनाथ सरकार को गिराकर कमल खिलाया
जा़किर घुरसेना/कैलाश यादव
पिछले दिनों भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय इंदौर में किसानों को संबोधित करते हुए भरी सभा में कहा कि आज मैं ऐसे बात का खुलासा कर रहा हूं जो किसी को आजतक नहीं मालूम थी, वो ये कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुख्य भूमिका थी। केंद्रीय मंत्री धर्मेद्र प्रधान की कोई भूमिका नहीं थी, जनता में खुसुर-फुसुर है कि प्रधानमंत्री ने कोरोना काल देश की जनता से कोरोना से घबराने के बजाय आपदा में अवसर तलाने का आह्वान किया था, जिसकी शुरूआत उन्होंने खुद मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिराकर कमल की सरकार बनाकर आपदा में अवसर तलाश ही लिया। देश में इससे बड़ा कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता । यही था पीएम का आपदा में अवसर तलाशने का मंत्र, जो उन्होंने मध्यप्रदेश में फूंक ही दिया। अब कौन बनेगा करोड़पति में पूछा जाएगा कि आपदा में सबसे पहले अवसर किसने तलाशा...।
अन्नदाताओं पर एक शेर शत-प्रतिशत फिट बैठ रहा है-उम्र थका नहीं सकती, ठोकरे गिरा नहीं सकती, अगर जीतने की जिद हो तो, परिस्थितियां हरा नहीं सकती। अन्नदाता कड़कड़ाती ठंड में लगभग पिछले तीन सप्ताह से अपनी मांगों को लेकर दिल्ली बार्डर में डटे हुए है। लेकिन वाह रे...संवेदनहीन सरकार सिर्फ जुबानी जमा खर्च में इतने दिन गुजार दिए एक के बाद एक करके एक दर्जन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। और तो और विदेशों में भी अन्नदाताओं के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर चुके हैं। हद तो तब हो गई जब देश-विदेश में लाखों अनुयायी वाले 65 वर्षीय संत बाबा राम सिंह किसानों की पीड़ा को देख नहीं सके और विरोध में कूद पड़े और हमेशा के लिए आंदोलन स्थल पर ही दुनिया को अलविदा कह गए। अफसोस...गैर जरूरी चीजों के लिए सरकार और उसके नुमाइंदे कानून में संशोधन तक कर देते है, लेकिन अन्नदाताओं के मामले में संवेदनहीनता क्यों पूछती है जनता।
ठंडी में गर्मी का अहसास
दिसंबर माह में ठंड ने अपना तेवर दिखाना शुरू कर दिया है, लोग अपने-अपने स्तर पर ठंडी में गर्मी का अहसास कर रहे है। किसानों के आंदोलन से केंद्र सरकार के माथेे पर पसीना है, भूपेश सरकार के दो साल पूरा होने पर कांग्रेसी गर्मी का अहसास कर रहे हैं। तो प्रदेश भाजपा के लोगों को युद्धवीर सिंह जूदेव के बयान से ठंडी में गर्मी का अहसास हो रहा है। जनता में खुसुर-फुसर है कि हर तरफ ठंडी में गर्मी का अहसास हो रहा है। वो विज्ञापन याद आ रहा है जिसमें कहता है कि चाचा मुझे पसीना क्यों आता है, ऐसे माहौल में पसीना तो आएगा ही।
भाजपाइयों को जगाना भारी पड़ गया
छत्तीसगढ़ में सत्ता से बाहर होने के बाद सोए भाजपाइयों को जगाने प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन का रायपुर आगमन हुआ। सोए शेरों को जगाना सह प्रभारी को भारी पड़ गया। दरअसल नितिन नवीन ने एकात्म परिसर में घूम कर सौदान सिंह की जमकर तारीफ कर दी, फिर क्या जमीनी कार्यकर्ता उनको भी नहीं छोड़े और कहने लगे आयातित व हवा-हवाई कार्यकर्ताओं से चुनाव नहीं जीता जाता, बल्कि लोकल और जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से चुनाव जीता जाता है।
अब किस पर भरोसा करें
पिछले दिनों सीबीआई की कस्टडी से 45 करोड़ का सोना गायब हो गया । सीबीआई की इस घटना की जांच स्थानीय पुलिस करेगी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा में पहली बार हो रहा होगा कि सीबीआई की जांच स्थानीय पुलिस कर रही है। जनता में खुसुर फुसुर है कि नेताओं ने वैसे भी सीबीआई की छवि धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, रहा सहा कसर सीबीआई वाले खुद कर लिए. अब भरोसा किस पर करें.।
कमल हासन के सवाल में दम तो है
अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने प्रधानमंत्री से सवाल किया कि कोरोना महामारी की वजह से देश की आधी आबादी भूखी है, लोगों की जानें जा रही है और साहब ने एक हजार करोड़ खर्च कर नए संसद भवन की नींव रख रहे है, जिसकी जरूरत नहीं है। कमल हासन के सवाल पर एक शेर याद आया जो 40 साल पहले एक शायर ने कहा था कि -सब कुछ है देश में रोटी नहीं तो क्या, वादा लपेट लो लंगोटी नहीं तो। हाकिम ऐसे जो देश का कानून तोड़ दें, रिश्वत मिले तो कत्ल का मुजरिम छोड़ दें।।
अन्नदाताओं की नाराजगी का असर तो नहीं
पिछले दिनों राजस्थान में निकाय/पंचायत चुनाव संपन्न हुआ जिसमें कांग्रेस पहले नंबर में, निर्दलीय दूसरे नंबर में और भाजपा तीसरे नंबर में रही, भाजपा अपने कब्जे वाली लगभग 30 से 35 निकायों में अपनी बहुमत भी गंवा दी है। जनता में खुसुर फुसुर है कि चुनाव में कही अन्नदाताओं की नाराजगी तो नहीं। ये अन्नदाता है साहब जनता की पेट भर सकते है तो आगे बहुत कुछ भी कर सकते हैं।
अन्नदाता अब नक्सली भी हो गए
अन्नदाताओं को दिल्ली बार्डर से हटाने पानी की बौछारें मारी गई, लेकिन नहीं हटे, अब उन पर तोहमतों की बारिश हो रही है। जितने नेता उतनी बयान कोई खालिस्तानी बोल रहा है कोई आतंकवादी बोल रहा है, कोई चीन और पाकिस्तान से मदद मिलने की बात बोल रहा है। अब भाजपा वाले बोल रहे है कि किसान अर्बन नक्सली है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कहना है कि किसान आंदोलन में चारों तरफ से आतंकी घुस आए हैं। जनता में खुसुर-फुसर है कि यह देश का ध्यान भटकाने का षडयंत्र तो नहीं है।
वक्त नहीं, ईवीएम बलवान होता है.
नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम के बाद जब देश में कोरोना फैला तो निर्देषों के उपर दोष मढऩे का फैशन चला, साथ ही हेल्थ वर्करों पर लोगों और सरकार की तरफ से फूलों की बारिश भी हुई जैसे-जैसे कोरोना कम हुआ, उन पर पत्थरों की बारिश होने लगी है। दिल्ली एम्स में हड़ताल कर रही नर्सों को बल पूर्वक खदेड़ दिया गया जिसमें कई नर्सों को गंभीर चोटे भी आई जनता में खुसुर-फुसर है कि वक्त बलवान होता है भैया, तभी दूसरा तपाक से बोलता है वक्त नहीं भाई ईवीएम बलवान होता है।
अंधा बांटे रेवड़ी...
पिछले दिनों राज्य सरकार के दोवर्ष पूर्ण होने पर मुख्यमंत्री निवास में वरिष्ठ संपादकों से चर्चा आयोजित की गई थी। उक्त चर्चा में अंधा बांटे रेवड़ी वाली लोकोक्ति की झलक दिखाई दी। जिसमें मुख्यमंत्री के खास लोगों के व्दारा बुलाए गए खास संपादक ही दिखे। ऐसा मालूम हुआ कि उपरोक्त चर्चा वरिष्ठ संपादकों के बजाय खास संपादकों को लिए था, पहले ऐेसा महसूस होता था कि जनता को, जनता के लिए जनता के व्दारा । लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कार्पोरेट को, कार्पोरेट के लिए, कार्पोरेट के व्दारा। अब अखबारों को संपादक नहीं लाइजनर की जरूरत है, जो वर्तमान दौर में साफ थ्री-डी चश्मे से देखा जा सकता है।